उत्तराखंड सरकार जब तक कोई सख्त कानून नहीं बनाती तब तक पर्वतीय क्षेत्रों के वनों की आग पर काबू पाना असम्भव- प्रताप सिंह नेगी

उत्तराखंड सरकार जब तक कोई सख्त कानून नहीं बनाती तब तक पर्वतीय क्षेत्रों के वनों की आग पर काबू पाना असम्भव- प्रताप सिंह नेगी

अल्मोड़ा, उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों के जंगलों में लगातार भीषण आग लगाने वालों के खिलाफ सख्त से कार्रवाई होनी चाहिए। इस आग लगाने वालों की रोकथाम के लिए उत्तराखंड सरकार जब तक कोई कानून नहीं बनाती तब तक उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों के वनों की आग पर काबू पाना असम्भव है। इस बार तो कुमाऊं व गढ़वाल के जंगल के जंगल इस आग से पूरे जल गए हैं।

जंगल भीषण आग की चपेट में आ रहे

अभी अभी अल्मोड़ा के बिंनसर में आग के चपेट से इतनी बड़ी दर्दनाक नाक घटनाएं हुई इससे पहले हल्द्वानी, नैनीताल, पिथौरागढ़, पौड़ी, चमोली आदि जिलों में जंगल में आग के कारण पेड़ पौधे ही नष्ट नहीं बल्कि बहुत सी दर्दनाक घटनाएं हुई।एक तरफ उत्तराखंड में इस साल बारिश कम होने से सूखा पड़ा है दूसरी तरफ जंगल के जंगल भीषण आग के चपेट में आ रहे हैं।

जंगलों में आग लगाने वालों का सिलसिला बढ़ते जा रहा

अल्मोड़ा से प्रताप सिंह नेगी समाजिक कार्यकर्ता ने बताया दो तीन सालों उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों के जंगलों में आग लगाने वालों का सिलसिला बढ़ते जा रहा है। इस बार तो भीषण आग का दस पंद्रह सालों से रिकॉर्ड तोड दिया। उन्होंने कहा कि हमारे पर्वतीय क्षेत्रों के लोग गाय बकरियों के ग्वाला जाने वाले लोग अनगिनत छोटे छोटे पेड़ों को काटते रहते हैं अपने गाय बकरियों के लिए जिससे वैसी ही जंगलों का नाश हो रहा है। उन्होंने कहा कि कच्ची लकड़ियों को काटने के लिए  उत्तराखंड सरकार व वन विभाग की तरफ से रोकथाम  के लिए कोई ना कोई कारवाई करनी चाहिए।

पानी की किल्लत बढ़ते जा रही

उत्तराखंड में  आग के कारण व अनगिनत छोटे छोटे कच्चे पेड़  पौधे काटने से वर्तमान में जमीन में नमी देने वाले व छायादार पेड़ पौधों की कमी होते जा रही है। इसलिए हर ज़िलों में पानी के स्रोत व नौले ,धारे के पानी सूखने की कगार मे है।जगह जगह पर पानी की किल्लत बढ़ते जा रही है।

पानी की गंभीर समस्या बनने के आसार

इसके जिम्मेदार शासन प्रशासन ही नहीं बल्कि हम लोग भी हैं।जब तक जनता जंगलों में आग लगाने की प्रथा पर ख़ुद कंट्रोल नहीं करेगी और कच्चे पेड़ पौधों को काटने में रोकथाम नहीं करेगी तब तक ऐसा ही होगा जैसा इस समय वर्तमान में जमीन पानी के स्रोत धीरे-धीरे सुखते जा रहें हैं। अगर यही हाल रहा तो भविष्य में उत्तराखंड में पानी की गंभीर समस्या बनने के आसार दिख रहे हैं।

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