लैंगिक समानता को बढ़ावा देने में शिक्षा की भूमिका विषय पर राजकीय महाविद्यालय लमगड़ा में आयोजित हुई गोष्ठी

लैंगिक समानता को बढ़ावा देने में शिक्षा की भूमिका विषय पर राजकीय महाविद्यालय लमगड़ा में आयोजित हुई गोष्ठी

आज दिनांक 11 नवंबर 2024 को शिक्षा शास्त्र विभाग द्वारा राष्ट्रीय शिक्षा दिवस के अवसर पर राजकीय महाविद्यालय लमगड़ा, अल्मोड़ा  में एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया| विचार गोष्ठी का मुख्य विषय था लैंगिक समानता को बढ़ावा देने में शिक्षा की भूमिका (The Role Of Education In Promoting Gender Equality)|

सभी लिंगों को समान अधिकार, अवसर और सम्मान देना ही लैंगिक समानता है

गोष्ठी के संयोजक विभागाध्यक्ष हेमन्त कुमार बिनवाल ने अवगत कराया कि- लैंगिक समानता का अर्थ है लड़कियों और लड़कों, महिलाओं और पुरुषों को समान अवसर मिलें, समान संसाधन प्राप्त हों | सभी लिंगों को समान अधिकार, अवसर और सम्मान देना ही लैंगिक समानता  है । लैंगिक समानता हमारे समाज के स्वस्थ एवं सर्वांगीण विकास के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण है। शिक्षा, इस दिशा में एक महत्वपूर्ण साधन साबित हो सकती है। यह लोगों के दृष्टिकोण को बदलने, स्टीरियोटाइप्स को तोड़ने, और महिलाओं व पुरुषों दोनों के लिए समान अवसरों को सुनिश्चित करने का काम करती है।

लैंगिक भेदभाव का कोई वैज्ञानिक या तर्कसंगत आधार नहीं

संयोजक द्वारा अवगत कराया कि शिक्षा के माध्यम से लोग यह समझ सकते हैं कि लैंगिक भेदभाव का कोई वैज्ञानिक या तर्कसंगत आधार नहीं है। प्रकृति में कोई भेदभाव नहीं होता है | शिक्षा लोगों के विचारों और व्यवहारों में बदलाव लाती है, जिससे समाज में समानता की नींव रखी जाती है। शिक्षा के माध्यम से ही समाज में एक ऐसी पीढ़ी तैयार की जा सकती है, जो लैंगिक असमानता के खिलाफ खड़ी हो और एक समानता-समर्थक समाज का निर्माण करे। शिक्षा के माध्यम से बच्चों को समानता, समान अवसर, और न्याय की अवधारणाएं सिखाई जा सकती हैं। स्कूलों में लैंगिक समानता पर आधारित पाठ्यक्रम और जागरूकता कार्यक्रम, रूढ़िवादी धारणाओं को तोड़ने और लड़कियों व लड़कों दोनों को सशक्त बनाने में सहायक होते हैं। अतः, यह अनिवार्य है कि वर्तमान में शिक्षा को हर व्यक्ति का अधिकार बनाया जाए और शिक्षा प्रणाली में लैंगिक समानता को सुनिश्चित करने के लिए विशेष प्रयास किए जाएं। लैंगिक समानता से ही महिलाएं और पुरुष अपने सपनों को समान रूप से पूरा कर सकते हैं और आर्थिक, सामाजिक, और राजनीतिक क्षेत्रों में योगदान दे सकते हैं।
बी ए पंचम सेमेस्टर की छात्रा भावना आर्य, पूजा रावत,काजल सिजवाली,मनीषा कनवाल, तारा बिष्ट, ज्योति बिष्ट,  नेहा बिष्ट, विशाखा बिष्ट ने इस अवसर पर अपने विचार सभी के सम्मुख रखे।

शिक्षा ही वह साधन है जिससे लैंगिक असमानता हो सकती दूर

छात्राओं द्वारा अवगत करवाया गया कि उनके अभिभावक आज भी उन्हें घर से बाहर भेजने में हिचकिचाते हैं, जॉब के लिए उन्हें बाहर नहीं भेजते, साथ ही जल्दी शादी करने का उन पर दबाव डालते हैं, जब भी वे किसी को कोई उत्तर देते हैं तो कहते हैं कि तुम लड़की हो कम बोला करो,अपने मन से घूमने फिरने में आजादी नहीं मिल पाती, वे अपने मन से कहीं भी नहीं जा सकते, घर के काम करने में वे अपने भाइयों से अधिक योग्यता रखती हैं क्योंकि उनके अभिभावक उनके भाइयों की तुलना में खेती सम्बन्धी कार्य बालिकाओं को ही देते हैं। गोष्ठी की अध्यक्षता कर रही महाविद्यालय की प्राचार्य डॉक्टर साधना पंत ने कहा कि शिक्षा ही वह साधन है जो लैंगिक असमानता को दूर कर सकता है| लैंगिक समानता केवल महिलाओं के सशक्तिकरण में सहायक नहीं है बल्कि आर्थिक विकास और स्थिरता में भी योगदान देती है। साथ ही उन्होंने राष्ट्रीय शिक्षा दिवस की सभी को बहुत-बहुत बधाइयां प्रेषित की |

इस अवसर पर उपस्थित जन

इस अवसर पर महाविद्यालय के प्राध्यापक, कर्मचारी  समेत अन्य  छात्र छात्राएं उपस्थित थे | गोष्ठी का संचालन असिस्टेंट प्रोफेसर हेमन्त कुमार बिनवाल द्वारा किया गया |

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