साल में दो बार गुप्त नवरात्रि आती है। पहली माघ मास के शुक्ल पक्ष में और दूसरी आषाढ़ शुक्ल पक्ष में। कम ही लोगों को इसका ज्ञान होने के कारण या इसके छिपे हुए होने के कारण इन्हें गुप्त नवरात्र कहते हैं।वर्ष 2023 में आषाढ़ मास की गुप्त नवरात्रि 19 जून आज से शुरू हो गई है और 28 जून को इनका समापन होगा।
समस्त संकटों से मिलती है मुक्ति
गुप्त नवरात्रि में मां आदिशक्ति की दस महाविद्याओं की पूजा होती है। नवरात्रि में मां काली, तारा, त्रिपुरसुंदरी, भुवनेश्वरी, छिन्नमस्ता, त्रिपुरभैरवी, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी और देवी कमला इन 10 महाविद्याओं की विशेष पूजा-साधना की जाती है। सभी महाविधाओं की विशेष पूजा से जीवन के समस्त संकटों, परेशानियों से मुक्ति मिलती है और जीवन में धनलाभ, तरक्की तथा खुशहाली के कई रास्ते खुलते हैं और अपार धन की प्राप्ति होकर दरिद्रता भी दूर होती है।
जानें ये पौराणिक कथा
प्राचीन काल में जब सम्पूर्ण सृष्टी के जलमगन होने पर भगवान विष्णु शेषनाग की शय्या पर योगनिद्रा में लीन थे। तभी उसी समय अचानक, भगवान विष्णु के कान से मधु और कैटभ नाम के दो पराक्रमी असुर उत्पन्न हुए। यह दोनों असुर भगवान विष्णु की नाभि से उत्पन्न हुए कमल के फूल के ऊपर विराजमान ब्रह्मा जी को मारने का प्रयास करने लगे। जब ब्रह्माजी ने देखा कि दोनों असुर उन पर आक्रमण कर रहें हैं, तब उन्होंने अपनी रक्षा के लिये आदिशक्ति की आराधना की और सहायता के लिए आग्रह किया।उन दोनों असुरों के वध हेतु माँ आदिशक्ति, फाल्गुन शुक्ला की द्वादशी को माँ महाकाली के रूप में अवतरित हुई। उसी पल भगवान विष्णु भी योगनिद्रा से उठ गये और अपने समक्ष मधु और कैटभ नाम के असुरों को देखते हैं, तो वे दोनों असुरों के साथ युद्ध करनें लगतें है । पाँच हज़ार वर्षों तक, यह घन-घोर युद्ध चलता रहता है। परंतु भगवान उन्हें परास्त करने में असफल हुयें क्यों की दोनों असुरों को माँ आदिशक्ति ने पहले से ही इच्छा मृत्यु का वर दिया था।इसलिए भगवान विष्णु ने माँ महाकाली की स्तुति की। तब देवी माँ ने प्रसन्न होकर भगवान विष्णु को दोनों असुरों के अंत का वर दिया। देवी माँ की माया के प्रभाव से समोहित होकर दोनों असुर भ्रमित हो गयें। वे दोनों भ्रमित असुर भगवान विष्णु से कहते है, कि युद्ध से प्रसन्न होकर हम आपको वर देना चाहते हैं। इसलिए आप हमसे अपनी इच्छानुसार वर माँग सकते हैं।तब भगवान विष्णु उनसे कहते हैं, कि यदि तुम लोग मुझसे प्रसन्न हो तो मुझे यह वरदान दो कि तुम्हारी मृत्यु मेरे द्वारा हो जाये। माँ महाकाली की माया से भ्रमित वे दोनों असुर भगवान विष्णु को यह वरदान दे देते हैं, की आपके द्वारा हमारी मृत्यु होगी। तत्पश्चात, भगवान् विष्णु दोनों असुरों के मस्तक को सुदर्शन चक्र से काट देतें हैं।उनकी मृत्यु के पश्चात माँ महाकाली विश्राम के लिए हिमालय चली जाती है।
कुछ समय बाद, पाताल से दो असुर भाइयों शुंभ-निशुंभ का आगमन होता है। जो पृथ्वी पर अपना अधिपत्य हेतु देवी माँ आदिशक्ति को युद्ध की चुनौती देतें है। वे माता से युद्ध करने हेतु असुर रक्तबीज को भेजते हैं।असुर रक्तबीज को ब्रहमा जी से यह वरदान प्राप्त था की उसके रक्त की बूंद जहां भी जितनी भी गिरेगी वहाँ उतने ही असुर रक्तबीज उत्पन्न हो जाएगें । वरदान के फलस्वरूप, माँ आदिशक्ति जब भी रक्तबीज पर प्रहार करती थी। तब उसी समय रक्तबीज के घाव से रक्त की धरा के बूंद-बूंद से अनेक रक्तबीज उत्पन्न हो जाते थे। यह देखकर माँ आदिशक्ति, माँ महाकाली के रूप में वहाँ अवतरित हुई। माँ महाकाली रक्तबीज को देखकर मां काली क्रोध से भर उठीं और अपनी जीभ को इतना फैला लिया कि सारे रक्तबीज उसमें समा गए। अब जहां भी रक्तबीज का रक्त गिरता, मां काली उसे पी जाती। रक्तबीज को समाप्त करते हुए मां इतनी क्रोधित हो गईं कि उनको शांत करना मुश्किल हो गया। काली मां का यह रूप विनाशकारी हो सकता था, इसलिए सभी देवता भगवान शिव के पास पहुंचे और बोले कि आप ही मां का क्रोध शांत कर सकते हैं।मां काली के क्रोध को शांत करना भगवान शिव के लिए भी आसान नहीं था, इसलिए भगवान शिव काली मां के मार्ग में लेट गए। क्रोधित मां काली ने जैसे ही भगवान शिव के ऊपर पांव रखा वो झिझक कर ठहर गईं और उनका गुस्सा शांत हो गया। इस तरह भगवान शिव ने देवताओं की मदद की और मां काली के गुस्से को शांत किया। इस प्रकार माँ महाकाली ने रक्तबीज का वध किया मां ने दोनों असुर भाईयों का वध कर पृथ्वी को उनके भार से मुक्त किया।और देवताओं को उनके आतंक से मुक्ति प्रदान की।