पौष पुत्रदा एकादशी, पुराणों और महाभारत में है विशेष महत्व
पौष पुत्रदा एकादशी: सनातन धर्म में एकादशी तिथि का विशेष महत्व है। एकादशी में भगवान विष्णु जी की पूजा अर्चना की जाती है। वर्ष में दो बार पुत्रदा एकादशी मनाई जाती है। इस साल की पहली पुत्रदा एकादशी 21 जनवरी रविवार को मनाई जाएगी। पुत्रदा एकादशी का व्रत संतान प्राप्ति और दांपत्य जीवन की खुशहाली के लिए किया जाता है ।
पौष पुत्रदा एकादशी की तिथि
🟣पौष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि की
👉 शुरुआत- 20 जनवरी 2024, शाम 07 बजकर 26 मिनट पर
👉समापन- रात्रि 21 जनवरी 07 बजकर 26 मिनट पर
🟣इस तरह उदया तिथि के अनुसार
👉21 जनवरी- रविवार के दिन मनाई जाएगी पौष पुत्रदा एकादशी।
👉पारण- 22 जनवरी, सोमवार के दिन पुत्रदा एकादशी व्रत का पारण किया जाएगा।
पौष पुत्रदा एकादशी, पुराणों और महाभारत में विशेष महत्व
पौष पुत्रदा एकादशी का पुराणों और महाभारत में विशेष महत्व बताया गया है। यह व्रत करने से विष्णु जी की विशेष कृपा बनी रहती है । ऐसी मान्यता है कि पौष पुत्रदा एकादशी व्रत करने से मोक्ष के द्वार खुल जाते हैं।
आइए जानते हैं पौष पुत्रदा एकादशी की व्रत कथा
पौष पुत्रदा एकादशी की व्रत कथा
सुकेतुमान नाम का राजा भद्रावती नामक नगरी में राज्य करता था। वह पुत्र विहीन था। राजा की पत्नी का नाम शैव्या था। वह निपुत्र होने के कारण सदैव चिंतित रहती थी।
राजा को भाई, बाँधव, धन, हाथी, घोड़े, राज्य और मंत्री इन सबमें से किसी से भी संतोष नहीं होता था। राजा के पितर भी रो-रोकर पिंड लिया करते थे और सोचा करते थे कि इसके बाद हमको कौन पिंड देगा। वह सदैव यही विचार करता था कि मेरे मरने के बाद मुझको कौन पिंडदान करेगा। बिना पुत्र के पितरों और देवताओं का ऋण मैं कैसे चुका सकूँगा।
राजा इसी प्रकार रात-दिन चिंता में लगा रहता था। एक समय तो राजा ने अपने शरीर को त्याग देने का निश्चय किया परंतु आत्मघात को महान पाप समझकर उसने ऐसा नहीं किया।
एक दिन राजा ऐसा ही विचार करता हुआ अपने घोड़े पर चढ़कर वन को चल दिया तथा पक्षियों और वृक्षों को देखने लगा। वन के दृश्यों को देखकर राजा सोच-विचार में लग गया। इसी प्रकार आधा दिन बीत गया। वह सोचने लगा कि मैंने कई यज्ञ किए, ब्राह्मणों को स्वादिष्ट भोजन से तृप्त किया फिर भी मुझको दु:ख प्राप्त हुआ, क्यों?राजा प्यास के मारे अत्यंत दु:खी हो गया और पानी की तलाश में इधर-उधर फिरने लगा। थोड़ी दूरी पर राजा ने एक सरोवर देखा। उस सरोवर में कमल खिले थे तथा सारस, हंस, मगरमच्छ आदि विहार कर रहे थे। उस सरोवर के चारों तरफ मुनियों के आश्रम बने हुए थे। उसी समय राजा के दाहिने अंग फड़कने लगे। राजा शुभ शकुन समझकर घोड़े से उतरकर मुनियों को दंडवत प्रणाम करके बैठ गया।
मुनियों को दंडवत प्रणाम करके बैठ गया।राजा को देखकर मुनियों ने कहा- हे राजन! हम तुमसे अत्यंत प्रसन्न हैं। तुम्हारी क्या इच्छा है, सो कहो।
राजा ने पूछा- महाराज आप कौन हैं, और किसलिए यहाँ आए हैं। कृपा करके बताइए। मुनि कहने लगे कि हे राजन! आज संतान देने वाली पुत्रदा एकादशी है, हम लोग विश्वदेव हैं और इस सरोवर में स्नान करने के लिए आए हैं।यह सुनकर राजा कहने लगा कि महाराज मेरे भी कोई संतान नहीं है, यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो एक पुत्र का वरदान दीजिए। मुनि बोले- हे राजन! आज पुत्रदा एकादशी है। आप अवश्य ही इसका व्रत करें, भगवान की कृपा से अवश्य ही आपके घर में पुत्र होगा।मुनि के वचनों को सुनकर राजा ने उसी दिन एकादशी का व्रत किया और द्वादशी को उसका पारण किया। इसके पश्चात मुनियों को प्रणाम करके महल में वापस आ गया। कुछ समय बीतने के बाद रानी ने गर्भ धारण किया और नौ महीने के पश्चात एक राजकुमार हुआ। राजा का पुत्र अत्यंत शूरवीर, यशस्वी और प्रजापालक हुआ।
पुत्रदा एकादशी के व्रत के समान दूसरा कोई व्रत नहीं
इस प्रकार श्री कृष्ण युधिष्ठिर से बोले पुत्र की प्राप्ति के लिए पुत्रदा एकादशी का व्रत करना चाहिए। जो मनुष्य इस माहात्म्य को पढ़ता या सुनता है उसे अंत में स्वर्ग की प्राप्ति होती है। इस चर और अचर संसार में पुत्रदा एकादशी के व्रत के समान दूसरा कोई व्रत नहीं है। इसके पुण्य से मनुष्य तपस्वी, विद्वान और सुख समृद्धि से परिपूर्ण हो जाता है।
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