जन्माष्टमी के साथ लोकपर्व बिरुड़ पंचमी की भी चल रही तैयारी, जानिए इसका महत्व
कुमाऊं में सातों आठों बिरुण पंचमी महापर्व हर साल धूमधाम से मनाया जाता है। एक तरफ पूरे देश में जन्माष्टमी महापर्व की तैयारी जोर-शोर से चल रही है। दूसरी तरफ कुमाऊं मंडल में सातों आठों बिरुण पंचमी की भी तैयारी भी जोर शोर से चल रही है। सातों का पर्व इस वर्ष 25 अगस्त और आठों पर्व 26 अगस्त को मनाया जाएगा।
कैसे मनाते हैं सातों आठों व बिरुणा पंचमी
शुक्ल पक्ष के पंचमी को पांच या सात अनाजों को धोकर तांबे के बर्तन में ढक रखकर बर्तन के सामने गाय के गोबर में दूब दाड़ीम रखा जाता है। फिर सातों के दिन ये बिरुण सुबह नहा धोकर नौले व नदी में साफ़ किये जाते हैं। शाम के समय में सातों के दिन महिलाओं के द्वारा तिल, मक्का, बाजरा, टहनियों से गवरा देवी व महेश्वर मुर्तियां बनाई जाती है। मुर्तियों को नए कपड़े आभूषण व सिर पर मुकुट लगाया जाता है। फिर रात्रि के समय महिलाओं के द्वारा बिरुण चढ़ा कर पूजा अर्चना करते इन दोनों मूर्तियों को खूब नचाया जाता है।
इसी के साथ कई स्थानों पर दो दिवसीय मेला भी होता है। वहीं सातों के दिन व आठों के दिन किसी किसी जगह पर एक दिवसीय मेला होता है ।
आठों के दिन कुमाऊं में वैसे ये सातों आठों बिरुण पंचमी सभी जगह मनाते हैं लेकिन अल्मोड़ा, बागेश्वर, पिथौरागढ़ में सबसे ज्यादा इस महापर्व को मेले के तौर पर बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है।
सातों आठों मनाये जाने का कारण
गवरा देवी (मां पार्वती) महेश्वर (शिव जी से रुठ के मायके आती हैं तो सातों के दिन महेश्वर शिवजी गवरा देवी मां पार्वती को लेने आते हैं तो तब इन दोनों की मुर्तियां को बनाकर सातों के दिन ख़ूब नचाया जाता है आठों के दिन गवरा देवी मां पार्वती को महेश्वर यानी की शिव के साथ विदा करते समम झोड़ा चांचरी अन्य धार्मिक गीतों के साथ धूमधाम से अलग-अलग मंदिरों व मां भगवती मंदिर में धूमधाम मनाया जाता है ।
जानें ये कथा
सातों आठों गवरा देवी को मनाने की कई कहावतें बताई जाती है। प्राचीन काल में एक ब्राह्मण जिसका नाम बीड़भाट था उसके सात पुत्र व सात बहूएं थी। सातों की संतान नहीं थी।वह पंडित अपने पुत्रों व बहूओं की संतान न होने से काफी चिंतित रहता था। बीड़भाट सातों के दिन अपने यजमानों के वहां से आ रहा था। रास्ते में नदी के किनारे इस पंडित को एक महिला दिखी जो बिरुण धोकर साफ कर रही थी वह कोई महिला नहीं बल्कि वह स्वयं गवरा देवी पार्वती मां थी। तब पंडित बीड़भाट ने पार्वती देवी से पूछा बिरुण पंचमी के बारे में। क्योंकि उसके सात बहू निसंतान थी जिससे वह बहुत दुखी था। जिसके बाद मां पार्वती द्वारा बताए गए बिरुण पंचमी के बारे में उसने घर जाकर अपनी बहू लोगों को बताया। जिसके बाद बहुओं ने बिरुण पंचमी का विधि विधान किया साथ ही उन्होंने बिरुण पंचमी का व्रत भी लिया । जिसके बाद एक बहु ने गलती से बिरुण भिगाते समय एक दाना मुंह में डाल दिया जिससे उसका व्रत भंग हो गया किसी न किसी कारण और बहू लोगों का भी व्रत भंग हो गया। वहीं सातवीं बहू भी बहुत सीधी सी थी वह गाय भैंसों के ग्वाला गई थी। जिसके बाद उसे बुलाकर बिरुण भिगाने की विधि बताई जिसके बाद सातवीं बहु ने भी बिरुण पंचमी का व्रत भी रखा। व्रत के कुछ समय बाद दसवें मास में सातवीं बहू को संतान की प्राप्ति हुई। बीडभाट पंडित जी के परिवार को मां पार्वती के आशीर्वाद से संतान प्राप्ति से खुशी हुई।
सुख समृद्धि व खुशहाली के लिए रखा जाता है व्रत
समाजसेवी प्रताप सिंह नेगी ने बताया चाहे गवरा देवी हो चाहे नंदा सुनंदा हो ये सब पार्वती मां के रुप है। आज भी सातों आठों में डोर दुबड़ा पहनकर महिलाओं के द्वारा व्रत करने की प्रथा प्रचलित है विवाहित महिलाएं सातों के दिन डोर व्रत आठों के दिन दूबढ़ा व्रत करती है। यह व्रत संतान प्राप्ति व सुख समृद्धि के लिए किया जाता है।