क्या हुआ मेरे पास पावँ नहीं,
पर ऊँची उड़ान भरने को मेरे हौसले हैं बुलंद,
चढ़ जाता हूँ बड़े दुर्गम पहाडों पर,
कर्म से लिखता हूँ मैं अपनी जीवन की कहानी,
कभी किसी पर न बनूँगा बोझ,
हूँ तन से दिव्यांग पर मन से नहीं।
मायूस होना कभी सीखा नहीं,
बना रहा हूँ स्वयं ही अपनी तकदीर,
लोगों की बातें व तानों को अनसुना कर
इतिहास बनाना है मुझे कर्मवीर बनकर,
आगे बढ़ना है लोगों की सोच बदलने के लिए,
कोई मुझे बोझ समझे यह मुझे स्वीकार नहीं,
हूँ तन से दिव्यांग पर मन से नहीं ।।
सौरभ तिवारी(मेडिकल कॉलेज अल्मोड़ा)