प्रो० दीवान सिंह रावत बने जीबी पन्त राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान,अल्मोड़ा की वैज्ञानिक सलाहकार समिति (SAC) के अध्यक्ष
कुमाऊं विश्वविद्यालय, नैनीताल, उत्तराखंड के कुलपति प्रोफेसर दीवान सिंह रावत (एफ.एन.ए.एस.सी., एफ.आर.एस.सी., सीकैम (लंदन) को पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा 30 जनवरी, 2024 से अगले तीन वर्षों के लिए गोविन्द बल्लभ पन्त राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान, कोसी-कटारमल, अल्मोड़ा, उत्तराखंड की वैज्ञानिक सलाहकार समिति (SAC) का अध्यक्ष मनोनीत किया गया है।
प्रोफेसर रावत ने 158 से अधिक शोध पत्र प्रकाशित किए
प्रोफेसर दीवान सिंह रावत मूल रूप से बागेश्वर जिले के काफलीगैर तहसील के रैखोली गांव के रहने वाले हैं। प्रोफेसर दीवान एस रावत जुलाई 2003 में दिल्ली विश्वविद्यालय के कमेस्ट्री डिपार्टमेंट में एक रीडर के रूप में शामिल हुए, और मार्च 2010 में प्रोफेसर के रूप में पदोन्नत हुए। उन्होंने 1993 में कुमाऊं विश्वविद्यालय, नैनीताल से अपनी मास्टर डिग्री प्राप्त की और विश्वविद्यालय में प्रथम स्थान हासिल करने के लिए योग्यता प्रमाण पत्र से सम्मानित किया गया। उन्होंने केंद्रीय औषधि अनुसंधान संस्थान, लखनऊ से औषधीय रसायन विज्ञान में पीएचडी की। उन्होंने फार्मास्युटिकल उद्योग में दो साल काम किया और इंडियाना विश्वविद्यालय और पर्ड्यू विश्वविद्यालय, अमेरिका में पोस्ट डॉक्टरल काम किया। वह 2003 में दिल्ली विश्वविद्यालय में शामिल होने से पहले नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फार्मास्यूटिकल एजुकेशन एंड रिसर्च (एनआईपीईआर), मोहाली में औषधीय रसायन विज्ञान के सहायक प्रोफेसर थे। प्रोफेसर रावत ने 158 से अधिक शोध पत्र प्रकाशित किए हैं। उन्होंने एक पुस्तक, तीन पुस्तक अध्याय लिखे हैं तथा 9 पेटेंट उनके नाम पर दर्ज हैं। विशेषकर उन्होंने एंटीकैंसर, एंटीमाइरियल, रोगाणुरोधी और एंटी-पार्किंसंस एजेंट और नैनो-उत्प्रेरण जैसे क्षेत्रों में कार्य किया है तथा उन्होंने पार्किंसंस रोग के इलाज के लिए एक दवा विकसित की है जिसका लाइसेंस बोस्टन स्थित दवा उद्योग को दिया गया है।
विभिन्न राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित हैं प्रोफेसर रावत
प्रोफेसर रावत भारतीय विज्ञान कांग्रेस (2019-2020) के अनुभागीय अध्यक्ष थे और विभिन्न राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित हैं जैसे सीआरएसआई युवा वैज्ञानिक पुरस्कार (2007); आईएससीबी युवा वैज्ञानिक पुरस्कार (2010); डीपी चक्रवर्ती 60 वीं जयंती स्मरणोत्सव पुरस्कार (2007); कुलपति प्रतीक चिन्ह सम्मान, कुमाऊं विश्वविद्यालय नैनीताल (2011); गोल्ड बैज और डिप्लोमा, इंटरनेशनल साइंटिफिक पार्टनरशिप फाउंडेशन, रूस (2015); प्रोफेसर आरसी शाह मेमोरियल लेक्चर अवार्ड, भारतीय विज्ञान कांग्रेस (2015); प्रोफेसर एसपी हिरेमठ मेमोरियल अवार्ड, इंडियन काउंसिल ऑफ केमिस्ट (2016); अनुकरणीय सेवाओं के लिए विशेष प्रशंसा पुरस्कार, दिल्ली विश्वविद्यालय (2021); प्लेटिनम जुबली व्याख्यान, भारतीय विज्ञान कांग्रेस (2021) आदि। प्रोफेसर रावत जापान एडवांस्ड इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी (जेएआईएसटी), जापान में विजिटिंग प्रोफेसर भी रहे हैं। उन्हें नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज, रॉयल सोसाइटी ऑफ केमिस्ट्री (FRSC) और सीकैम (CChem) (लंदन) के फेलो के लिए चुना गया है।
प्रो० रावत ने अब तक 26 शोध छात्र छात्राओं से पीएचडी करवाई
प्रो० रावत ने अब तक 26 शोध छात्र छात्राओं से पीएचडी करवाई है। प्रोफेसर रावत नेचर साइंटिफिक रिपोर्ट्स और आरएससी एडवांसेज के एसोसिएट एडिटर हैं, और एसीएस बायोकॉन्जुगेट केमिस्ट्री, एंटी-कैंसर एजेंट्स इन मेडिसिनल केमिस्ट्री और मरीन ड्रग्स के अंतर्राष्ट्रीय संपादकीय सलाहकार बोर्ड में भी कार्य करते हैं। उन्होंने औषधीय रसायन विज्ञान और वर्तमान प्रोटीन और पेप्टाइड विज्ञान में एंटी-कैंसर एजेंटों के अतिथि संपादक के रूप में कार्य किया है।
दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रोफेसर रावत कमेस्ट्री डिपार्टमेंट के विभागाध्यक्ष रह चुके हैं तथा विश्वविद्यालय में रहते हुए उन्होंने वार्डन / प्रोवोस्ट, जुबली हॉल, ओएसडी यूनिवर्सिटी प्रेस; मुख्य चुनाव अधिकारी-दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ (DUSU); कोषाध्यक्ष (डीयूएसयू) और समन्वयक एम.टेक केमिकल सिंथेसिस एंड प्रोसेस टेक्नोलॉजीज जैसी विभिन्न क्षमताओं के साथ विश्वविद्यालय की सेवा की है। वर्तमान में प्रोफेसर रावत कुमाऊं विश्वविद्यालय, नैनीताल, उत्तराखंड के माननीय कुलपति के रूप में कार्य कर रहे हैं।
संस्थान को प्रो० रावत के अनुभव का लाभ मिलेगा
प्रोफेसर रावत के संस्थान की वैज्ञानिक सलाहकार समिति (SAC) के अध्यक्ष मनोनीत किये जाने पर संस्थान के निदेशक प्रो० सुनील नौटियाल तथा सभी वैज्ञानिकों ने प्रसन्नता व्यक्त की है। उनकी नियुक्ति पर संस्थान के निदेशक प्रो० सुनील नौटियाल ने कहा कि संस्थान को उनके अनुभव का लाभ मिलेगा तथा उनके दिशा निर्देशों से संस्थान के शोध और विकास कार्यों को बल मिलेगा।