मकर संक्रान्ति भारत के प्रमुख त्योहारों में से एक माना जाता है। प्रकृति और कृषि को जोड़ने वाला यह पवित्र पर्व मकर संक्रांति पूरे देश में धूमधाम से मनाया जाता है। मकर संक्रांति भारत के अलावा नेपाल में भी अलग अलग तरीके से मनाया जाता है। उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में मकर संक्रांति को “घुघुतिया पर्व” के नाम से जाना जाता है जबकि गढ़वाल में इसे “खिचड़ी सक्रांति” के नाम से मनाया जाता है।
क्यों किया जाता है उत्तरायणी मेले का आयोजन
मकर संक्रान्ति (makar Sankranti)पर्व को उत्तरायण भी कहा जाता है। जनवरी माह की 14 तारीख के बाद से सूर्य उत्तर दिशा की ओर बढ़ने लगता है। इसलिए इस पर्व को ‘उतरायण’ भी कहा जाता है। इस मौके पर कई स्थानों में उत्तरायणीं मेले का आयोजन भी किया जाता है। बागेश्वर के बागनाथ में आयोजित किया जाने वाला उत्तरायणी का मेला काफी प्रसिद्ध है।इस वर्ष यह पंद्रह जनवरी को मनाया जाएगा। इस दिन सूर्य देव प्रातः 02 बजकर 54 मिनट पर धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करेंगे।
उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल का प्रमुख त्योहार घुघुतिया
घुघुतिया त्योहार उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल का प्रमुख त्योहार माना जाता है। एक लोक त्योहार होने की वजह से इसको मनाया जाने का तरीका भी काफी अलग और क्षेत्रीय परंपराओं और रहन सहन से प्रभावित होता है। देवभूमि उत्तराखंड के लोग अपने दिन तड़के ही नहाने धोने और घर की साफ सफाई में लग जाते हैं। इसके बाद लोग रसोई और पाल के फर्श को मिट्टी की सहायता से लिपाई पुताई करते हैं। अपने घर में स्थापित मंदिरों में इष्ट–देवताओं की पूजा अर्चना की जाती है। दोपहर के समय आटे से एक विशेष व्यंजन तैयार किया जाता है, जिसे घुघुतिया कहा जाता है। इसमें घुघुतिया की एक विशेष आकृति के अलावा विभिन्न खिलौनों का आकार देकर व्यंजन बनाए जाते हैं। मीठे आटे से बने इन ‘घुघुत’ को एक माला में पिरोया जाता है और छोटे बच्चे इसकी माला बनाकर मकर संक्रांति के दिन अपने गले में डालकर कौवे को आवाज देकर बुलाते हैं उन्हें घुघुट खाने का न्यौता देते हैं। कौवों को बुलाने के लिए पहाड़ी बोली में बच्चों द्वारा में बोले जाने ये बोल कुछ इस तरह हैं –
‘काले कौवा काले घुघुति माला खा ले’
‘लै कौवा भात में कै दे सुनक थात’
‘लै कौवा लगड़ में कै दे भैबनों दगड़’
‘लै कौवा बौड़ मेंकै दे सुनौक घ्वड़’
‘लै कौवा क्वे मेंकै दे भली भली ज्वे’
घुघुतिया के संबंध में प्रचलित लोककथा
वर्षों पूर्व कुमाऊं में चन्द्र वंश के राजा शासन किया करते थे। उन्ही में से एक राजा कल्याण चंद की कोई संतान नहीं थी। उत्तराधिकारी न होने के कारण उनके मंत्री को यह विश्वास था कि राजा के बाद राज्य मुझे ही मिलेगा। एक बार राजा कल्याण चंद सपत्नीक बाघनाथ मंदिर में गए और संतान के लिए प्रार्थना की। भगवान बाघनाथ की कृपा से उनका एक बेटा पैदा हो गया जिसका नाम निर्भयचंद रखा गया।
निर्भयचंद को उसकी मां प्यार से ‘घुघुति’ के नाम से बुलाया करती थी। घुघुति के गले में एक मोती की माला थी जिसमें घुंघुरू लगे हुए थे। इस माला को पहनकर घुघुति बहुत खुश रहता था। जब वह किसी बात पर जिद करता तो उसकी मां उससे कहती कि जिद न कर, नहीं तो मैं माला कौवे को दे दूंगी। अपने पुत्र को डराने के लिए मां कहती कि ‘काले कौवा काले घुघुति माला खा ले’। यह सुनकर कई बार कौवा आ जाता जिसको देखकर घुघुति जिद छोड़ देता था। जब मां के बुलाने पर कौवे आ जाते तो वह उनको कोई चीज खाने को दे देती। धीरे-धीरे घुघुति की कौवों के साथ दोस्ती हो गई।
वहीं राजा को उत्तराधिकारी मिलने के बाद मंत्री को राजगद्दी मिलने की उम्मीद पानी हो गई। मंत्री आए दिन घुघुति को मारने की तरकीब सोचने लगा ताकि उसी को राजगद्दी मिल सके। मंत्री अपने कुछ साथियों के साथ मिलकर एक दिन चुपके से घुघुटी को उठाकर ले गया। घुघुति को जंगल की ओर ले जाते समय एक कौवे ने उसे देख लिया और जोर-जोर से कांव-कांव करने लगा। अपने मित्र कौवे की आवाज सुनकर घुघुति जोर-जोर से रोने लगा और अपनी माला को उतारकर दिखाने लगा। धीरे धीरे कई कौवे एकत्रित हो गए और उनमें से एक कौवा घुघुति के हाथ से माला लेकर उड़ गया। अन्य सभी कौवों ने मंत्री और उसके साथियों पर हमला कर दिया।
अचानक हुआ हमले से घबराकर मंत्री और उसके साथी भाग खड़े हुए। घुघुति जंगल में अकेला रह गया और एक पेड़ के नीचे बैठ गया तथा सभी कौवे भी उसी पेड़ में बैठ गए। जो कौवा हार लेकर गया था, वह सीधा महल में जाकर एक पेड़ पर माला टांगकर जोर-जोर से कांव कांव करने लगा। ध्यान कौवे की तरफ आकर्षित होने पर घुघुती की मां ने बेटे के हार को पहचान लिया। इसके बाद कौवा एक पेड़ से दूसरे में उड़ने लगा और राजा और घुड़सवार सैनिक घुघुती की तलाश में उसका पीछा करने लगे। अंततः कौवा एक पेड़ पर जाकर रुक गया। राजा ने देखा कि पेड़ के नीचे उसका बेटा सोया हुआ है। राजा घुघुती को लेकर घर लौट आया।
राजा ने मंत्री और उसके साथियों को इस अपराध के लिए मृत्युदंड दे दिया। घुघुति के घर वापस आने पर मां ने बहुत सारे पकवान बनाए और घुघुति ने अपने मित्र कौवों को बुलाकर पकवान खिलाए। यह बात धीरे-धीरे पूरे कुमाऊं में फैल गई और इसने बच्चों के लोकपर्व का रूप ले लिया। उसके बाद प्रतिवर्ष घुघुतिया का त्योहार पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है और गले में घुघुती की माला पहने बच्चों की आवाज सुनाई देती है “काले कौवा काले घुघुति माला खा ले”।
घुघुतिया के संबंध में प्रचलित लोककथा
वर्षों पूर्व कुमाऊं में चन्द्र वंश के राजा शासन किया करते थे। उन्ही में से एक राजा कल्याण चंद की कोई संतान नहीं थी। उत्तराधिकारी न होने के कारण उनके मंत्री को यह विश्वास था कि राजा के बाद राज्य मुझे ही मिलेगा। एक बार राजा कल्याण चंद सपत्नीक बाघनाथ मंदिर में गए और संतान के लिए प्रार्थना की। भगवान बाघनाथ की कृपा से उनका एक बेटा पैदा हो गया जिसका नाम निर्भयचंद रखा गया।
उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल का प्रमुख त्योहार घुघुतिया