अल्मोड़ा: वीर साहिबजादे जोरावर सिंह और फतेह सिंह को सरस्वती शिशु मंदिर खगमराकोट में दी गई श्रद्धांजलि

वीर बाल दिवस के अवसर पर सरस्वती शिशु मंदिर खगमराकोट अल्मोड़ा में वीर साहिबजादे जोरावर सिंह और फतेह सिंह के त्याग, बलिदान, वीरता,साहस को याद करते हूए श्रद्धांजलि दी गई।

भाजपा ग्रामीण मण्डल अध्यक्ष प्रेम लटवाल की अध्यक्षता में दी गई श्रद्धांजलि

वीर बाल दिवस के अवसर पर, दिनांक 26.12.2023 को सरस्वती शिशु मंदिर खगमराकोट अल्मोड़ा में भाजपा ग्रामीण मण्डल अध्यक्ष प्रेम लटवाल की अध्यक्षता में वीर साहिबजादे, जोरावर सिह, और फतेह सिंह को श्रद्धांजलि अर्पित की गई।

क्विज,भाषण प्रतियोगिता का भी किया गया आयोजन

इसके साथ ही सरस्वती शिशु मंदिर के नन्हे मुन्ने बच्चों के लिए क्विज,भाषण प्रतियोगिता का भी आयोजन किया गया। तत्पश्चात सभी बच्चों को पुरस्कार वितरित किए गए।

कार्यक्रम में उपस्थित रहे

कार्यक्रम में भाजपा युवा मोर्चा अध्यक्ष  कन्हैया बिष्ट,ललित खोलिया,  शंकर लटवाल सहित दो दर्जन से अधिक लोग उपस्थित रहे।

कौन थे वीर साहिबजादे जोरावर सिंह और फतेह सिंह

जब गुरु गोबिंद सिंह को पूरे परिवार के साथ आनंदपुर साहिब किला छोड़ना पड़ा था। 20 दिसंबर, 1704 को मुगल सेना द्वारा अचानक आक्रमण के कारण जब गुरु गोबिंद सिंह पूरे परिवार के साथ सरसा नदी को पार कर रहे थे तभी अचानक आए तेज बहाव के कारण वह अपने परिवार से बिछड़ गए जिसमें उनके दोनों बड़े बेटे अजीत सिंह और जुझार सिंह उनके साथ थे और माता गुजरी तथा दोनों छोटे सुपुत्र जोरावर सिंह और फतेह सिंह अलग हो गए, जिनके साथ गुरु गोबिंद सिंह का निजी सेवक गंगू था। गंगू माता गुजरी और दोनों साहिबजादों को उनके परिवार से मिलाने का भरोसा देकर अपने गांव सहेड़ी ले गया और सोने की मोहरों के लालच में आकर उसने यह खबर सरहिंद के नवाब वजीर खान को दे दी।जिसके बाद माता गुजरी और दोनों साहिबजादों को मुगलों ने गिरफ्तार कर लिया।

इस्लाम कबूलने से किया इंकार

साहिबजादों को जब वजीर खान के समक्ष पेश किया गया तो उसने उन्हें सिर झुकाकर खड़ा होने और इस्लाम अपनाने को कहा, लेकिन इतने छोटे होकर भी दोनों ने सिर झुकाने और इस्लाम को अपनाने से मना करते हुए कहा कि हम अकाल पुरख और अपने गुरु पिता के अलावा किसी और के समक्ष सिर नहीं झुकाते। उसके बाद दोनों बच्चों को काफी ललचाया, डराया, धमकाया गया लेकिन वे अपनी बात पर अटल रहे। जिसके बाद  क्रूर नवाब ने दोनों को दीवार में जिंदा चिनवाने का आदेश दे डाला। जब उन्हें दीवार में चिना जाने लगा तो दोनों साहिबजादे जपुजी साहिब का पाठ करने लगे। दीवार चिनवाने के बाद दोनों ने हमारे देश की जय हो,के नारे लगाते हुए कहा कि दीवार बोलेगी, हजारों बार बोलेगी।हमारे देश की जय हो, हमारे पंथ की जय हो, श्री गुरु ग्रंथ की जय हो।

वीरता और बलिदान को सम्मान देना अत्यंत जरूरी

इस तरह वीर साहिबजादे जोरावर सिंह और फतेह सिंह के त्याग, बलिदान, वीरता,साहस को कभी नहीं भूला जा सकता है।आज की पीढ़ी दोनों वीरों के बारे में कम ही जानती है,ऐसे महान वीर बालकों का बलिदान व्यर्थ न जाए इसलिए उनकी वीरता और बलिदान को सम्मान देना अत्यंत जरूरी है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *