प्रो० सुशील उपाध्याय की कविता, प्रेत के पांव….
मुझे अक्सर संदेह होता हैकि मैं आदमी हूं!क्योंकिरास्ते में गिर जाती है मेरी नाक,आंखें और दूसरे अंग भी,राह चलता…
मुझे अक्सर संदेह होता हैकि मैं आदमी हूं!क्योंकिरास्ते में गिर जाती है मेरी नाक,आंखें और दूसरे अंग भी,राह चलता…