मां कात्यायनी को समर्पित है नवरात्रि का छठा दिन, जानें यह प्रचलित कथा

मां कात्यायनी को समर्पित है नवरात्रि का छठा दिन, जानें यह प्रचलित कथा

नवरात्रि के छठा दिन मां कात्यायनी को समर्पित है। इस दिन मां की अराधना से मां भक्तों को मनचाहा वरदान प्रदान करती हैं। मां की भक्ति से जीवन सफल और शरीर को निरोग बनी रहता है।  कहा जाता है कि मां की की उपासना करने से परम पद की प्राप्ति होती है। 

ऐसा है मां का स्वरूप

मां का रूप अत्यंत भव्य और दिव्य है। ये स्वर्ण के समान चमकीली हैं । इनकी चार भुजाएं हैं। दाईं तरफ का ऊपर वाला हाथ अभयमुद्रा में है तथा नीचे वाला हाथ वर मुद्रा में। मां के बाईं तरफ के ऊपर वाले हाथ में तलवार है व नीचे वाले हाथ में कमल का फूल सुशोभित है।मां की सवारी भी सिंह है। इनकी उपासना और आराधना से भक्तों को बड़ी आसानी से अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति होती है। उसके रोग, शोक, संताप और भय नष्ट हो जाते हैं। जन्मों के समस्त पाप भी नष्ट हो जाते हैं।

जानें ये कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, प्राचीन समय में महर्षि कात्यायन ने संतान प्राप्ति के लिए मां भगवती की  तपस्या की। उनकी तपस्या से मां भगवती प्रसन्न होकर महर्षि कात्यायन को दर्शन दिए। इस दौरान महर्षि ने उनके सामने अपनी इच्छा प्रकट की। इसपर उन्होंने महर्षि को वचन दिया कि वह उनके घर उनकी पुत्री के रूप में जन्म लेंगी। एक बार महिषासुर नाम के एक दैत्य का अत्याचार तीनों लोकों पर बढ़ता जा रहा था। ऐसा देख सभी देवी-देवता परेशान हो गए।
तब त्रिदेव – ब्रह्मा, विष्णु और महेश अर्थात भगवान शिव के तेज से देवी को उत्पन्न किया जिन्होने महर्षि कात्यायन के घर जन्म लिया। महर्षि के घर जन्म लेने की वजह से उन्हें कात्यायनी नाम दिया गया। माता रानी के घर में पुत्री के रूप में जन्म लेने के बाद ऋषि कात्यायन ने सप्तमी, अष्टमी और नवमी तिथि पर मां कात्यायनी की विशेष उपासना की। इसके पश्चात मां कात्यायनी ने दशमी के दिन महिषासुर का वध किया और तीनों लोकों को उसके अत्याचारों से मुक्ति मिली।

इन मंत्रों का करें जप

चंद्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना। कात्यायनी शुभं दद्याद् देवी दानवघातिनी॥  

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कात्यायनी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥  




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