भारतीय भाषाओं के संरक्षण पर विचार किया जाना अति आवश्यक, बोधिसत्व व्याख्यान माला कार्यक्रम आयोजित
राजकीय महाविद्यालय, शीतलाखेत (अल्मोड़ा ) के व्याख्यान कक्ष में आयोजित “बोधिसत्व व्याख्यान माला” कार्यक्रम का प्रारंभ कार्यक्रम के संयोजक डॉ. खीमराज जोशी जी द्वारा महाविद्यालय के प्राचार्य एवं समस्त प्राध्यापक वर्ग का स्वागत कर किया गया। व्याख्यान माला कार्यक्रम के अंतर्गत मुख्य वक्ता हिन्दी विभाग प्रभारी डॉ० दीपिका आर्या द्वारा “वैश्विक परिदृश्य में भारतीय ज्ञान परंपरा की प्रासंगिकता” विषय पर अपना व्याख्यान दिया गया।
भारतीय ज्ञान परंपरा एक अक्षय भंडार
उनके द्वारा अपने व्याख्यान में कहा गया कि समस्त विषयों को स्वयं में समाहित करते अथाह सागर के रूप में हमें प्राप्त हमारी यह भारतीय ज्ञान परंपरा एक ऐसा अक्षय भंडार है जो हम सब भारतीयों को गौरवान्वित होने का अवसर प्रदान करती है। भारतीय ज्ञान परंपरा जिसमें वैदिक काल से हमें प्राप्त चतुर्वेद, उपनिषद, ब्राह्मण ग्रंथ, आरण्यक ,लौकिक ग्रंथ, महाभारत रामायण श्रीमद्भागवतगीता, वेदांग, दर्शन इत्यादि तथा श्रुति परंपरा से मौखिक रूप में प्राप्त ज्ञान एवं संस्कृति सभी समाहित है।
भारतीय ज्ञान परंपरा यह हमारे जीवन का महत्वपूर्ण अंग बन गई
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के द्वारा भारतीय ज्ञान परंपरा को केंद्रीय स्तंभ के रूप में स्थान देने के साथ ही यह हमारे जीवन का महत्वपूर्ण अंग बन गई है। हमारी भारतीय ज्ञान परंपरा को प्राथमिक इकाई से प्रौढ़ इकाई तक सभी कक्षाओं में सभी विषयों में प्रथम इकाई के रूप में जोड़ने का कार्य राष्ट्रीय शिक्षा नीति के द्वारा किया जा रहा है जिससे आने वाली पीढ़ी अपने भारतीय ज्ञान से अवगत हो और भारतीय संस्कृति से जुड़कर अपना सर्वांगीण विकास करते हुए विद्यार्थी अनुशासन, कर्म निष्ठा, कर्तव्य निष्ठा, सभी के प्रति सम्मान की भावना से युक्त होकर एक मूल्य परक जीवन का निर्वाह कर सके। प्राचीन समय में चलने वाली गुरु शिष्य परंपरा के मूल्य को अपनाकर शिक्षक एवं विद्यार्थी दोनों ही लाभान्वित हो सकते हैं।
जब शब्द गिरते हैं तो समाज का स्तर भी नीचे गिर जाता
भारतीय ज्ञान परंपरा वर्तमान परिदृश्य में अत्यंत महत्वपूर्ण इसलिए भी हो जाती है क्योंकि वर्तमान में समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार, अनैतिकता का बढ़ता स्तर कहीं ना कहीं इसी कारण है क्योंकि व्यक्ति अपनी जड़ों से, अपनी संस्कृति से ,साहित्य से दूर होता चला जा रहा है। जब शब्द गिरते हैं तो समाज का स्तर भी नीचे गिर जाता है। संस्कार युक्त स्वदेशी शिक्षा प्राप्त करके ही विद्यार्थी एक सफल जीवन जीते हुए अपने पारिवारिक , सामाजिक एवं राष्ट्रीय दायित्वों को निभाने में सक्षम हो सकता है। इसी कारण शिक्षकों एवं विद्यार्थियों सभी की शिक्षा पर राष्ट्रीय शिक्षा नीति कार्य कर रही है।
भारतीय ज्ञान परंपरा से प्राप्त असीम ग्रंथों में गणित, ज्योतिष,खगोल, विज्ञान, आयुर्वेद ,अर्थशास्त्र,धातु शास्त्र, राजनीति शास्त्र ,समाजशास्त्र, भाषा शास्त्र, काव्य शास्त्र, आहार शास्त्र ,चिकित्सा शास्त्र, स्थापत्य कला ,विमानशास्त्र, मनोविज्ञान, दर्शनशास्त्र , कृषिशास्त्र, वास्तु शास्त्र, वस्त्र विद्या, गौ विद्या,मधु विद्या, सौरविद्या , शस्त्रविद्या, जैसे अन्यान्य विषयों का प्रामाणिक विवरण प्राप्त है।यही समय है जब हमें अपने विषयों से संबंधित वर्तमान के नवाचार से, भारतीय ज्ञान परंपरा में निहित ज्ञान को एकीकृत कर नवीन शोध कार्य एवं परियोजनाओं के माध्यम से ज्ञानार्जन एवम पुनर्व्याख्या करनी होगी। अपनी भावी पीढ़ी को पंचकोशीय ज्ञान से जोड़कर ,अपनी ज्ञानेंद्रिय एवं कर्मेंद्रिय की शुद्धता को प्राप्तकर एक स्वस्थ मानसिकता वाले समाज के निर्माण हेतु प्रेरित करना अवश्यंभावी है।
भारतीय भाषाओं के संरक्षण पर भी विचार किया जाना अति आवश्यक
भारतीय भाषाओं के संरक्षण पर भी विचार किया जाना अति आवश्यक है क्योंकि विगत 50 वर्षों में 220 भाषाएं अपना अस्तित्व खो चुकी हैं और यूनेस्को ने 197 भारतीय भाषाओं को लुफ्तप्राय घोषित किया है जिनकी लिपि नहीं है। अपनी भाषाओं को किसी न किसी माध्यम से संरक्षित करने का कार्य हमें वर्तमान में करना ही होगा जिससे हम अपने देश की विभिन्न भाषाओं का संरक्षण कर बहुभाषिकता के गुण को बनाएं रख सके।
महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो.एल.पी.वर्मा जी द्वारा छात्र-छात्राओं को अंतःकरण की शुद्धता, ज्ञानेंद्रियों एवं कर्मेंद्रियों की शुद्धता के द्वारा प्रत्येक कार्य में निपुण होने की क्षमता विकसित करने हेतु प्रेरित किया गया।
इस अवसर पर उपस्थित जन
कार्यक्रम में प्राचार्य प्रो. एल. पी. वर्मा ,प्रो. अनुपमा तिवारी, डॉ सीमा प्रिया, डॉ दीपिका आर्या, डॉ. वसुंधरा लस्पाल, डॉ. खीमराज जोशी, डॉ. दिवाकर टम्टा एवं महाविद्यालय के छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे।