हरेला बरसात के मौसम व खेतों की हरियाली का सूचक, सावन के हरेला का विशेष महत्व 


हरेला बरसात के मौसम व खेतों की हरियाली का सूचक, सावन के हरेला का विशेष महत्व 

उत्तराखंड राज्य कुमाऊं मंडल में हरेला पावन पर्व को प्राचीन काल से ही अलग अलग अंदाज से बुआई करने की प्रथा चली आ रही है। कुमाऊं मंडल में हरेला साल में तीन बार होता है। आश्विन मास का हरेला सर्दी के मौसम का सूचक चैत्र मास का हरेला गर्मी मौसम का सूचक।

हरेला बरसात के मौसम व खेतों की हरियाली का सूचक

सावन के  महीने में बोये जाने हरेला सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है।यह हरेला बरसात के मौसम व खेतों की हरियाली का सूचक माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन भी पौधा लगाया जाता है वह भली भाँति लगता है ।उसके ख़राब होने की संभावना ना के बराबर रहती है ।

सावन के महीने को महादेव जी का प्रिय मास माना जाता है उत्तराखंड में महादेव जी पार्वती देवी का निवास माना जाता है।

सावन के महीने में  हरेला कटने के बाद कुमाऊं इस त्यौहार को देवी देवताओं के मन्दिर में पूजा अर्चना के साथ अपने कुल देवी देवताओं को चढ़ाकर अपने बुजुर्गो के द्धारा व भाई बहनों के द्धारा इसे पूजा जाता है।

मातृ शक्ति को परंपरा करनी चाहिए उजागर 

अल्मोड़ा जिले के गांव मंगलता की हेमा भट्ट वर्षों से नौवें दिन हरेला की गुड़ाई विधि विधान से हरेला की पूजा करके उस हरेला की टोकरी उस स्थान से हटाकर दूसरे स्थान पर रखती है। उन्होंने बताया कि अगर हम मात्र शक्ति अपने कल्चर के अनुसार हरेला की गुड़ाई विधि विधान व कुमाऊं कल्चर से करेंगे तो हमारी खेती पाती व में बरकत होती है। इसलिए हेमा भट्ट हमेशा हरेला की गुड़ाई पूजा पाठ व कुमाऊं कल्चर की पोषाक के साथ हमेशा निभाती आ रही है। हेमा भट्ट की तरह और भी मात्र शक्ति ने इस हरेला पर्व को की परंपरा को उजागर करना चाहिए।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *