हिंदी एक समृद्ध और ध्वन्यात्मक भाषा है अर्थात जैसी पढ़ी वैसी लिखी जाती है। इसकी वर्णमाला से सभी प्रकार की ध्वनियों का उच्चारण किया जा सकता है और विश्व की किसी भाषा का लिप्यंतरण हिंदी की देवनागरी लिपि में किया जा सकता है। इसलिए यह वैज्ञानिक दृष्टि से भी सर्वश्रेष्ठ भाषा है।
हिंदी में सभी विषयों, संदर्भों और प्रयोजनों के लिए अपेक्षित पर्याप्त शब्दावली उपलब्ध
हिंदी में सभी विषयों, संदर्भों और प्रयोजनों के लिए अपेक्षित पर्याप्त शब्दावली उपलब्ध है। जिससे प्रभावशाली ढंग से विचार विनिमिय किया जा सकता है। इन सब विशेषताओं के होते हुए भी हिंदी समाचार माध्यमों, जिनमें हिदी समाचार पत्र-पत्रिकाओं के पत्रकार, संपादक और दूरदर्शन के चैनलों के समाचार वाचक आदि सम्मिलित है, के द्वारा हिंदी अंग्रेजी मिश्रित भाषा का अकारण प्रयोग करना एक प्रकार से भाषा विरोधी एवं निदंनीय कार्य है। हिंदी अंग्रेजी मिश्रित शब्दों का प्रयोग यह दर्शाता है कि हिंदी सशक्त एवं समृद्ध भाषा नहीं है तथा इसमें विचारों को व्यवस्थित ढंग से संप्रेषित करने की क्षमता नहीं है। इससे राष्ट्र के गौरव को ठेस पहुंचती है और विश्व में यह संदेश जाता है कि भारतीय नागरिक, बुद्धिजीवी, भारतीय पत्रकार और समाचार वाचक आदि इसे विकसित, परिष्कृत, संपन्न और सक्षम भाषा नहीं मानते। हिंदी प्रेमी पाठक जो भाषा की शुद्धता, व्यवस्थित वाक्य संरचना एवं विभिन्न संदर्भों, विषयों तथा प्रयोजनों के लिए विषयानुरूप हिंदी के शुद्ध, सटीक और उपयुक्त शब्दों से परिचित होना चाहते हैं, वे अपनी शब्द संपदा का संवर्द्धन करने के प्रयोजनार्थ अति उत्साह के साथ हिंदी समाचार पत्र पढ़ना और हिंदी समाचार सुनना आरंभ करते हैं, किंतु जब वे इन समाचार माध्यमों में हिंदी अंग्रेजी मिश्रित ‘हिंग्लिश‘ भाषा का अनावश्यक प्रयोग देखते हैं तब वे स्वयं को ठगा सा अनुभव करते हैं और हतोत्साहित होकर अंगे्रजी या मिश्रित भाषा का प्रयोग करने लगते हैं। आजकल हम देखते हैं कि फेसबुक, व्हाट्सएप और अन्य संचार माध्यमों पर लोगों में हिंदी के संदेशों को रोमन लिपि में लिप्यंतरण करके भेजने की प्रवृत्ति बढ़ रही है।
हिंदी समाचार चैनल भाषा के लचीलेपन के नाम पर बाजारू भाषा का प्रयोग करते हैं
आजकल हिंदी समाचार पत्र-पत्रिकाएं, हिंदी समाचार चैनल आदि बड़े व्यवसायिक समूहों में परिवर्तित हो गए हैं। ये समूह भाषा के लचीलेपन के नाम पर बाजारू भाषा का प्रयोग करते हैं। हिंदी समाचार पत्र-पत्रिकाओं में शीर्षक से लेकर विस्तृत समाचार और लेखों की सभी पंक्तियों में अंग्रेजी शब्दों का अनपेक्षित प्रयोग देखने को मिलता है जो हास्यास्पद प्रतीत होता है और भाषा के स्वरूप को विरूपित करता है।
इसके कुछ उदहारण देखिएः
1. डेमोक्रेसी में मीडिया का रोल, 2. सैंट्रल स्कूल में एडमिशन के लिए 10 मार्च तक रजिस्ट्रेशन, 3. पत्नी पर टाॅर्चर के आरोप में हस्बैंड अरेस्ट्स 4. इन्कम टैक्स रिटर्न फाईल करने की लास्ट डेट एक्सटेंडेड 5. बिजली प्राइवेटाइजेशन के विरुद्ध प्रोटेस्ट। क्या स्वयं को प्रगत मानने वाले हिंदी के पत्रकारों को यह प्रतीत होता है कि उपर्युक्त अंग्रेजी शब्दों जैसे डेमोक्रेसी, एडमिशन, टाॅर्चर, हसबैंड, अरेस्ट्स, इन्कम टैक्स, लास्ट डेट, प्रोटेस्ट आदि के स्थान पर लोकतंत्र, प्रवेश, उत्पीड़न, पति, गिरफ्तार या बंदी, आयकर अंतिम तिथि और प्रदर्शन जैसे शब्दों के हिंदी अर्थों को हिंदी के पाठकों के लिए समझना संभवतः उनकी बुद्धि की पहुंच के बाहर है।
सामान्य जन हिंदी की अपेक्षा अंग्रेजी के शब्दों को सुगमता से समझते हैं
इसके अतिरिक्त हिंदी समाचार पत्र-पत्रिकाओं में उच्चतम न्यायालय, उच्च न्यायालय, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, दिल्ली नगर पालिका, दिल्ली रेल मेट्रो काॅरपोरेशन, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र एवं ऐसे अन्य शब्दों को शुद्ध हिंदी में लिखना तो दूर बल्कि इनके अंग्रेजी संक्षेपाकार जैसे एस0सी0, एच0सी0, पी0एम0, सी0एम0, एम0सी0डी0, डी0एम0आर0सी0,ऐम्स और एन0सी0आर0 को उपर्युक्तानुसार देवनागरी में लिप्यंतरण करने के स्थान पर इन्हें रोमनलिपि जैसे शब्द उपेक्षा करने वाले हिंदी समाचार माध्यमों से संबद्ध कर्मी अप्रमाणिक रूप से मान लेते हैं कि मिश्रित भाषा के प्रयोग से भाषा में लचीलापन आता है और सामान्य जन हिंदी की अपेक्षा अंग्रेजी के शब्दों को सुगमता से समझते हैं। हिंदी के शुद्ध शब्द उन्हें बोझिल और नीरस लगते हैं। इस प्रकार हिंदी समाचार पत्रों में कार्यरत पत्रकार, संपादक और दूरदर्शन कके समाचार चैनलों के समाचार वाचक यह निराधर तर्क प्रस्तुत करते हैं कि हिंदी अंग्रेजी मिश्रित भाषा ‘हिंग्लिश‘ सरल भाषा है और ऐसी खिचड़ी भाषा ही आम जनता को रूचिकर लगती है। औपनिवेशिक मानसिकता से ग्रस्त इन पत्रकारों द्वारा हिंदी के पाठकों के बौद्धिक स्तर को कमतर आंकना और संचार की उन्नत भाषाओं में से सर्वश्रेष्ठ बोधगम्य हिंदी भाषा को बिदू्रप करने का कुत्सित कार्य एक प्रकार से जानबूझ कर अपराध करने के समान है। अथर्ववेद में भी अन्न, जल और वाणी को दूषित करने वालों की भत्र्सना की गई है।
देखिए अथर्ववेद के एक संस्कृत श्लोक का हिंदी अर्थ-
जो अन्न दूषित करें, मेरा और जल दूषित करें।
दूषित करें मेरा श्रेष्ठ वाणी, हे इंद्रदेव, हे अग्निदेव,
उन पर चलाइए अस्त्र, करिए प्रहार।
आंधी तूफान घन गर्जाइए। छोडिए अस्त्र, कीजिए घोर प्रहार।।
अंग्रेजी में कुछ शब्द जो हमारी दिनचर्या और बोलचाल की भाषा में समाहित हो चुके हैं उनके प्रयोग से हमें कोई आपत्ति नहीं होनी चािहए। जैसे रेलवे स्टेशन, ट्रेन, इंटरनेट, कंप्यूटर, मोबाइल, प्लेटफाॅर्म, बस स्टैण्ड आदि। किन्तु आज कल हिंदी समाचार पत्र-पत्रिकाओं में जिन अंग्रेजी के शब्दों का प्रयोग किया जा रहा है वे सहज भाव से नहीं आते हैं बल्कि उन्हें जानबूझ कर थोपा जाता है। अंग्रेजी के समाचार पत्र अपनी अंग्रेजी भाषा को परिष्कृत कर रहे हैं और इन समाचार पत्रों के शीर्षकों और विस्तृत समाचारों में हिंदी के शब्दों का प्रयोग नहीं किया जाता है। किन्तु उर्पयुक्तानुसार आचरण न करते हुए हिंदी समाचार माध्यमों से जुड़े कर्मी न जाने क्यों अकारण ही समाचारों के शीष्रकों में संभवतः तुकबंदी और अनुप्रास लाने के लिए और समाचारों को आकर्षण एवं जनप्रिय बनाने के नाम पर अंग्रेजी के शब्दों का प्रयोग कर रहे हैं। हिंदी के शब्द हमारी अंतर्रात्मा, प्रकृति और भगवान की सृष्ष्टि सेस जुड़े हैं। हिंदी के स्वाभाविक सौंदर्य और हिंदी के ओजस्व की अनुपम महिमा का वर्णन करती कुछ पंक्तियों का अवलोकन करेंः-
पंच महाभूतों की दिव्य शक्तियों से संपन्न हमारी हिंदी है।
आकाश के समान अनन्त असीम है जिसकी शब्दावली, वही हमारी हिंदी है।
जब मुख से निःसृत होती तब शीतल वाणु के सदृृश स्पर्श से रोम-रोम को पुलकित करती है।
अग्नि के ताप से तपकर स्वर्ण रेखाओं के समान जिसकी अनुपम लिपि चमकती है।
नदियों के निर्मल जल से सराबोर होकर तन-मन को
निमज्जित करने वाली हमारी हिंदी है।
भारत की सौंधी मिट्टी के संस्कारों से जो निकली वही हमारी हिंदी है।
मिश्रित भाषा के प्रयोग से अंग्रेजी के प्रयोग को बढ़ावा मिलता है
भाषा न केवल किसी राष्ट्र की पहचान होती है बल्कि हमारे पूर्वजों द्वारा स्थापित उच्च आदर्शों, मूल्यों एवं संस्कारों की संवाहिका भी होती है। अतः भारत के प्रबुद्ध नागरिकों, हिंदी पाठकों एवं हिंदी सेवियों का यह दायित्व बनता है कि वे हिंदी समाचार माध्यमों में अंग्रेजी के अनावश्यक प्रयोग को हतोत्साहित करने और इसे बाजारवाद के षड्यंत्र से बाहर निकालने के लिए समाचार-पत्र-पत्रिकाओं के संपादकों को पत्र लिखें कि हिंदी भाषा में अंग्रेजी का घालमेल राष्ट्र और जनता के हित में नहीं है। ऐसी खिचड़ी भाषा का प्रयोग अनुचित है और मिश्रित भाषा के प्रयोग से अंग्रेजी के प्रयोग को बढ़ावा मिलता है और इस कारण पाठकों को पढ़ने में रूचि भी नहीं होती। इससे पत्र-पत्रिकाओं का स्तर भी गिरता है और यदि भविष्य में मिश्रित भाषा के प्रयोग को बंद न किया गया तो हिंदी के समाचार पत्र-पत्रिकाओं और समाचार चैनलों का बहिष्कार करना पड़ेगा।
मिश्रित भाषा के प्रयोग से देश की छवि धूमिल होती है
सरकार को हिंदी समाचार माध्यमों को परामर्श एवं चेतावनी के रूप में पत्र जारी करना चाहिए। जिसमें हिंदी समाचार माध्यमों के उत्तरदायी प्रबंधकों को अवगत कराया जाएगा कि हिंदी का शुद्ध प्रयोग हमारा नैतिक, सामाजिक और राष्ट्रीय दायित्व है। मिश्रित भाषा के प्रयोग से देश की छवि धूमिल होती है। फिर भी यदि हिंदी समाचार माध्यम सरकारी आदेशों का अनुपालन नहीं करते तो सरकार को ऐसे समाचार समूहों कोे प्रदान की जाने वाली आर्थिक सहायता (सब्सिडी) बंद कर देनी चाहिए और उन्हें प्रदान की जा रही सभी प्रकार की सरकारी सुविधाओं से भी वंचित कर देना चाहिए। ऐसे समाचार प्रतिष्ठानों में सरकार की नीतियों, उपलब्धियों और योजनाओं से संबंधित सूचनाएं प्रकाशनार्थ प्रेषित न की जाए, और इन्हें सरकारी विज्ञापन भी प्रकाशनार्थ न भेजे जाएं।
हिंदी मौलिक विचारों की भाषा है। इसमें पाठक के साथ तादात्म्य बनाए रखने की शक्ति है
हिंदी मौलिक विचारों की भाषा है। इसमें पाठक के साथ तादात्म्य बनाए रखने की शक्ति है। हिंदी स्वतंत्रता आंददोलन की भाषा है और अखिल भारत में रहने वाले विभिन्न भाषा-भाषियों के मध्य संपर्क भाषा के रूप में स्वीकार्य है। समाचार माध्यम लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है इसलिए अपनी भाषा का प्रचार-प्रसार कर इसे और अधिक समृद्ध बनाना और इसकी अस्मिता की रक्षा करना प्रत्येक नागरिक का नैतिक कर्तव्य है। यदि हम राष्ट्रीय महत्व के इस पावन पुनीत कार्य को करने में अक्षम रहे तो भावी पीढ़ियां हमें भाषा को दूषित करने का दोषी ठहराएगी। इसके लिए हम सबको हिंदी के प्रति उदासीन भाव और अंग्रेजी के मोह को त्याग कर अपनी दिनचर्या, वार्तालाप और औपचारिक व अनौपचारिक पत्र लेखन आदि में पूर्ण रूप से हिंदी का प्रयोग कर हिंदी के स्वाभिमान की रक्षा करनी होगी। इसके अतिरिक्त हमें इलेक्ट्राॅनिक्स संचार माध्यमों फेसबुक, व्हाट्सऐप और अन्य माध्यमों पर सभी प्रकार के संदेश आदि भी देवनागरी लिपि में प्रेषित करने चाहिए।
भाषा सामाजिक संपत्ति है न कि व्यक्तिगत
भाषा सामाजिक संपत्ति है न कि व्यक्तिगत। हिंदी समाचार प्रतिष्ठानों के कर्मियों को इस आत्ममुग्धता का त्याग करना होगा कि हिंदी की अपेक्षा अंग्रेजी के शब्द पाठकों को रूचिकर लगते है। वास्तव में हिंदी समाचार पत्रों में अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग कर्णप्रिय भी प्रतीत नहीं होता। अतः स्वयं को प्रगतिशील समझने वाले समाचार माध्यमों के संपादकों, पत्रकारों और दूरदर्शन के समाचार वाचकों को अपने राष्ट्रीय दायित्व को समझना होगा ओर अहिंदी की अस्मिता की रक्षा के लिए उन्हें समाचार पत्र-पत्रिकाओं तथा समस्त समाचार माध्यमों में अंग्रेजी के शब्दों को प्रमुखता देने के स्थान पर जन सामान्य को हिंदी के शुद्ध और विराट स्वरूप से परिचित करवाना होगा ताकि हिंदी समाचार पढ़ने और सुनने में रोचक लगे तथा पाठको और श्रोताओं में हिंदी समाचार पढ़ने और सुनने की आतुरता उत्पन्न हो।