पिथौरागढ़ कैंपस में ‘उत्तराखंड का स्थापत्य हस्तशिल्प एवं लोक कला’ विषयक दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी संपन्न

उत्तराखंड का स्थापत्य हस्तशिल्प एवं लोक कला

सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय के पिथौरागढ़ कैंपस एलएसएम गवर्नमेंट पीजी कॉलेज में इतिहास विभाग द्वारा उत्तराखंड का स्थापत्य हस्तशिल्प एवं लोक कला विषय को लेकर दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी के दूसरे दिन विद्वानों ने संबोधित किया। सेमिनार की संयोजक प्रो सरोज वर्मा के संयोजन में यह सेमिनार उत्तराखंड का स्थापत्य:हस्तशिल्प एवं लोककला विषय को लेकर किया गया। इस दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन भारतीय इतिहास एवं अनुसंधान परिषद के सहयोग से हुआ। विद्वानों ने उत्तराखण्ड के स्थापत्य, लोककला, इतिहास आदि पर मंथन किया एवं शोध पत्रों का वाचन किया।

शोधार्थियों ने शोध पत्र प्रस्तुत किए


दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में उपस्थित नरसिंह चैंसर (मेयर दार्चुला नेपाल), पुष्कर राज जोशी (मेयर बैतडी नेपाल), डॉ बीपी भट्ट (साइंटिस्ट 2), ICHR के डॉ प्रवीण कुमार शर्मा, डॉ नितिन कुमार, डा विनोद कुमार द्वारा अपने उद्बोधन से उत्तराखंड का स्थापत्य हस्तशिल्प एवं लोककला जैसे विषयों पर छात्र-छात्राओं से अपेक्षा की कि इन समसामयिक धरोहरों को संरक्षण देने की पहल सारगर्भित है। जिसमें शोध आलेखों, भ्रमण कार्यक्रमों, विचार गोष्ठियों से संबंधित जानकारियां प्रदान करने से जागरूकता अवश्य ही नये आयामों को स्थापित करने में सहायक है।
प्रातः कालीन सत्र में शोधार्थियों द्वारा अपने शोध पत्रों को प्रस्तुत किया गया जिसमें उत्तराखंड के स्थापत्य हस्तशिल्प और लोक कला परंपराओं आदि पर पत्रों के प्रस्तुतीकरण से सभागार में बैठे सभी महानुभाव छात्राओं द्वारा सराहा गया।
मेयर दार्चुला चैसर ने कहा हमारे राष्ट्र नेपाल तथा भारत के साथ पुरातन समय से सामाजिक सांस्कृतिक-व्यापारिक संबंध रहे हैं और आज भी रोटी बेटी का संबंध अपनी सामरिक महत्व को समझते हुए चतुर्दिक स्तंभों में एक साथ मिलकर स्थापत्य हस्तशिल्प एवं लोककला अपनी जीवंतता बनाते हैं। जिसे मजबूत रखना हम सब का दायित्व भी है। सभा का समापन प्राचार्य डॉ पुष्कर सिंह बिष्ट द्वारा किया गया ।


संगोष्ठी में महाविद्यालय पिथौरागढ़ परिसर पिथौरागढ़ के समस्त प्राध्यापकों, शोधार्थियों, कार्मिकों, छात्र छात्राओं, मीडिया कर्मी, छात्र संघ पदाधिकारियों तथा अन्य महाविद्यालयों से आये प्राध्यापक, शोधार्थी भी उपस्थित रहे।

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