उत्तराखंड में महिला सशक्तिकरण एवं बाल विकास विभाग ने तीलू रौतेली और आंगनबाड़ी कार्यकर्ती पुरस्कार के लिए महिलाओं और किशोरियों से पोर्टल के माध्यम से ऑनलाइन अथवा ऑफ़लाइन आवेदन पत्र आमंत्रित किए हैं।
आवेदन की अंतिम तिथि बीस जुलाई
आवेदन करने की अंतिम तिथि 20 जुलाई है। सामाजिक, शिक्षा, साहित्य, कला, साहसिक कार्य और संस्कृति के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने वाली महिलांए और किशोरियां इसके लिए आवेदन कर सकती हैं। गौरतलब है कि महिला सशक्तिकरण एवं बाल विकास विभाग की ओर से यह पुरस्कार हर जिले की एक महिला और किशोरी को दिया जाता है।
जानिए कौन थी तीलू रौतेली?
तीलू रौतेली का जन्म आठ अगस्त 1661 को ग्राम गुराड़, चौंदकोट (पौड़ी गढ़वाल) के भूप सिंह रावत (गोर्ला) और मैणावती रानी के घर में हुआ। तिलोत्तमा देवी, गढ़वाल, उत्तराखण्ड की एक ऐसी वीरांगना जो केवल 15 वर्ष की उम्र में रणभूमि में कूद पड़ी थी और सात साल तक जिसने अपने दुश्मन राजाओं को कड़ी चुनौती दी थी।पिता भाई और मंगेतर की शहादत के बाद 15 वर्षीय वीरबाला तीलू रौतेली ने कमान संभाली। तीलू ने अपने मामा रामू भण्डारी, सलाहकार शिवदत्त पोखरियाल व सहेलियों देवकी और बेलू आदि के संग मिलकर एक सेना का गठन किया । इस सेना के सेनापति महाराष्ट्र से छत्रपति शिवाजी के सेनानायक श्री गुरु गौरीनाथ थे। उनके मार्गदर्शन से हजारों युवकों ने प्रशिक्षण लेकर छापामार युद्ध कौशल सीखा। तीलू अपनी सहेलियों देवकी व वेलू के साथ मिलकर दुश्मनों को पराजित करने हेतु निकल पडी। उन्होंने सात वर्ष तक लड़ते हुए खैरागढ, टकौलीगढ़, इंडियाकोट भौनखाल, उमरागढी, सल्टमहादेव, मासीगढ़, सराईखेत, उफराईखाल, कलिंकाखाल, डुमैलागढ, भलंगभौण व चौखुटिया सहित 13किलों पर विजय पाई। 15 मई 1683 को विजयोल्लास में तीलू अपने अस्त्र शस्त्र को तट नयार नदी पर रखकर नदी में नहाने उतरी, तभी दुश्मन के एक सैनिक ने उसे धोखे से मार दिया। 22 वर्ष की आयु में सात युद्ध लड़ने वाली तीलू रौतेली एक वीरांगना है। तीलू रौतेली उर्फ तिलोत्तमा देवी भारत की रानी लक्ष्मीबाई, चांदबीबी, झलकारी बाई, बेगम हजरत महल के समान ही देश विदेश में ख्याति प्राप्त हैं।
कबसे हुई शुरुवात
यह पुरुस्कार की शुरुवात उत्तराखंड सरकार ने वीरागंना तीलू रौतेली के नाम पर साल 2006 से की थी। तीलू रौतेली पुरस्कार महिला सशक्तिकरण के क्षेत्र में बेहतर काम करने वाली महिलाओं और किशोरियों को दिया जाता है।