राखी बांधने और जनेऊ धारण करने का ये है इस वर्ष खास मूहर्त, जानें
भाई बहनों से जुड़ा पवित्र त्यौहार रक्षाबंधन इस वर्ष 19 अगस्त को मनाया जा रहा है। इस वर्ष ऐसा बताया जा रहा है कि सोमवार को दोपहर 1 बजकर 31 मिनट तक भद्रा रहेगी। 19 अगस्त को दोपहर 1 बजकर 31 मिनट के बाद रक्षाबंधन का शुभ कार्य करना प्रशस्त होगा। रक्षाबंधन का पवित्र त्योहार भद्रा रहित अपराह्न व्यापिनी पूर्णिमा में करने का शास्त्रीय विधान है। दोपहर बाद भद्रा रहित काल में बहन भाइयों की कलाई पर राखी बांधेंगी, भद्रा का विशेष विचार रक्षाबंधन में किया जाता है।
रक्षाबंधन के साथ मनाई जाएगी जनेऊ पुन्यू
कुमाऊ मंडल में रक्षाबंधन के साथ -साथ जनेऊ पुन्यु का त्यौहार प्राचीन काल से ही मनाया जाता है। इस वर्ष यह श्रावण शुक्ल चतुर्थी 18 अगस्त को दो बजे से भद्रा शुरू हो जायेगा। सोमवार श्रावण पूर्णिमा को एक बजे भद्रा खत्म हो जायेगा एक बजे के बाद राखी बंधन व जनेऊ धारण किया जायेगा।
रक्षाबंधन के साथ साथ कुमाऊं में हर श्रावण पूर्णिमा में जन्यू पून्यू धारण करने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। एक तरफ श्रावण पूर्णिमा को भाई बहनों का रक्षाबंधन बडी धूमधाम से मनाया जाता है। दूसरी तरफ इस श्रावण पूर्णिमा को कुमाऊं के लोग नये जनेऊ धारण करते हैं।
रुई को कातकर बनाई जाती है जनेऊ
एक महीने पहले से उत्तराखंड के बड़े बुजुर्ग,व ब्रहामण,व ठाकुर लोग अपने पुरोहित के द्वारा बताए गये विधि विधान से रुई को कातकर हाथ में लटू के सहारे जनेऊ बनाते हैं।बहुत से लोग एक दो महीने हाथ से लटू के सहारे से जो जनेऊ बनाते हैं वहीं जनेऊ को निकटतम मार्केट में बेचते हैं,जो जन्यू पून्यू के दिन लोगों को नई जनेऊ धारण करने के काम आती है।जनेऊ का शुद्धिकरण के लिए किसी नदी के किनारे व किसी मंदिर में पंडित के द्वारा तर्पण किया जाता है संस्कृत भाषा में यज्ञोपवीत कहा जाता है। जनेऊ शुद्धिकरण के लिए तीन सूत्र बोला जाता है ब्रहमा, बिष्णु,महेश,ये तीन सूत्र पितृ ञण,देव ञण,श्रीशी ञण के प्रतीक होते हैं। जनेऊ में पांच गांठ लगाई जाती है ये पांच ज्ञानेंद्रियों , पांच यज्ञों व पांच कर्मों के प्रतीक होते हैं।
हैंड मेड जनेऊ का प्रचलन होता जा रहा कम
सामाजिक कार्यकर्ता नेगी बताते हैं कि आज़ से तीस चालीस साल पहले जन्यू पून्यू के लिए नये जनेऊ बनाने के लिए ठाकुर, ब्राह्मण, अन्य जाती के लोग एक दो महीने से रुई कातकर लटू के सहारे जनेऊ बनाया करते थे। अपने अपने पंडित के इन जनेऊ का तर्पण करा कर शुद्धिकरण करके जनेऊ धारण करते और अपने आस पास के लोगों को भी दिया करते थे। लेकिन समय का अभाव व पलायन के कारण अब ये हाथ से जनेऊ बनाने का प्रचलन धीरे-धीरे कम होते जा रहा है। आइये हम सब मिलकर जुलकर अपनी संस्कृति को आगे बढाये जनेऊ कैसे बनाया जाता अपने बड़े बुजुर्गो से सीखें।