नवरात्रि का द्वितीय दिवस मां ब्रह्मचारिणी को समर्पित, जानें ये व्रत कथा

नवरात्रि का द्वितीय दिवस मां ब्रह्मचारिणी को समर्पित, जानें ये व्रत कथा


नवरात्रि का द्वितीय दिवस मां ब्रह्मचारिणी को समर्पित, जानें ये व्रत कथा

आज नवरात्रि के द्वितीय दिवस मां ब्रह्मचारिणी की पूजा का विधान है। मां ब्रह्मचारिणी को ज्ञान, तपस्या और वैराग्य की देवी माना जाता है। एसी मान्यता है कि मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करने पर कुंडली से जुड़ा मंगल दोष और उससे होने वाली तमाम तरह की परेशानियां दूर हो जाती है। मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करने से सभी शुभ कार्यों में सफलता मिलती है । ब्रह्मचारिणी का अर्थ होता है अनंत में विद्यमान। यानि एक ऐसी सकारात्मक ऊर्जा जो अनन्त में विचरण करती है। मां ब्रह्मचारिणी को ज्ञान, तपस्या और वैराग्य की देवी माना जाता है। जिनकी पूजा से व्यक्ति को दिव्य ज्ञान की प्राप्ति होती है।

जानें पूजा का विधान

नवरात्र के द्वितीय दिवस ब्रह्म बेला में उठकर मां दुर्गा के दूसरे स्वरूप को प्रणाम करके दिन की शुरुआत करें। घर की साफ-सफाई करने के पश्चात अपने दैनिक कार्य समाप्त करने के बाद गंगा जल मिश्रित जल से स्नान करें। इसके बाद नए वस्त्र धारण करें और व्रत का संकल्प लें। अब फल, फूल, धूप, दीप, हल्दी, चंदन, कुमकुम आदि से मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करें। मां ब्रह्मचारिणी को चीनी और मिश्री से बनी मिठाई बहुत पसंद है। उन्हें लाल फल, चीनी और मिश्री का भोग लगाएं। पूजा के अंत में आरती करें और सुख-समृद्धि की प्रार्थना करें।और मंत्रों देवी के मंत्रों का जाप करें।

जानें ये व्रत कथा

पौराणिक कथा के अनुसार पूर्वजन्म में इस देवी ने हिमालय के घर पुत्री रूप में जन्म लिया था और नारदजी के उपदेश से भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी। इस कठिन तपस्या के कारण इन्हें तपश्चारिणी अर्थात्‌ ब्रह्मचारिणी नाम से अभिहित किया गया। एक हजार वर्ष तक इन्होंने केवल फल-फूल खाकर बिताए और सौ वर्षों तक केवल जमीन पर रहकर शाक पर निर्वाह किया।
कुछ दिनों तक कठिन उपवास रखे और खुले आकाश के नीचे वर्षा और धूप के घोर कष्ट सहे। तीन हजार वर्षों तक टूटे हुए बिल्व पत्र खाए और भगवान शंकर की आराधना करती रहीं। इसके बाद तो उन्होंने सूखे बिल्व पत्र खाना भी छोड़ दिए। कई हजार वर्षों तक निर्जल और निराहार रह कर तपस्या करती रहीं।
पत्तों को खाना छोड़ देने के कारण ही इनका नाम अपर्णा नाम पड़ गया।कठिन तपस्या के कारण देवी का शरीर एकदम क्षीण हो गया। देवता, ऋषि, सिद्धगण, मुनि सभी ने ब्रह्मचारिणी की तपस्या को अभूतपूर्व पुण्य कृत्य बताया, सराहना की और कहा- हे देवी आज तक किसी ने इस तरह की कठोर तपस्या नहीं की। यह तुम्हीं से ही संभव थी। तुम्हारी मनोकामना परिपूर्ण होगी और भगवान चंद्रमौलि शिवजी तुम्हें पति रूप में प्राप्त होंगे। अब तपस्या छोड़कर घर लौट जाओ। जल्द ही तुम्हारे पिता तुम्हें बुलाने आ रहे हैं।
 

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