अल्मोड़ा रानीखेत राजमार्ग पर स्थित कैची धाम मेला प्रतिवर्ष 15 जून को नीम करौली धाम के स्थापना दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन यहां विशाल भंडारे का आयोजन किया जाता है। जिसमें पूरे देश विदेश से भक्त यहाँ दर्शन को आते हैं।विश्व प्रसिद्ध कैंची धाम का 59वां स्थापना दिवस आज है । बाबा के दर्शनों के लिए देश-विदेश से सुबह से श्रद्धालुओं के पहुंचने का सिलसिला शुरू हो गया है।
सभी मनोकामना होती हैं पूर्ण
नीम करोली बाबा भारत में ही नहीं अपितु विदेशों में भी बड़े संत के रूप में माने जाते हैं और उनके चमत्कारों से लोग उन्हे दिव्य पुरुष मानते हैं। नीम करौली बाबा को अनुयायी ‘महाराज-जी’ के रूप में भी जाना जाता है, वह एक हिंदू गुरु और हिंदू देवता हनुमान के भक्त थे। उन्होंने गृहस्थ जीवन जीते हुए अध्यात्म से खुद को जोड़ा। मान्यता है कि बाबा नीम करोली जी के आश्रम, अर्थात कैंची धाम नैनीताल जो भी व्यक्ति सच्चे मन से जाता है और प्रार्थना करता है उनकी सभी मनोकामना पूर्ण होती है।
नीम करौली बाबा को अनुयायी ‘महाराज-जी’ के रूप में भी जानते हैं।
नीम करोली बाबा का जीवन परिचय
नीम करोली बाबा का वास्तविक नाम लक्ष्मीनारायण शर्मा था। उनका जन्म 1900 में उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद जिले के अकबरपुर गांव में हुआ था। बाबा एक हिंदू गुरु थे और वह भगवान हनुमान के बहुत बड़े भक्त थे।नीम करोली बाबा का वास्तविक नाम लक्ष्मीनारायण शर्मा था। इनका जन्म 1900 के आसपास भारत के उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद जिले के अकबरपुर गाँव में एक धनी ब्राह्मण परिवार में हुआ था। ग्यारह वर्ष की आयु में उनका विवाह एक संपन्न ब्राह्मण परिवार की लड़की से कर दिया गया उसके बाद उन्होंने एक घुमक्कड़ साधु बनने के लिए घर छोड़ दिया।बाद में वह अपने पिता के अनुरोध पर एक व्यवस्थित विवाहित जीवन जीने के लिए घर लौट आए। उनके दो बेटे और एक बेटी हुई। उनका बड़ा बेटा अनेक सिंह अपने परिवार के साथ भोपाल में रहता है। और उनका छोटा बेटा धर्म नारायण शर्मा वन विभाग में रेंजर पद पर रहा जिनका कुछ समय पहले निधन हो गया।
हर दिन करें हनुमान चालीसा का पाठ
नीम करोली बाबा का कहना था कि हर व्यक्ति को धनवान और सुखी जीवन पाना है, तो रोज हनुमान चालीसा का पाठ करना चाहिए। साथ ही बाबा जी ने बताया कि हनुमान चालीसा की प्रत्येक पंक्ति अपने आप में एक महामंत्र है। इसलिए जो व्यक्ति हनुमान चालीसा का पाठ करता है, वह व्यक्ति सभी कष्टों से मुक्त हो जाता है और सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। कहा जाता है कि एक बार बाबा जी बिना टिकट के ट्रेन में चढ़े और कंडक्टर ने ट्रेन को रोकने का फैसला किया और फर्रुखाबाद जिले (यूपी) के नीम करोली गांव में नीम करोली बाबा को ट्रेन से उतार दिया।बाबा को ट्रेन से उतार देने के बाद कंडक्टर ने पाया कि ट्रेन फिर से शुरू नहीं हुई। ट्रेन शुरू करने के कई प्रयासों के बाद किसी ने कंडक्टर को सुझाव दिया कि वे साधु को वापस ट्रेन में चढ़ने दें।नीम करोली दो शर्तों पर ट्रेन में सवार होने के लिए सहमत हुए पहला रेलवे कंपनी ने नीम करोली गाँव में एक स्टेशन बनाने का वादा किया और दूसरा रेलवे कंपनी अब से साधुओं के साथ बेहतर व्यवहार करे। अधिकारियों ने सहमति व्यक्त की और नीम करोली बाबा ने मजाक करते हुए ट्रेन में चढ़ गए। ट्रेन में चढ़ने के तुरंत बाद ट्रेन चलने लगी।लेकिन ट्रेन चालक तब तक आगे नहीं बढ़े जब तक कि साधु ने उन्हें आगे बढ़ने का आशीर्वाद नहीं दिया। बाबा ने आशीर्वाद दिया और ट्रेन आगे बढ़ गई। बाद में नीम करोली गांव में एक रेलवे स्टेशन बनाया गया। बाबा कुछ समय तक नीम करौली गाँव में रहे और स्थानीय लोगों द्वारा उनका नामकरण किया गया।
बाबा जी को इसीलिए चढ़ाया जाता है कंबल
नीम करोली बाबा के एक भक्त रिचर्ड एलपर्ट (रामदास) ने अपनी किताब ‘मिरेकल ऑफ लव’ में बताया कि बाबा के भक्तों में फतेहगढ़ के एक बुजुर्ग दंपति भी शामिल थे। एक दिन बाबा अचानक इस बुजुर्ग दंपति के घर पर पहुंच गए और कहा कि आज रात वे उनके घर पर ही रुकेंगे। दंपत्ति बहुत खुश हुए लेकिन वे बेहद गरीब थे लिहाजा सोचने लगे कि वे बाबा का सत्कार कैसे करें। उन्होंने जैसे-तैसे भोजन का इंतजाम किया और फिर सोने के लिए बाबा को चारपाई और ओढ़ने के लिए कंबल दिया। बाबा सो गए तो बुजुर्ग पति-पत्नी भी वहीं चारपाई के पास सो गए। रात में बाबा कंबल ओढ़कर सो रहे थे और ऐसे कराह रहे थे कि जैसे उन्हें कोई मार रहा है। बड़ी मुश्किल से वह रात गुजरी। सुबह बाबा ने वह कंबल लपेट कर दंपत्ति को दिया और कहा कि इसे बिना खोले गंगा में प्रवाहित कर देना बाबा ने दंपत्ति को खाली कंबल दिया था लेकिन जब वे उसे गंगा में प्रवाहित करने ले जा रहे थे, तब वह इतना भारी हो गया जैसे कंबल के अंदर ढेर सारा लोहा हो। लेकिन बाबा ने कंबल खोलने से मना किया था इसलिए दंपत्ति ने उसे बिना खोले गंगा में प्रवाहित कर दिया। करीब एक महीने बाद इस दंपत्ति का बेटा सकुशल घर लौट आया। दरअसल, इस बुजुर्ग दंपत्ति का एक ही बेटा था और वह ब्रिटिश फौज में सैनिक था। दूसरे विश्वयुद्ध के समय वह बर्मा फ्रंट पर तैनात था। पति-पत्नी अपने बेटे की चिंता में व्याकुल रहते थे और चाहते थे कि वह सकुशल घर लौट आए। बाबा नीम करोली के घर में रात बिताने के एक महीने बाद बेटा वापस लौट आया। बेटे ने बताया कि करीब महीने भर पहले एक रात वह दुश्मन फौजों के बीच घिर गया था और रातभर गोलीबारी होती रही। इस युद्ध में उसके सारे साथी मारे गए लेकिन वह अकेला बच गया। बेटे ने कहा कि मैं कैसे बच गया यह मुझे भी मालूम नहीं। उसने कहा कि उसपर खूब गोलीबारी हुई लेकिन उसे एक भी गोली नहीं लगी ये वही रात थी जब बाबा नीम करौली उसके घर में सो रहे थे और पूरी रात कराह रहे थे। तुरंत दंपत्ति बाबा नीम करोली के चमत्कार को समझ गया इस घटना के कारण ही ‘मिरेकल ऑफ लव’ में रिचर्ड एलपर्ट ने इस कंबल को बुलेटप्रूफ कंबल कहा इसीलिए आज भी कैंची धाम स्थित मंदिर में बाबा के भक्त उन्हें कंबल चढ़ाते हैं।
वृंदावन आश्रम के परिसर के भीतर ली समाधि
नीम करोली बाबा का 11 सितंबर, 1973 की सुबह लगभग 1:15 बजे वृंदावन, भारत के एक अस्पताल में डायबिटिक कोमा में जाने के बाद निधन हो गया। वह रात की ट्रेन से आगरा से नैनीताल के पास कैंची धाम लौट रहे थे, जहां उन्होंने सीने में दर्द के कारण एक हृदय रोग विशेषज्ञ को दिखाया था।वे और उनके यात्रा साथी मथुरा रेलवे स्टेशन पर उतरे थे जहाँ उन्हें ऐंठन होने लगी और उन्होंने श्री धाम वृंदावन ले जाने का अनुरोध किया। वे उन्हें अस्पताल के आपातकालीन कक्ष में ले गए। अस्पताल में डॉक्टर ने उन्हें इंजेक्शन दिए और उनके चेहरे पर ऑक्सीजन मास्क लगा दिया।अस्पताल के कर्मचारियों ने कहा कि वह डायबिटिक कोमा में थे लेकिन उनकी पल्स ठीक थी। महाराज जी जागे और अपने चेहरे से ऑक्सीजन मास्क और अपनी बांह से रक्तचाप मापने वाले बैंड को (बेकार) यह कहते हुए खींच लिया, महाराजजी ने गंगा जल माँगा। फिर उन्होंने कई बार दोहराया, “जया जगदीश हरे”।इसके बाद उन्होंने समाधि ले ली । उनकी समाधि मंदिर वृंदावन आश्रम के परिसर के भीतर बनायीं गई है।