नवरात्रि का चतुर्थ दिवस दिन मां कूष्मांडा को समर्पित,जानें मंत्र और कथा
नवरात्रि के चौथे दिन मां कूष्मांडा की पूजा का विधान है। मान्यता है की मां कूष्मांडा ने ही ब्रह्माण्ड की रचना की है। मां सच्चे मन से की गई पूजा-भक्ति से शीघ्र प्रसन्न हो जाती हैं और भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण करती है। जगत जननी आदिशक्ति मां दुर्गा की महिमा निराली हैं।उनकी कृपा से भक्तों के जीवन में मंगल ही मंगल होता है।
पूजन विधि
नवरात्र के चौथे दिन सुबह जल्दी उठकर घर की सफाई करने के बाद स्नान आदि से निवृत होकर मंदिर में एक चौकी पर माता की तस्वीर या प्रतिमा स्थापित करें। इसके बाद देवी कूष्माण्डा की पूजा शुरू करें। इसके बाद व्रत, पूजन का संकल्प लें और फिर मां कूष्माण्डा सहित समस्त स्थापित देवताओं की षोडशोपचार पूजा करें। फिर माता की कथा सुनें, इनके मंत्रों का जाप करते हुए ध्यान करें और अंत में आरती उतारकर तत्पश्चात प्रसाद वितरण कर पूजन संपन्न करें। अंत में माता को मालपुए या फिर कुम्हरे (कद्दू) से बने पेठे का भोग लगाएं।
जानें व्रत कथा
पौराणिक मान्यता के अनुसार मां कूष्मांडा से तात्पर्य है कुम्हड़ा। कहा जाता है कि संसार को दैत्यों के अत्याचार से मुक्त करने हेतु मां दुर्गा ने देवी कूष्मांडा का अवतार लिया था। इस देवी का वाहन सिंह है। संस्कृति में कुम्हड़े को कुष्मांड कहते हैं इसलिए इस देवी को कुष्मांडा।ऐसा माना जाता है कि जब सृष्टि की रचना नहीं हुई थी उस समय चारों तरफ अंधकार था, तब देवी के इस स्वरूप द्वारा ब्रह्माण्ड का जन्म हुआ। देवी कूष्मांडा अष्टभुजा से युक्त हैं अत: इन्हें देवी अष्टभुजा के नाम से भी जाना जाता है। ये भक्तों के कष्ट रोग, शोक संतापों का नाश करती हैं।
इन मंत्रों का करें उच्चारण
या देवी सर्वभूतेषु मां कूष्मांडा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।