सोलह श्राद्ध में अष्टमी व नौवमीं का हैं विशेष महत्व, जानें क्यों
pitru Paksh 2024 : significance of estemi and nomine in Sohala Sharad
सोलह श्राद्ध में अष्टमी व नौवमीं का महत्व सबसे अधिक बताया गया है। भारतवर्ष में हिन्दू सनातन धर्म के हिन्दू शास्त्रों के अनुसार हर साल भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से आश्विन कृष्ण अमावस्या तक सोलह दिनों को पितृ पक्ष कहा जाता है।इस बार यह तिथि 17 सिंतबर से दो अक्टूबर तक बताई गई है। सोलह श्राद्ध पितृ पक्ष में अलग-अलग तरीके से अलग-अलग श्राद्ध किये जाते हैं। दिवंगत पिता का श्राद्ध अष्टमी तिथि को तो माता का श्राद्ध नवमी तिथि को किया जाता है। जिन पूर्वजों की मृत्यु का पता नहीं होता है उन पूर्वजों के लिए श्राद्ध अंतिम दिन अमावस्या को पिंड दान के तौर पर किया जाता है। जिन परिजनों की अकाल मृत्यु या दुर्घटना या आत्महत्या का मामला होता है तो उनका श्राद्ध चतुर्दशी तिथि को किया जाता है।सन्यासी का श्राद्ध द्वादशी तिथि को किया जाता है।
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pitru Paksh 2024
पूर्वजों व पितरों के लिए किया जाता श्राद्ध
हिन्दू सनातन धर्म में देव ञण,ञषि ञण, पित्र ञण के लिए पूजा की जाती है।उसी प्रकार साल में एक बार सोल्ह श्राद्ध व पितृ पक्ष भी आता है। अपने पूर्वजों व पितरों के लिए ये श्राद्ध किये जाते हैं। बताया जाता है पितृ पक्ष सोलह श्राद्धों में पूर्वज धरती पर आये होते हैं। इसलिए हिन्दू शास्त्रों के अनुसार अपने अपने पूर्वजों का व माता पिता का श्राद्ध व पिंडदान किया जाता है।
सोलह श्राद्धों मंगल कार्य व शुभ कार्य करने के लिए हिन्दू शास्त्रों में मनाई है। जैसे शादी, ब्याह, मंदिरों में पूजा पाठ इत्यादि काम नहीं किये जाते हैं। सोलह श्राद्धों में सिर्फ पितृ पक्ष के श्राद्ध किये जाते हैं।
जैसे अन्य पूजा पाठों साल में अपना अपना महत्व है ऐसे ही सोल्ह श्राद्धों में अपने पूर्वजों व पितरों का श्राद्ध करके पित्र ञण से निवृत्ति प्राप्त होती है।
ऐसी मान्यता है कि दिवंगत पिता का श्राद्ध अष्टमी तिथि को तो माता का श्राद्ध नवमी तिथि को किया जाता है। इस दिन विवाहित महिलाओं का श्राद्ध करने का विधान है। इस तिथि को मातृ नवमी और सौभाग्यवती श्राद्ध के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि पिृत पक्ष की नवमी तिथि को विवाहित महिलाओं का श्राद्ध करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है और अपना आर्शीवाद प्रदान करती हैं। विवाहित महिला की मृत्यु किसी भी तिथि को क्यों न हुई हो, श्राद्ध की प्रक्रिया इस दिन पूर्ण की जा सकती है।
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अष्टमी नवमी का विशेष महत्व
प्रताप सिंह नेगी बताया हिन्दू शास्त्रों के अनुसार अष्टमी व नौवमीं का श्राद्ध इसलिए सबसे महत्वपूर्ण है। अष्टमी को पिता का श्राद्ध व नौमी को माता का श्राद्ध किया जाता है।
इसलिए अष्टमी श्राद्ध व नौवमीं श्राद्ध का सबसे बड़ा महत्व है।माता पिता का स्थान हमेशा देवी-देवताओं से भी पहले आता है।जिनके मां बाप इस दुनिया में नहीं है। उन मां बाप का श्राद्ध विधि विधान से पंडित के द्बारा बताये के अनुसार ये सोलह श्राद्ध करने चाहिए।
आजकल समय के अभाव के कारण व पलायन के नौकरी पेशे के कारण जैसे अन्य कार्यों में धीरे-धीरे गिरावट आ रही है ऐसे ही सोलह श्राद्धों कर्म में भी कमी आ रही है।