‘आहा! अषाड़ी बग्वाल: तब और अब‘ (मां बाराही की गाथा) पुस्तक की भूमिका लिखते हुए बाराही धाम से जुड़ गया- डाॅ0 योगी
लोक गाथाओं में परिवेश का सम्पूर्ण लेखा-जोखा जमा पूंजी की तरह होता है। गाथा अपने में पूर्ण रूप किसी क्षेत्र या अंचल विशेष की अमूल्य निधि होती है। इस अमूल्य निधि में क्षेत्र की विशेषताओं का आख्यान होता है। उस क्षेत्र की भाषा अथवा बोली में उस स्थान विशेष की पारम्परिक गेय अभिव्यक्ति को लोक गाथा के नाम से जाना जाता है। इस पर्वतीय क्षेत्र में असंख्य गाथाएं भरी हुई है। देवी-देवताओं में छुरमुल, गोल्ल, भूमिया, सैम, झांकरू सैम (झाँकरी सैम), गंगनाथ, ऐड़ी, हरू, भोलानाथ, कालू, धर्मदास, मशाण, भुतँणी आमा-बुबू, पीरू, नंदादेवी, पाषाणदेवी, जाखनदेवी, झूलादेवी, स्याहीदेवी, कसारदेवी, बानणी देवी, कौमारी देवी, कोटभ्रामरी देवी, बाराही देवी, गढ़देवी, शीतलादेवी, गंगोलीहाट की कालिकादेवी, छखाता की नारायणी देवी, गंगोलीहाट की कालिकादेवी, बेरीनाग की त्रिपुरादेवी आदि हैं। जिनकी गाथााओं को हम जागर गाथाओं के रूप में सुनते आ रहे हैं। ऐसे ही चंपावत जिले में स्थित मा बाराही की गाथा भी हमें उस परिवेश की जानकारी देती है जिसमें देवी के अवतार से लेकर उसके प्रभाव तक की सभी स्थितियों को हम अनुभव करते हैंे।
बाराही देवी, जिसे विश्व जानता है। चंपावत जिले के देबीधुरा में बाराही देवी स्थापित हैं। यहां पाषाण युद्ध किया जाता है जो चर्चा का केंद्र है। इस देवी के बारे में जो श्रुतियां प्रचलित हैं, उन्हें संकलित कर लोक कलाकार श्री दान सिंह फत्र्याल जी ने अपनी बोली में रचकर स्तुत्य कार्य किया है। आज मुझे उनकी ‘आहा! अषाड़ी बग्वाल: तब और अब‘ (मां बाराही की गाथा) पुस्तक मिली। फत्र्याल जी के अनुरोध चंपावत की कुलदेवी मां बाराही देवी पर लिखी गई पुस्तक पर भूमिका रूप में विचार प्रकट करने का मौका मिला। इस बहाने ‘मां बाराही देवी‘ से जुड़ा। दानसिंह फत्र्याल संस्कृतिकर्मी एवं लोक कलाकार हैं। उनके फाग रंग मंच, बुरांश लोक रंग यू ट्यूब भी चलते हैं। ये कुमाऊँभर में विभिन्न संस्थाओं द्वारा होने वाले पुस्तक मेले, भाषा सम्मेलन आदि में प्रतिभाग कर कई प्रस्तुतियां देते हैं। आपने भी इनको देखा ही होगा।
उन्होंने अपने ‘आषाड़ी बग्वालः तब और अब‘ पुस्तक में देबीधुरा में खेले जाने वाले बग्वाल, मां बाराही की उत्पत्ति, चार खामों के वीरों का मैदान में भागीदारी करना, फत्र्याल जाति के विषय आदि के साथ-साथ डोल स्थित विष्णु मंदिर, बोरागांव आदि को पंक्तिबद्ध कर दुधबोलि में भावार्थ सहित रचा है। जिससे पाठकों को आसानी से जानकारी प्राप्त हो जाए।
अपनी ऐतिहासिक घुमक्कड़ियों में मैंने देबीधुरा, शहरफाटक, डोल आदि का भ्रमण किया है। मैंने जो भी सुना हैं, देखा है, उन सब को जान-समझकर कई बार यह प्रश्न चित्तपटल पर उभर आता था कि इतिहास, संस्कृति और परंपराओं को लेकर समृद्ध इस क्षेत्र को पयर्टन से क्यों नहीं जोड़ा गया है। क्या इसके बारे में लोगों को जानकारी नहीं होगी? किंतु जब यह पुस्तक मेरे हाथ में पहुंची तो तब मुझे यह संतोष होता है कि इस लोग इस क्षेत्र की संस्कृति, इतिहास को पढ़कर जरूर इन क्षेत्रों का भ्रमण करेंगे।
यह पुस्तक अपने क्षेत्र की पौराणिकता, ऐतिहासिकता, तत्कालीन स्थिति, सांस्कृतिक परिवेश के बारे में दृष्टि डालती है। चंपावत जिले में स्थित बाराही मंदिर और शहरफाटक स्थित विष्णु मंदिर को पर्यटन से जोड़ने के लिए यह पुस्तक एक माध्यम के रूप में प्रस्तुत हुई है।
डाॅ0 ललित चंद्र जोशी ‘योगी‘