मां चंद्रघंटा को समर्पित है नवरात्र का तीसरा दिन, जानें शुभ मूहर्त और मंत्र
आज का दिन यानी नवरात्रि का तीसरा दिन मां चंद्रघंटा को समर्पित है। मां की उपासना मात्र से व्यक्ति पराक्रमी और निर्भय हो जाता है, इसके अलावा जीवन के सभी संकट भी दूर हो जाते हैं।
कैसा है मां का स्वरूप
मां चंद्रघंटा के मस्तक पर घंटे के आकार का अर्ध चंद्रमा विराजमान है जिस कारण मां का नाम चंद्रघंटा पड़ा इनके शरीर का रंग सोने की तरह चमकीला और सिंह सवारी है। मां के दस हाथ माने गए हैं और इनके हाथों में कमल, धनुष, बाण, खड्ग, कमंडल, तलवार, त्रिशूल और गदा आदि जैसे अस्त्र और शस्त्रों से सुसज्जित हैं। मां चंद्रघंटा के गले में सफेद फूलों की माला और शीर्ष पर रत्नजड़ित मुकुट विराजमान है। माता चंद्रघंटा युद्ध की मुद्रा में विराजमान रहती है और तंत्र साधना में मणिपुर चक्र को नियंत्रित करती हैं। मां चंद्रघंटा को खीर बहुत पसंद है इसलिए मां को केसर या साबूदाने की खीर का भोग लगा सकते हैं।
मां चंद्रघंटा की पूजा का शुभ मुहूर्त
वैदिक पंचांग के अनुसार, मां चंद्रघंटा की पूजा करने के लिए शुभ मुहूर्त सुबह 11 बजकर 46 मिनट से लेकर 12 बजकर 33 मिनट तक रहेगा।
जानें ये प्रचलित कथा
प्रचलित कथा के मुताबिक, माता दुर्गा ने मां चंद्रघंटा का अवतार तब लिया था जब दैत्यों का आतंक बढ़ने लगा था। उस समय महिषासुर का भयंकर युद्ध देवताओं से चल रहा था। महिषासुर देवराज इंद्र का सिंहासन प्राप्त करना चाहता था। वह स्वर्ग लोक पर राज करने की इच्छा पूरी करने के लिए यह युद्ध कर रहा था। जब देवताओं को उसकी इस इच्छा का पता चला तो वे परेशान हो गए और भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश के सामने पहुंचे. ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने देवताओं की बात सुन क्रोध प्रकट किया और क्रोध आने पर उन तीनों के मुख से ऊर्जा निकली। उस ऊर्जा से एक देवी अवतरित हुईं । उस देवी को भगवान शंकर ने अपना त्रिशूल, भगवान विष्णु ने अपना चक्र, इंद्र ने अपना घंटा, सूर्य ने अपना तेज और तलवार और सिंह प्रदान किया। इसके बाद मां चंद्रघंटा ने महिषासुर का वध कर देवताओं की रक्षा की।
इन मंत्रों का करें जप
पिण्डजप्रवरारूढ़ा ण्डकोपास्त्रकेर्युता। प्रसादं तनुते मह्यं चंद्रघण्टेति विश्रुता॥
या देवी सर्वभूतेषु मां चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमो नम:।।