देवउठनी एकादशी आज, जानें श्रीहरि की कृपा से जुड़ी ये पौराणिक कथा
सनातन धर्म में एकादशी का अत्यधिक महत्व है। इस बार देवउठनी एकादशी का बारह नवंबर को यानी आज व्रत रखा जाएगा। सभी मांगलिक व शुभ कार्यों की आज से शुरुवात हो जाती है। ऐसी मान्यता है कि इसी दिन से भगवान विष्णु चार माह बाद योग निद्रा से जाग जाते हैं और सृष्टि का पुनः कार्यभार को संभालते हैं। देवउठनी एकादशी के दिन आवश्यक रूप से तुलसी माता की पूजा करनी चाहिए क्योंकि इस दिन तुलसी पूजा का सबसे ज्यादा महत्व होता है। कई लोग इस दिन तुलसी के पौधे का शालिग्राम भगवान से विवाह भी कराते हैं।
देवउठनी एकादशी तिथि व मूहर्त
इस बार कार्तिक माह की एकादशी 11 नवंबर को शाम के 6:46 बजे से लेकर 12 नवंबर को शाम 04:04 बजे तक रहेगी। ऐसे में 12 नवंबर को उदय तिथि में होने के कारण देवउठनी एकादशी का व्रत इसी दिन रखा जाएगा। वहीं इसका पारण 13 नवंबर को सुबह 6 बजे के बाद किया जाएगा।
देवउठनी व्रत कथा
प्राचीन मान्यताओं और ग्रंथों के अनुसार एक राज्य ऐसा था जहां एकादशी के दिन प्रजा से लेकर पशु तक कोई भी अन्न नहीं ग्रहण करता था। एक दिन भगवान विष्णु ने राजा की परीक्षा लेने की सोची और सुंदरी भेष बनाकर सड़क किनारे बैठ गए। राजा की भेंट जब सुंदरी से हुई तो उन्होंने उसके यहां बैठने का कारण पूछा। स्त्री ने बताया कि वह बेसहारा है। राजा उसके रूप पर मोहित हो गए और बोले कि तुम रानी बनकर मेरे साथ महल चलो।
स्त्री ने राजा के सामने रखी शर्त
सुंदर स्त्री के राजा के सामने शर्त रखी कि ये प्रस्ताव तभी स्वीकार करेगी जब उसे पूरे राज्य का अधिकार दिया जाएगा और वह जो बनाए राजा को खाना होगा। राजा ने यह शर्त मान ली। अगले दिन एकादशी पर सुंदरी ने बाजारों में बाकी दिनों की तरह अन्न बेचने का आदेश दिया। मांसाहार बनाकर राजा को खाने पर मजबूर करने लगी। राजा ने कहा कि आज एकादशी के व्रत में तो मैं सिर्फ फलाहार ग्रहण करता हूं। रानी ने शर्त याद दिलाते हुए राजा को कहा कि अगर यह तामसिक भोजन नहीं खाया तो मैं बड़े राजकुमार का सिर धड़ से अलग कर दूंगी।
धर्म का पालन करने की महारानी ने दी सलाह
राजा ने अपनी स्थिति बड़ी रानी को बताई। बड़ी महारानी ने राजा से धर्म का पालन करने की बात कही और अपने बेटे का सिर काट देने को मंजूर हो गई। राजा हताश थे और सुंदरी की बात न मानने पर राजकुमार का सिर देने को तैयार हो गए। सुंदरी के रूप में श्रीहरि राजा के धर्म के प्रति समर्पण को देख कर अति प्रसन्न हुए और उन्होंने अपने असली रूप में आकर राजा को दर्शन दिए।
परीक्षा में सफल हुए राजा
विष्णु जी ने राजा को बताया कि तुम मेरी परीक्षा में सफल हुए, कहो क्या वरदान चाहिए। राजा ने इस जीवन के लिए प्रभु का धन्यवाद किया कहा कि अब मेरा उद्धार कीजिए। राजा की प्रार्थना श्रीहरि ने स्वीकार की और वह मृत्यु के बाद राजा को बैंकुठ की प्राप्ति हुई।