मंगलवार को सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय अल्मोड़ा के भूगोल विभाग का बीए छठे सेमेस्टर का शैक्षणिक भ्रमण पिथौरागढ़ जिले के हाट काली मन्दिर और पाताल भुवनेश्वर गया, साथ ही मार्ग में पड़ने वाले, आदिमानव की शरण स्थली लखुउड्यार भी गये। यात्रा के दौरान विद्यार्थियों को विभिन भू आकृतियों जैसे नदी वेदिका, बाढ़ का मैदान आदि की जानकारी भी दी गई। ऊँचाई के सतह आने वाले वानस्पतिक परिवर्तनों के विषय में भी समझाया गया।
लखुउड्यार से भ्रमण किया प्रारंभ
सबसे पहले छात्र-छात्राओं ने लखुउड्यार देखा। यह स्थान अल्मोड़ा नगर से लगभग 12 किलोमीटर की दूरी पर बाड़ेछीना के पास स्थित है जहाँ 5000- 2000 BC पुराने रॉक शेल्टर मिले हैं। इन पर चित्रकारी भी की गई है। इस क्षेत्र में ऐसे कई और रॉक शेल्टर भी मिले हैं। विद्यार्थियों को बताया गया कि किस प्रकार आदि मानव ने नदी के समीप ही इस शरण स्थली को चुना होगा। इस युग में वह शिकार-संग्राहक अवस्था में था। बाद के काल में भी मानव ने अपने नगर नदियों के किनारे बसाये क्योंकि पानी मनुष्य की मूलभूत आवश्यकता है।
पाताल भुवनेश्वर गुफाएं प्रकृति की अनुपम कलाकृति
इसके बाद सभी भ्रमणकर्ता पिथौरागढ़ जिले के गंगोलीहाट में अवस्थित माँ काली के मंदिर हाट काली गये। इसके पश्चात् विद्यार्थी पाताल भुवनेश्वर गुफाओं की तरफ गये। ये गुफाएं प्रकृति की अनुपम कलाकृति हैं जिनको लोग संस्कृति से धर्म से भी भी जोड़ते हैं। भूविज्ञान और भूआकृति विज्ञान के दृष्टिकोण से देखा जाये तो इनका निर्माण भूमिगत जल और लाइम स्टोन से हुआ है। इन भू आकृतियों को कार्स्ट के नाम से जाना जाता है. ‘कार्स्ट’ यूगोस्लाविया में एक क्षेत्र है, जहाँ इस तरह की स्थलाकृति बहुतायात से मिलती है, जिसके नाम पर इस तरह की स्थलाकृति को पूरी दुनिया में ‘कार्स्ट टोपोग्राफी’ के नाम से जाना जाता है।
मानव जीवन में सीखने की प्रक्रिया हमेशा चलती रहती है। यह सीखना अलग-अलग तरीकों से होता है। इन तरीकों में शैक्षणिक भ्रमण एक अति महत्वपूर्ण यंत्र के रूप में काम करता है। किसी जगह और उसमें पाये जाने वाले स्थानिक विविधताओं को समझने के लिए भ्रमण एक स्थायी और जरूरी टूल है।
भ्रमण के दौरान उपस्थित रहे
भ्रमण के दौरान विभाग के प्राध्यापक डॉ० अरविन्द सिंह यादव, डॉ० पूरन जोशी ने विद्यार्थियों का मार्गदर्शन किया। इस भ्रमण में विभाग से डॉ० युगल पांडे एवं ललित सिंह पोखरिया भी उपस्थित रहे।