क्या है अल्मोड़ा नगर की ऐतिहासिक और पौराणिक व्याख्या, आइए जानें

क्या है अल्मोड़ा नगर की ऐतिहासिक और पौराणिक व्याख्या, आइए जानें

उत्तराखंड राज्य में स्थित नगर अल्मोड़ा, वर्तमान में जिले का प्रशासनिक मुख्यालय है। यह एक नगरपालिका और छावनी नगर है। इसके अलावा यह राज्य के कुमाऊँ क्षेत्र की सांस्कृतिक राजधानी माना जाता है। घोड़े की काठी के आकार में कश्यप पहाड़ियों पर दक्षिणी किनारे पर 5 किमी लंबी पहाड़ी पर स्थित, अल्मोडा बर्फ से ढके हिमालय की पृष्ठभूमि में बसा एक सुरम्य शहर है। अल्मोड़ा अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत, अद्वितीय हस्तशिल्प और स्वादिष्ट व्यंजनों के लिए जाना जाता है।

इस नगर को राजा कल्याण चंद ने 1568 में स्थापित किया था। अल्मोड़ा, कुमाऊँ राज्य पर शासन करने वाले चंदवंशीय राजाओं की राजधानी थी और कुमाऊं जिले के प्रशासनिक मुख्यालय था।  प्राचीन अल्मोड़ा कस्बा, चंद शासकों द्वारा स्थापित किए जाने से पहले कत्यूरी राजा बैचल्देव के अधीन था। बैचल्देव ने अपनी धरती का एक बड़ा भाग एक गुजराती ब्राह्मण श्री चांद तिवारी को दान दे दिया। स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, तिवारी अल्मोड़ा के सबसे पहले निवासियों में थे, जो कटारमल के सूर्य मंदिर में बर्तनों की सफाई के लिए रोज़ एक प्रकार की वनस्पति की आपूर्ति करते थे। प्राचीन ग्रंथों, जैसे विष्णु पुराण और स्कन्दपुराण में इस क्षेत्र में मानव बस्तियों के होने का वर्णन है। कत्यूरी राजाओं के समय में इसे राजपुर कहा जाता था। बहुत सी प्राचीन ताँबे की प्लेटों पर ‘राजपुर’ नाम का उल्लेख पाया गया है। महाभारत (8 वीं और 9वीं शताब्दी ईसा पूर्व) के समय से ही यहां की पहाड़ियों और आसपास के क्षेत्रों में मानव बस्तियों के विवरण मिलते हैं।

अल्मोड़ा में चंदों के आगमन से पहले दो राजा नगर के दोनों छोरों पर स्थित दो किलों में रहते थे। नगर के दक्षिण में खागमरा नामक किला था, जिसमें कत्यूरी राजा बैचल्देव उर्फ बैजलदेव का महल था। कत्यूरी राजाओं ने इस किले को नवीं शताब्दी में बनवाया था। राजा बैचल्देव का शासन बारामण्डल के कुछ इलाके तक ही था। वहीं नगर के उत्तर-पश्चिम में, एक पर्वत के अंत में, रेयलाकोट का किला था, जो कि पूर्वकाल में रेयला समुदाय के एक राजा का महल था। कहा जाता है कि इस महल में स्फटिक के खंभे फिट थे। आज भी इस किले के खंडहर विद्यमान् हैं। रेयलाओं के वंशज अल्मोड़ा में चंदों के आने तक उपस्थित थे।


स्कन्दपुराण के मानसखंड में कहा गया है कि कौशिकी (कोशी) और शाल्मली (सुयाल) नदियों के बीच में एक पावन पर्वत स्थित है। इसी पर्वत को आज अल्मोड़ा नगर के नाम से जाना जाता है। यह कहा जाता है कि इस पर्वत पर विष्णु भगवान का निवास था। कुछ विद्वानों का यह भी मानना है कि विष्णु का कूर्मावतार इसी पर्वत पर हुआ था। एक अन्य कथा के अनुसार यह कहा जाता है कि अल्मोड़ा की कौशिका देवी ने शुंभ और निशुंभ नामक दानवों को इसी क्षेत्र में मारा था। प्राचीन युग से ही इस स्थान का धार्मिक, भौगोलिक और ऐतिहासिक महत्त्व रहा है।

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