षटतिला एकादशी आज, तिल के प्रयोग का विशेष महत्व, जानें पौराणिक कथा
षटतिला एकादशी का सनातन धर्म में बहुत अधिक महत्व है। माघ मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को षटतिला एकादशी के नाम से जाना जाता है। एकादशी का दिन श्री हरि को समर्पित माना जाता है। इस दिन विधि विधान से भगवान विष्णु की पूजा अर्चना की जाती है।
षटतिला एकादशी व्रत,तिथि छः फरवरी
षटतिला एकादशी का व्रत माघ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी के दिन रखा जाता है। पंचांग के अनुसार माघ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी 5 फरवरी को शाम 05 बजकर 24 मिनट से शुरू होकर 6 फरवरी को शाम 04 बजकर 07 मिनट तक रहेगी। और प्रकार 6 फरवरी को षटतिला एकादशी का व्रत रखा जाएगा ।
षटतिला एकादशी व्रत से, मोक्ष की प्राप्ति
मान्यता है कि एकादशी व्रत करने से मृत्यु के पश्चात मोक्ष की प्राप्ति होती है। षटतिला एकादशी को व्रत के साथ-साथ भगवान को तिल का भोग लगाया जाना चाहिए साथ ही इस दिन तिल का दान करने से भी विशेष फल की प्राप्ति होती है और प्रसाद में भी तिल की सामग्री का सेवन अवश्य करना चाहिए। षटतिला एकादशी करने से व्यक्ति को रोग दोष और भय से मुक्ति मिलती है।। इस दिन तिल स्नान, तिल का उबटन, तिल का हवन, तिल का तर्पण, तिल का भोजन और तिलों का दान- ये तिल के 6 प्रकार हैं। इनके प्रयोग के कारण यह षटतिला एकादशी कहलाती है।
षटतिला एकादशी, पूजन विधि
एकादशी तिथि के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि के बाद घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित करें।भगवान विष्णु का गंगाजल से अभिषेक करें।षटतिला एकादशी के दिन काले तिल के दान का बड़ा महत्त्व है। भगवान विष्णु को पंचामृत में तिल मिलाकर स्नान कराएं। भगवान विष्णु को इसके बाद पुष्प अर्पित करें। साथ ही लक्ष्मी माता की भी साथ में पूजा करें। भगवान को सात्विक चीजों का ही भोग लगाएं और भोग में तुलसी जरूर शामिल करें। इस दिन चावल का सेवन न करें।
जानें पौराणिक कथा
भगवान विष्णु ने नारद जी को षटतिला एकादशी व्रत की महिमा इस प्रकार सुनाई, एक नगर में एक ब्राह्मणी निवास करती थी। वह भगवान विष्णु की भक्त थी। सभी व्रतों को वह नियम से करती थी। जब उसने एक बार उसने एक महीने तक व्रत और उपवास रखा तो उसका शरीर दुर्बल हो गया, लेकिन तन शुद्ध हो गया। अपने भक्त को देखकर भगवान ने सोचा कि तन शुद्धि से इसे बैकुंठ तो प्राप्त हो जाएगा, लेकिन उसका मन तृप्त नहीं होगा। उसने एक गलती की थी कि व्रत के समय कभी भी किसी को कोई दान नहीं दिया था। इस वजह से उसे विष्णुलोक में तृप्ति नहीं मिलेगी। तब भगवान स्वयं उससे दान लेने के लिए उसके घर पर गए। जब भगवान विष्णु ब्राह्मणी के घर भिक्षा लेने गए, तो उसने भगवान विष्णु को दान में मिट्टी का एक पिंड दे दिया। इसके बाद विष्णु वहां से चले गए।
कुछ समय बाद ब्राह्मणी का निधन हो गया और वह विष्णुलोक पहुंच गई। उसे वहां पर रहने के लिए एक कुटिया मिली, जिसमें केवल एक आम का पेड़ था। उसने पूछा कि इतना व्रत करने का क्या लाभ? उसे यहां पर खाली कुटिया और आम का पेड़ मिला। तब श्रीहरि ने कहा कि तुमने मनुष्य जीवन में कभी भी अन्न या धन का दान नहीं दिया। जिसका यह परिणाम है। यह सुनकर उसे पश्चाताप होने लगा, उसने प्रभु से इसका उपाय पूछा।
तब भगवान विष्णु ने कहा कि जब देव कन्याएं तुमसे मिलने आएं, तो तुम उनसे षटतिला एकादशी व्रत करने की विधि पूछना। जब तक वे इसके बारे में बता न दें, तब तक तुम कुटिया का द्वार मत खोलना। भगवान विष्णु के बताए अनुसार ही उस ब्राह्मणी ने किया। देव कन्याओं से विधि जानने के बाद उसने भी षटतिला एकादशी व्रत किया। उस व्रत के प्रभाव से उसकी कुटिया सभी आवश्यक वस्तुओं, धन-धान्य आदि से भर गई। वह भी रुपवती हो गई।
इस प्रकार षटतिला एकादशी के दिन तिल का दान करने से सौभाग्य बढ़ता है, दरिद्रता दूर होती है। व्यक्ति को रोग दोष और भय से मुक्ति मिलती है। एकादशी के व्रत से मोक्ष की प्राप्ति होती है।