मौनी अमावस्या आज, स्नान दान का विशेष महत्व, जानें व्रत कथा

मौनी अमावस्या आज, स्नान दान का विशेष महत्व, जानें व्रत कथा


मौनी अमावस्या आज, स्नान दान का विशेष महत्व, जानें व्रत कथा

आज मौनी अमावस्या या माघ अमावस्या मनाई जा रही है। सनातन धर्म में इस तिथि का अत्यधिक महत्व है। मौनी अमावस्या के दिन मौन व्रत भी रखा जाता है। इस दिन मौन रहते हुए पवित्र नदियों में स्नान करने की परंपरा है। इस दिन विष्णु भगवान, शिव जी के साथ पीपल के पेड़ की पूजा – पाठ की जाती है।इस दिन स्नान-दान करने से व्यक्ति को जीवन में कई प्रकार के लाभ प्राप्त होते हैं। मौनी अमावस्या के दिन स्नान कर दान करने से पितरों की कृपा प्राप्त होती है। पितरों का तर्पण कर उन्हें प्रसन्न करने से जीवन में सुख-समृद्धि और शांति का आगमन होता है। 

मौनी अमावस्या तिथि

मौनी अमावस्या 9 फरवरी दिन शुक्रवार को है। मौनी अमावस्या की तिथि की शुरुआत 09 फरवरी को सुबह 08 बजकर 02 मिनट से होगी और इसके  10 जनवरी को सुबह 04 बजकर 28 मिनट पर अमावस्या  तिथि का समापन होगा।

जानें मौनी अमावस्या व्रत कथा

पौराणिक कथा के अनुसार एक नगर में एक ब्राह्मण रहता था जिसका नाम देवस्वामी था उसकी पत्नी धनवती और पुत्री गुणवती थी। ब्राह्मण के 7 पुत्र थे। देवस्वामी ने अपने सभी पुत्रों का विवाह कर दिया और फिर पुत्री के विवाह के लिए वर की तलाश के लिए अपने बड़े बेटे को नगर से बाहर भेज दिया।

जब देवस्वामी ने अपनी बेटी की कुंडली ज्योतिषी को दिखाई तो उन्होंने कहा कि विवाह के समय सप्तपदी होते ही यह कन्या विधवा हो जाएगी। यह सुनकर ब्राह्मण दुखी हो गया, और इसने इसका उपाय पूछा। तब ज्योतिषी ने कहा कि इसका उपाय सिंहलद्वीप निवासी सोमा नामक धोबिन को घर बुलाकर उसकी पूजा -अर्चना करने से ही संभव होगा।

तभी देवस्वामी ने अपने सबसे छोटे बेटे और पुत्री को सोमा धोबन को घर लाने के लिए सिंहलद्वीप भेज दिया। दोनों भाई – बहन समुद्र तट पर पहुंचे, लेकिन समुद्र को पार नहीं कर पाए और भूखे-प्यासे एक वट वृक्ष की छाया में बैठ गए। उस वट वृक्ष पर एक गिद्ध का पूरा परिवार रहता था।
भाई – बहन को परेशान देखकर गिद्ध के बच्चों ने अपनी मां को ये सारी बात बताई।  गिद्धनी को ये सारी बात सुनकर दया आ गई और वो उन दोनों भाई-बहन के पास गई और कहा कि तुम दोनों की भोजन कर लो। मैं सुबह होते ही तुम दोनों को समुद्र पार कराकर सोमा के पास पहुंचा दूंगी।
सुबह होते होते गिद्धनी ने उन दोनों को सोमा के घर पहुंचा दिया।फिर वे सोमा धोबिन को घर लेकर आए और उसकी पूजा – अर्चना की, जिसके बाद गुणवती का विवाह हुआ। सप्तपदी होते ही गुणवती के पति की मृत्यु हो गई। तब सोमा ने गुणवती को अपने पुण्य का फल दान कर दिया, जिससे उसका पति जीवित हो उठा।
इसके बाद सोमा उन दोनों को आशीर्वाद देकर सिंहलद्वीप चली गई। सोमा का पुण्य चले जाने से उसके दामाद, पुत्र और पति की मृत्यु हो गई। तब उसने एक नदी के किनारे स्थित एक पीपल के पेड़ के नीचे विष्णु भगवान की पूजा की और पीपल की 108 बार परिक्रमा की।जिसके बाद सोमा के पति, पुत्र और दामाद फिर से जीवित हो उठे।

क्या दान करें?

मौनी अमावस्या के दिन चावल का दान करना उत्तम माना गया है। इसके अलावा आप चीनी, तिल, अनाज, दूध गर्म कपड़े आदि वस्तुओं का अपनी सामर्थ्य के अनुसार दान कर सकते हैं ।  इससे भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है और व्यक्ति मृत्यु पश्चात उत्तम लोक में स्थान पाता है। व्यक्ति मुनि पद को प्राप्त करता है। एक मान्यता है कि मौनी अमावस्या के दिन मनुष्यों के धरती पर लाने वाले प्रथम मनुष्य मनु ऋषि का जन्म हुआ था। मनु ऋषि के नाम से भी इस व्रत का नाम मौनी अमावस्या है।

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