नागरी लिपि परिषद् के स्वर्ण जयंती वर्ष में संगोष्ठी का हुआ आयोजन

पत्रकारिता की भाषा को बाज़ार की भाषा बनने से बचाना होगा : प्रोफेसर चंद्रदेव यादव ( मुख्य वक्ता )

नागरी लिपि परिषद् के स्वर्ण जयंती वर्ष में गांधी हिंदुस्तानी साहित्य सभा के संयुक्त तत्वावधान में 3 मई 2024 को नागरी संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस नागरी संगोष्ठी के संयोजक जामिया मिल्लिया इस्लामिया के युवा एवं उत्साही प्राध्यापक डॉ राकेश कुमार दुबे थे।इस नगरी संगोष्ठी की संरचना बुनने ,उसे क्रियान्वित करने का पूर्ण श्रेय इन्हीं को जाता है।डॉ . दुबे ने गोष्ठी को सफल बनाने के लिए जी जान से प्रयास किये और विद्वानों और विभिन्न संस्थानों और महाविद्यालयों के विद्यार्थियों को एकत्रित किया।


हरिपाल सिंह जी के वक्तव्य के अंत में उनकी पुस्तक ‘आदि इत्यादि’ का लोकार्पण किया गया साथ ही नागरी लिपि परिषद् से निकली दो पत्रिका ‘नागरी संगम’ और ‘सौरभ’ का भी लोकार्पण किया गया। लोकार्पण की इस कड़ी में अरुण कुमार पासवान पुस्तक ‘अंगिका’ का भी लोकार्पण हुआ।

पत्रकारिता की भाषा को बाज़ार की भाषा से बचे


इसके पश्चात कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित जामिया मिल्लिया इस्लामिया के हिंदी विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. ‘चंद्रदेव यादव’ ने अपनी बात रखी। उन्होंने अपनी बात आरंभ करने से पूर्व नागरी लिपि परिषद् की ओर से आयोजित परिचर्चा के आयोजनकर्ताओं को आभार व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि 21 वीं सदी के आरंभ की असगर वजाहत ने हिंदी को रोमन लिपि में लिखने की पेशकश की बात बताते हुए नागरी लिपि परिषद् की सराहना की। उन्होंने नागरी लिपि के इतिहास में जाते हुए ‘नागरी’ पत्र का जिक्र किया जिसकी नागरी लिपि के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका है। उन्होंने ‘नज़ीर’ के उपन्यास :मिरातुल उरुस’ का जिक्र किया जिसके अनुसरण पर हिंदी में कई उपन्यास लिखे गए। उन्होंने बताया कि हिंदी लगातार बदलती रही है और आज भी बदल रही है लेकिन हमें इसके शुद्ध प्रयोग पर ध्यान देना चाहिये इसके साथ ही क्षेत्रीय प्रभाव के चलते गलत उच्चारण, पत्रकारिता को साहित्य की भाषा और साहित्य को पत्रकारिता की भाषा को जानना आवश्यक है आदि विषयों पर उन्होंने अपनी बात रखी और साथ ही वर्तमान में पत्रकारिता की भाषा को बाज़ार की भाषा से बचने को कहा और नवभारत टाइम्स द्वारा प्रयोग की गई भाषा, अन्य अखबारों की भाषा तथा विज्ञापनों की भाषा के कई उदाहरण भी पेश किए। मुख्य वक्ता विद्वान प्रोफेसर चंद्रदेव यादव ने मीडिया की भाषा की स्थिति से तो रूबरू कराया ही साथ ही उन्होंने अपनी बात खत्म करते हुए मिश्रित भाषा के प्रयोग पर असहमति जताई और कहा कि अगर हम हिंदी भाषा का प्रयोग कर रहे हैं तो हिंदी का ही प्रयोग करे उसमें अंग्रेज़ी का मिश्रण न करें और अंग्रेज़ी का प्रयोग कर हैं तो केवल अंग्रेज़ी का ही प्रयोग करें।


अगले कड़ी में मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित ‘विमलेशकांति वर्मा’ जी ने अपनी बात रखी और अनुच्छेद 8 में शामिल 22 अनुसूचित भाषाओं पर लंबी बात की और बताया कि भाषा और लिपि के बीच अंतर को अच्छे से समझने की आवश्यकता है साथ ही साथ उन्होंने गांधी और काका कालेलकर का योगदान, नागरी लिपि के कुछ दोष आदि विषयों पर अपनी बात रखी और अरबी फ़ारसी के उपयोग पर जोर दिया। उनके वक्तव्य के अंत में उन्हें प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया गया।
कार्यक्रम में अंतिम वक्ता के रूप में अध्यक्षीय वक्तव्य के लिए पूर्व कुलपति डॉ. ‘प्रेमचंद पातंजलि’ ने अपनी बात रखी और बहुत संक्षेप में पत्रकारिता की भाषा और लिपि का शुद्ध रूप में प्रयोग करने को कहा और बताया कि पत्रकार को आक्रामक होने से बचना चाहिए क्योंकि उससे समाज का कल्याण नहीं होगा।
पत्रकारिता की जब शुरुआत हुई तो उसके सामने एक आदर्श स्थिति थी, स्वतंत्रता आंदोलन उसकी राह देख रहा था लेकिन आज की पत्रकारिता में भटकाव दिखाई देता है। अंत में उन्होंने नागरी लिपि के विकास में जिन लोगों का योगदान रहा उनका आभार व्यक्त किया। विद्यार्थियों की जिज्ञासाओं का निराकरण प्रश्नसत्र में बहुत बेबाकी से किया गया।

संगोष्ठी के विचारों का समाहार करते हुए संगोष्ठी संयोजक डॉ . राकेश कुमार दुबे ने मंच से प्रभावी स्वर में कहा कि यदि हमें आज हिंदी मीडिया को सच्चे अर्थों में लोकप्रिय तथा उपयोगी माध्यम बनाना है तो इसकी भाषा को चुस्त दुरुस्त करना बहुत जरूरी है।इसके लिये मीडिया की भाषा को अनुशासित और मर्यादित करना होगा।नागरी के मानकों के अनुसार शुद्ध प्रयोग करना होगा।नागरी के द्वारा भारतवर्ष को एकसूत्रता के धागे में पिरोया जा सकता है।उन्होंने बताया कि मुख्य वक्ता के सान्निध्य में रहकर कोई भी हिंदी प्रेमी बहुत सहजता से हिंदी का मानक प्रयोग सीख सकता है क्योंकि यादव सर भाषा के प्रयोग में बहुत सावधान ,सटीक और कुशल हैं।उन्होंने कहा भाषाविज्ञान के संस्थान स्वरूप आदरणीय प्रोफेसर विमलेश कांति वर्मा और प्रोफेसर चंद्रदेव यादव सरीखे विद्वानों की उपस्थिति ही इस संगोष्ठी सार्थकता और सफलता के लिए बहुत महत्पूर्ण है।

अंत में राष्ट्रगान के साथ इस नागरी संगोष्ठी का सुंदर समापन हुआ।

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