आज भी कई एसी जगह हैं जहां किशोरी लड़कियां और महिलाएं के साथ पीरियड्स के दौरान भेदभाव किया जाता है। बड़े अफसोस की बात है कि इस आधुनिक युग में भी पीरियड्स को यहां एक अभिशाप के रूप में देखा जाता है। इससे महिलाओं का जीवन नर्क बन जाता है। पीरियड्स के रूप में ईश्वर ने स्त्रियों को जो वरदान दिया है, उसे यहां अपशकुन माना जाता है।
रसोई घर से दूर रहने की दी जाती है हिदायत
महिलाओं किशोरियों को पीरियड्स के दौरान न केवल अपने धार्मिक जगहों और ईश्वर से, बल्कि अपने घर और रसोई घर से भी दूर रखा जाता है। यही नहीं इसके लिए औपचारिक रूप से कानून भी बनाए गए हैं। कई स्थानों में तो पीरियड्स के पहले चरण में 21 दिनों तक गौशाला में गाय, भैंस और अन्य घरेलू पशुओं के साथ घर से बाहर रखा जाता है।वहीं दूसरी बार 15 दिनों के लिए अपने घर से बाहर रहना पड़ता है। तीसरी बार 11 दिन, चौथी बार 7 दिन और पांचवीं बार 5 दिन के लिए गौशाला में रहने को मजबूर किया जाता है।
उत्तराखंड के काशीपुर से जितेन्द्र भट्ट ने एक मिसाल कायम की
वहीं रूढ़िवादी विचारधाराओं को तोड़ते हुए उत्तराखंड के काशीपुर से जितेन्द्र भट्ट ने एक मिसाल कायम की है। उनकी जितनी तारीफ की जाए वह कम होगी। बता दें की इन्होंने अपनी बेटी के पहले पीरियड आने पर बकायदा केक काटकर सेलिब्रेट किया । और समाज में एक संदेश दिया कि दुनिया में सबसे पवित्र धर्म है, मासिक धर्म।इसके लिए सिर्फ़ जुनून, साहस, हिम्मत ही नहीं चाहिए बल्कि एक सोच भी चाहिए।सामाजिक कुंठाओं पर इसी तरह प्रहार तथा विचार हो सकता है। बहुत लोगों को तो यह असहज लग सकता है लेकिन उससे कोई फर्क नहीं पड़ता है क्योंकि बहुत लोगों को तो यह अपवित्र भी लगता है। हालांकि विगत कुछ वर्षो से इस दिशा में काफ़ी बदलाव देखने को मिले हैं।