क्लाइमेट चेंज एंड सस्टेनेबिलिटी ऑफ़ नेचुरल रिसोर्सेज इन हिमालयन रीजन विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार का हुआ उद्घाटन
तीन तकनीकी सत्र हुए संचालित
वनस्पति विज्ञान विभाग, सोबन सिंह जीना परिसर,अल्मोड़ा द्वारा आज क्लाइमेट चेंज एंड सस्टेनेबिलिटी ऑफ़ नेचुरल रिसोर्सेज इन हिमालयन रीजन विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार का उद्घाटन रामानुजम सभागार में हुआ।
दीप प्रज्ज्वलन के साथ सेमिनार का शुभारंभ
इस अवसर पर कुलपति प्रोफेसर सतपाल सिंह बिष्ट, मुख्य अतिथि गोविंद बल्लभ पंत, पर्यावरण संस्थान,कटारमल के निदेशज प्रोफेसर सुनील नौटियाल, विशिष्ट अतिथि के रूप में सेमिनार के अध्यक्ष प्रोफेसर प्रवीण सिंह बिष्ट (परिसर निदेशक), अतिथि के रूप में प्रोफेसर जगत सिंह बिष्ट (निदेशक, शोध एवं प्रसार निदेशालय), सेमिनार के निदेशक रूप में डॉक्टर एस.एस. सामंत (पूर्व निदेशक,HFRI, शिमला), सेमिनार संयोजक डॉ धनी आर्या (विभागाध्यक्ष, वनस्पति विज्ञान), सह संयोजक डॉ० बलवंत कुमार ने दीप प्रज्ज्वलित कर उद्घाटन किया।
सेमिनार की शुरुआत अतिथियों ने दीप प्रज्ज्वलन के साथ किया। इस अवसर पर संगीत विभाग के द्वारा सरस्वती वंदना, स्वागत गीत की प्रस्तुति दी। आयोजकों ने अतिथियों का स्वागत कर प्रतीक चिन्ह देकर और शॉल ओढ़ाकर सम्मानित किया।
पर्यावरण असंतुलन एक गंभीर समस्या
सेमिनार के संयोजक डॉक्टर धनी आर्या ने सेमिनार के उद्देश्यों को प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि पर्यावरण असंतुलन एक गंभीर समस्या है जिसको लेकर आगामी तकनीकी सत्रों में शोधार्थी, वैज्ञानिक मंथन करेंगे। साथ ही 80 से अधिक शोधार्थी/अनुसंधानकर्ता शोध पत्रों का वाचन करेंगे। उन्होंने आगे बताया कि सत्रों में वैज्ञानिक हिम ग्लेशियर, हिमालय के जल संसाधन, हिमालयी जैवविविधता, पर्यावरण चक्र, कार्बन स्टोरेज, आपदा नियंत्रण, कृषि पद्धति संवर्द्धन ,हिमालयी जीवनशैली, परंपरागत ज्ञान और पर्यावरण पर्यटन, वानिकी संवर्धन आदि विभिन्न दृष्टिकोणों से चिंतन करेंगे।
पर्यावरण के संतुलन को बनाये रखने के लिए यह सेमिनार महत्वपूर्ण
सेमिनार के सह संयोजक डॉ बलवंत कुमार ने अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि इकोलॉजी और पर्यावरण के संतुलन को बनाये रखने के लिए यह सेमिनार महत्वपूर्ण है। उन्होंने सभी अतिथियों का परिचय कराया और उनका स्वागत किया। उन्होंने सेमिनार के विभिन्न सत्रों की जानकारी दी।
हिमालय को बचाने की दिशा में प्रयास होने आवश्यक
सेमिनार के संयोजक के रूप में डॉक्टर एस.एस. सामंत (पूर्व निदेशक,HFRI, शिमला) ने कहा कि हिमालयी इको सिस्टम को बनाये रखने के लिए हमें संवेदनशील होना पड़ेगा। हॉर्टिकल्चर, फ्लोरा, फौना आदि मिलकर इकोसिस्टम को बनाते हैं। आज पर्यावरण में निरंतर गिरावट के कारण इको सिस्टम प्रभावित हुआ है। जैव विविधता के साथ हिमालय को बचाने की दिशा में प्रयास होने आवश्यक हैं।
पर्यावरण के क्षरण के कारणों को चिन्हित किया जाए
अतिथि के रूप में पूर्व कुलपति प्रोफेसर जगत सिंह बिष्ट (निदेशक, शोध एवं प्रसार निदेशालय) ने कहा कि प्राकृतिक संसाधनों को बचाने को प्रयास हों। सेमिनारों में पर्यावरण संसाधनों के संरक्षण की बात हो, पर्यावरण परिवर्तन सतत प्रक्रिया है लेकिन पर्यावरण के क्षरण को रोकने के लिए कार्य हों। उन्होंने आयोजकों को बधाई दी आउट कहा सेमिनार में पर्यावरण के क्षरण के कारणों को चिन्हित किया जाए। और आगे कहा मानव द्वारा प्राकृतिक संसाधनों का निरंतर दोहन किया जा रहा है जो ठीक नहीं है।
क्लाइमेट चेंज होने के कारण प्राकृतिक संसाधनों पर विपरीत प्रभाव पड़ा
अपने उद्बोधन में विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो सतपाल सिंह बिष्ट ने पर्यावरण में हो रहे परिवर्तन और गिरावट पर दृष्टि डाली। उन्होंने कहा कि मानवीय हस्तक्षेप के फलस्वरूप कई समस्याएं एवं चुनौतियाँ हमारे सामने आई हैं। जिसमें प्रमुख समस्या पर्यावरण का क्षरण होना बेहद चिंतनशील विषय है। क्लाइमेट चेंज होने के कारण प्राकृतिक संसाधनों पर विपरीत प्रभाव पड़ा है, पर्यावरण चक्र अस्थिर हुआ है और जीवन चक्र में परिवर्तन हो रहा है। आज ग्लेशियर पिघल रहे हैं, कृषि कार्य प्रभावित हुआ है इसलिए पर्यावरण के विषय पर हमें गम्भीर होने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि पर्यावरण पर कार्य कर रहे वैज्ञानिक इस सेमिनार में जुटे हैं जो पर्यावरण को लेकर चिंतन करेंगे। उन्होंने आयोजकों को बधाई दी।
लगातार बढ़ रहा मानवीय दबाव
मुख्य अतिथि के रूप में गोविंद बल्लभ पंत पर्यावरण संस्थान,कोसी-कटारमल के निदेशक प्रोफेसर सुनील नौटियाल ने कहा कि ग्लेशियरों से 440 अरब टन पिघल गयी है। 2010 में 20 अरब टन बर्फ ग्लेशियरों से पिघली है। जो आगे की वस्तुस्थिति का बोध कराती है। लगातार मानवीय दबाव बढ़ रहा है, गर्मी बढ़ रही है। आज पर्यावरण के परिवर्तन से नकारात्मक प्रभाव दृष्टिगोचर हो रहे हैं जो भविष्य के लिए घातक है। हिमालय को बनाने के लिए एक्शन ओरिएंटेड कार्य करने की जरूरत है। उन्होंने आगे कहा कि हमें चिंतन करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय के साथ जी बी पंत पर्यावरण संस्थान, कोसी-कटारमल के बीच हुए एमओयू हस्ताक्षर पर खुशी जताई। अब दोनों संस्थानों के शोधार्थी और वैज्ञानिक मिलकर पर्यावरण संरक्षण के लिए काम करेंगे।
ज्वलंत विषय पर सेमिनार आयोजित हो रहा
सेमिनार के अध्यक्ष प्रोफेसर प्रवीण सिंह बिष्ट (परिसर निदेशक) ने वनस्पति विज्ञान विभाग द्वारा आयोजित दो दिवसीय सेमिनार की सराहना की और उन्होंने कहा कि आज एक ज्वलंत विषय पर सेमिनार आयोजित हो रहा है। जो इस हिमालय क्षेत्र के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि क्लाइमेट चेंज को लेकर अंतरात्मा से सोच कर काम करने की जरूरत है। हमें पर्यावरण के हो रहे नुकसान को थामना होगा। अन्यथा इसके गंभीर परिणाम भुगतने को भी तैयार रहना होगा। सेमिनार के संबंध में उन्होंने कहा कि की युवा वैज्ञानिक एवं शोधार्थी पर्यावरण के प्रति संवेदनशील हों। पर्यावरण को लेकर अपने शोध अध्ययन करें। उन्होंने आयोजकों को बधाइयां दी।
पर्यावरण संस्थान और एसएसजे के मध्य एमओयू हस्ताक्षर
सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय और गोविंद बल्लभ पंत पर्यावरण संस्थान,कोसी कटारमल के बीच शोध, जनसंसाधन के आदान-प्रदान आदि को लेकर एक महत्वपूर्ण एमओयू हस्ताक्षर हुए। विवि की तरफ से कुलपति प्रो० सतपाल सिंह बिष्ट एवं GB इंस्टिट्यूट की ओर से प्रो० सुनील नौटियाल ने एमओयू हस्ताक्षर किए। दोनों संस्थानों के बीच एमओयू होने से दोनों ही संस्थानों के शोधार्थी, वैज्ञानिक शोध गतिविधियों का संचालन करेंगे। पर्यावरण को लेकर शोध कार्य करेंगे, व्याख्यान, सेमिनार आदि का संयुक्त रूप से संचालन करेंगे। दोनों ही संस्थाओं के मुखियाओं ने एमओयू होने पर हर्ष जताया।
पौधों के विवरण हेतु Q R कोड नाम पट्ट का लोकार्पण
इस सेमिनार में क्लाइमेट चेंज एंड सस्टेनेबिलिटी ऑफ़ नेचुरल रिसोर्सेज इन हिमालयन रीजन विषयक सोविनियर और वनस्पति विज्ञान विभाग द्वारा विभिन्न पौधों के विवरण को देखने के लिए Q R कोड नाम पट्ट का लोकार्पण किया। अब Q R कोड से विभिन्न वनस्पतियों का विवरण पा सकते हैं।
इस अवसर पर आयोजक सचिव डॉ मंजुलता उपाध्याय, डॉ रवींद्र कुमार, डॉ नवीन चंद्र ने सेमिनार की व्यवस्थाओं का संचालन किया। सेमिनार का संचालन डॉ. मंजुलता उपाध्याय एवं नेहा जोशी ने संयुक्त रूप से किया।
तीन तकनीकी सत्र हुए संचालित
उद्घाटन सत्र के उपरांत तीन तकनीकी सत्र संचालित हुए। जिसके पहले तकनीकी सत्र में सत्र अध्यक्ष प्रो एल एम तिवारी (केयू नैनीताल), आमंत्रित वक्ता डॉ जी एस रावत (पूर्व वैज्ञानिक यूकॉस्ट,देहरादून), रेपोर्टियर डॉक्टर बलवंत कुमार, भावना पांडे उपस्थित रहे।
द्वितीय सत्र में अध्यक्ष डॉक्टर जेएस रावत (DST चेयर) आमंत्रित वक्ता प्रो एल एम तिवारी रहे। इस सत्र में रिपोर्टर के तौर पर जोया शाह, महिमा गढ़कोटी रहीं। दूसरे तकनीकी सत्र में सेमिनार के सह संयोजक डॉक्टर बलवंत कुमार ने व्याख्यान दिया। इस सत्र में रेपोर्टियर मुक्ता मर्तोलिया, पूजा बिष्ट रही।
तीसरे तकनीकी सत्र में सत्र के अध्यक्ष रूप में प्रोफेसर इला साह,डॉक्टर जी एस रावत रहे। इस अवसर पर पेपर एवं पोस्टर प्रेजेंटेशन हुए। सत्र की रिपोर्टर के तौर पर अर्चना कांडपाल नेहा पटोला, लक्ष्मी, सीमा रहीं। बीज वक्ता के तौर पर डॉक्टर जी एस रावत (पूर्व निदेशक WII,देहरादून) रिसोर्स पर्सन के तौर पर डॉ जे.के.कुनियाल (वैज्ञानिक जी, गोविंद बल्लभ पंत संस्थान) एवं डॉ. गजेंद्र सिंह (वैज्ञानिक-सी यूसेक, देहरादून) थे।
सेमिनार में मौजूद रहे
सेमिनार में डॉ० सबीहा नाज एवं डॉ ललित जोशी को विद्वानों ने सम्मानित किया।
उद्घाटन अवसर पर प्रो इला साह, प्रो एल एम तिवारी,प्रो भीमा मनराल, डॉ० सबीहा नाज, डॉ० सुभाष चंद्र, डॉ० नंदन सिंह बिष्ट, डॉ० कालीचरण, प्रो० ए. के. नवीन, डॉ० देवेंद्र धामी, डॉ० संदीप कुमार, डॉ० आर सी मौर्या, डॉ० देवेंद्र सिंह बिष्ट, डॉ ममता पंत, डॉ० रवींद्रनाथ पाठक, वैज्ञानिक डॉ. आई. डी. भट्ट, डॉ० पुरन जोशी, डॉ.जी एस रावत, डॉक्टर खिलेंद्र कुमार, डॉ.सतीश आर्य, डॉ. आशीष पांडे, डॉ. सुरेश, मुक्ता मर्तोलिया, अर्चना कांडपाल, हिमानी, जोया साह, मुस्कान, आंचल, डॉ मनोज बिष्ट, डॉ. मनमोहन कनवाल, डॉ मनुहर आर्य, डॉ. रामचंद्र मौर्य, जयवीर सिंह नेगी, डॉ. भुवन चंद्र, डॉ.बचन लाल सहित शोधार्थी, शिक्षक, गोबिंद बल्लभ पर्यावरण संस्थान, कोसी कटारमल के रिसर्चर उपस्थित रहे।