जोर शोर से चल रही धान की रोपाई, महिलाएं दे रही अमूल्य योगदान
उतराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में इन दिनों धान की रोपाई जोर शोर से चल रही है। उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में आज भी महिलाओं के समूह व महिला मंगदल की महिलाओं के द्वारा रोपाई, गुड़ाई,निराई को एकता के बंधन में करने का सिलसिला जारी रखा है।
महिलाऐं अपने घर के कामकाज गाय भैंसों को चारा देकर अलग-अलग गांवों के अलग-अलग परिवारों के खेतों में जाकर रोपाई करती है। इससे एक दूसरे के खोतों की रोपाई व गुडाई,निराई भी हो जाती है। और ख़ुद के खेतों का भी काम हो जाता है।
हर कार्यक्षेत्र में महिलाएं करती थी बढ़ चढ़कर प्रतिभाग
रुद्रप्रयाग छिनका गांव की 52 साल की सीमा गुसाई लोकगायिका ने बताया आज से पंद्रह-बीस साल पहले हम लोगों के द्वारा एक रोपाई ही नहीं बल्कि अन्य सुख-दुख दुःख व शादी ब्याह व अन्य सांस्कृतिक अनुष्ठान में बढ़-चढ़कर प्रतिभाग किया जाता था। लेकिन उत्तराखंड पृथक राज्य बनने के बाद धीरे-धीरे हमारे पर्वतीय क्षेत्रों में मात्र शक्तियों के द्बारा हर कामकाज व अन्य सुख-दुख व शादी ब्याह में पुराने समय के अनुसार कामकाज करने की रुचि व एकता कम होती जा रही है। इधर छिनका गांव की सरिता नेगी आशा कार्यकर्ता का कहना है हमारे गांव व हमारी ग्राम पंचायत में वर्षों से महिलाओं के द्वारा एक दूसरे के खेतों में रोपाई , गुड़ाई, निराई व अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रम व शादी ब्याह धार्मिक त्यौहारों में अभी सहयोग करने की प्रथा चली आ रही है।
रीति रिवाज से हमारी पहचान
अल्मोड़ा के प्रताप सिंह नेगी समाजिक कार्यकर्ता ने छिनका ग्राम पंचायत व लिगुडता ग्राम पंचायत की महिलाओं की प्रशंसा की और कहा कि महिला समूह की महिलाओं के द्वारा कुछ ना कुछ कार्यों में अपने स्तर से प्रतिभाग होता रहता है। जैसे इन ग्राम पंचायत की महिलाओं के द्बारा अभी भी अपनी संस्कृति व रीति रिवाजों को आगे करने में अपना सहयोग का योगदान मिलता है। ऐसे ही युवा पीढ़ी की महिलाओं को भी आगे आना चाहिए क्योंकि हमारी संस्कृति व रीति रिवाज से हमारी पहचान है।