आज मनाई जाएगी अष्टमी और नवमी, जानें दोनों दिनों से जुड़ी ये कथा और मंत्र
इस बार आज ही ग्यारह अक्टूबर को नवरात्रि की अष्टमी और नवमी तिथि मनाई जा रही है। नवरात्रि के आठवें दिन महागौरी की आराधना की जाती है। वहीं नवमी के दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा का विधान है। महागौरी माता नवदुर्गाओं में से आठवीं देवी मानी जाती है। मां की उपासना करने से जीवन में सुख समृद्धि आती है साथ ही मां हर दु:ख को दूर कर आशीर्वाद देती है। वहीं मां सिद्धिदात्री माता दुर्गा का यह स्वरूप सिद्ध और मोक्ष देने वाला है इसलिए माता को मां सिद्धिदात्री कहा जाता है। इनकी पूजा-अर्चना करने से सभी कार्य सिद्ध होते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
ऐसा है मां महागौरी का स्वरूप
मां महागौरी धन वैभव और सुख-शांति की अधिष्ठात्री देवी हैं। सांसारिक रूप में इनका स्वरूप बहुत ही उज्जवल कोमल, श्वेतवर्ण और श्वेत वस्त्रधारी है। देवी महागौरी को गायन-संगीत प्रिय है और यह सफेद वृषभ यानी बैल पर सवार हैं। इन दिन कन्या पूजन का भी विधान है। कुछ लोग नवमी के दिन भी कन्या पूजन करते हैं, लेकिन अष्ठमी के दिन कन्या पूजना करना श्रेष्ठ रहता है।
शुभ तिथि और मुहूर्त
पंचांग के अनुसार, नवरात्रि की अष्टमी तिथि 10 अक्टूबर दिन गुरुवार को दोपहर 12 बजकर 31 मिनट पर शुरू होगी और 11 अक्टूबर, दिन शुक्रवार को दोपहर 12 बजकर 6 मिनट पर समाप्त होगी। इसके बाद नवमी की तिथि प्रारंभ होगी। जो बारह अक्टूबर को सुबह 10 बजकर 59 मिनट तक रहेगी। इस दिन महागौरी माता की पूजा के लिए शुभ समय सुबह 6 बजकर 20 मिनट से सुबह 7 बजकर 47 मिनट रहेगा। अमृत काल में सबसे शुभ मुहूर्त सुबह 9 बजकर 14 मिनट से 10 बजकर 41 मिनट तक रहेगा।
जानें मां महागौरी से जुड़ी ये प्रचलित कथा
पौराणिक मान्यता के अनुसार, मां पार्वती ने भगवान शिव को प्राप्त करने के लिए कई हजार वर्षों तक कठोर तप किया। इस तप के दौरान उन्होंने जल और अन्न का सेवन नहीं किया, जिसके कारण उनका शरीर काला हो गया। मां पार्वती की तपस्या से प्रभावित होकर भगवान शिव ने उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया. महादेव ने तपस्या के समय उनके शरीर के काले पड़ने के कारण उन्हें गंगा जल से शुद्ध किया, जिसके परिणामस्वरूप उनका शरीर पुनः चमकदार हो गया। गंगा जल के प्रभाव से उनका रंग सफेद हो गया, जिससे उन्हें महागौरी के नाम से जाना जाने लगा।
मां सिद्धिदात्री व्रत कथा
भगवान शिव ने मां सिद्धिदात्री की कठोर तपस्या कर आठों सिद्धियों को प्राप्त किया था। मां सिद्धिदात्री की अनुकंपा से ही भगवान शिव का आधा शरीर देवी हो गया था और वह अर्धनारीश्वर कहलाएं। मां दुर्गा के नौ रूपों में यह रूप अत्यंत ही शक्तिशाली रूप है। कहा जाता है कि, मां दुर्गा का यह रूप सभी देवी-देवताओं के तेज से प्रकट हुआ है। कथा में वर्णन है कि जब दैत्य महिषासुर के अत्याचारों से परेशान होकर सभी देवतागण भगवान शिव और भगवान विष्णु के पास पहुंचे। तब वहां मौजूद सभी देवतागण से एक तेज उत्पन्न हुआ और उसी तेज से एक दिव्य शक्ति का निर्माण हुआ, जिसे मां सिद्धिदात्री कहा जाता है।
मां दुर्गा के इस स्वरूप की पूजा देव-दानव, ऋषि-मुनि, यक्ष, साधक, किन्नर और गृहस्थ आश्रम में जीवनयापन करने वाले सभी करते हैं। इनकी पूजा अर्चना करने से धन, यश और बल की प्राप्ति होती है।
ऐसा है मां सिद्धिदात्री का स्वरूप
मां सिद्धिदात्री के स्वरूप की बात करें तो ये चार भुजा धारी हैं। एक हाथ में कमल पुष्प, तो दूजे में गदा धारण की हैं। वहीं, तीसरे में चक्र, तो चौथे में शंख धारण की है। सिंह उनकी सवारी है। मां सिद्धिदात्री समस्त संसार का कल्याण करती हैं। इसके लिए उन्हें जगत जननी भी कहते हैं। ग्रंथो, वेदों, पुराणों एवं शास्त्रों में मां की महिमा का वर्णन निहित है।
कैसे करें पारण
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार नवरात्रि के नौ दिनों का व्रत रख रहे साधकों को व्रत का पारण कन्या पूजन के बाद ही करना चाहिए। माना जाता है कि जो भोग माता के प्रसाद में बना हो, उसी से व्रत का पारण करना चाहिए। इससे उपवास को पूर्ण फल मिलता है। इस दौरान कन्या पूजन के लिए पहले मां दुर्गा की आराधना करें। फिर उन्हें हलवा पूरी का भोग लगाएं। इसके बाद कन्याओं को भरपेट भोजन कराकर दक्षिणा दें। इसके बाद आप व्रत का पारण कर सकते हैं।
मां महागौरी के कुछ मंत्र
“ॐ देवी महागौर्यै नमः”
श्वेते वृषे समारूढा श्वेताम्बराधरा शुचिः। महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा।।
या देवी सर्वभूतेषु मां गौरी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
मां सिद्धिदात्री के कुछ मंत्र
ॐ देवी सिद्धिदात्र्यै नमः
ह्रीं क्लीं ऐं सिद्धये नम:
या देवी सर्वभूतेषु माँ सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः