पद्मश्री यशोधर मठपाल द्वारा स्थापित ‘फोक कल्चर म्यूजियम’ की दिलचस्प यात्रा
✒️डा. ललित जोशी का घुमक्कड़ी वृतांत
भीमताल किसी परिचय का मोहताज नहीं है। एक तरफ प्राकृतिक एवं नैसर्गिक छटा तो दूसरी तरफ पद्मश्री यशोधर मठपाल द्वारा स्थापित किया हुआ ‘फोक कल्चर म्यूजियम’। खुटानी मार्ग,भीमताल के समीप स्थित ‘फोक कल्चर म्यूजियम’ एक बहुत बड़ी विरासत हम लोगों के सामने है। इस संग्रहालय की स्थापना 1983 में स्वयं यशोधर मठपाल जी ने की। वे ही इसके निदेशक/संरक्षक हैं। इस संग्रहालय में गुफा कला दीर्घा भी स्थापित की गई है जिसमें 500 से अधिक चित्र आदिमानवों के जीवन से जुड़े हुए हैं। लाखुउडियार, फलसीमा, फड़कानौली, कसारदेवी आदि में आदिमानव द्वारा उकेरे गए रॉक पेंटिंग्स के प्रारंभिक रूप को इस दीर्घा में देख सकते हैं।मेरा कई बार इस संग्रहालय के समीप से गुजरना हुआ है लेकिन इसके भीतर जाने का समय नहीं मिल पाया। कल घुमक्कड़ी में इस संग्रहालय के भीतर पहुंचा, जहां देख कर आश्चर्य हुआ। मेरी आँखें इस संग्रहालय के भीतर संकलित धरोहरों को देखकर खुली की खुली रह गयी। मन में एक प्रश्न आया कि क्या कोई व्यक्ति अपने जीवन के 80-85 वर्षों में इन धरोहरों को एक छत के नीचे ला सकता है? जब आप भी इस संग्रहालय में जाएंगे तो आपके मन मस्तिष्क में भी यह सवाल अवश्य उठेगा। इस सवाल का एक है जवाब होगा और वो हां में। यशोधर मठपाल जी ने अपने जीवन में आदिम युग से लेकर अब तक के इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति आदि को लेकर किये हुए कार्य को इस संग्रहालय के रूप में समेटकर बड़ी मिशाल खड़ी की है। उन्होंने दर्जनों किताबें लिखकर प्रागैतिहासिक कला, जनजातीय कला, प्रागैतिहासिक रॉक कला आदि पर दृष्टि डाली है। पद्मश्री यशोधर मठपाल द्वारा इतिहास, पुरातत्त्व, लोक संस्कृति और कला धरोहरों को लेकर यह संग्रहालय स्थापित किया है। यह संग्रहालय देश-दुनिया के उत्कृष्ट संग्रहालयों में से एक है। मठपाल जी के द्वारा लोक संस्कृति, रॉक आर्ट्स, तिब्बती जन- जीवन, जनजातीय जीवन आदि को लेकर उकेरी गई हजारों कृतियाँ/चित्र इस उत्तराखंड की पहचान को और अधिक पुख्ता क़रतीं हैं। देखकर यह लगा कि इस संग्रहालय का उपयोग कई रूपों में लाभदायी हो सकता है। यहां भ्रमण आदि कर बहुत कुछ सीख सकते हैं।पद्मश्री मठपाल जी ने केवल भारत ही नहीं वरन देश-विदेशों के सिक्कों, वस्त्राभूषण, काष्ठकला का भी संकलन किया है। लोक वाद्ययंत्रों के साथ हजारों साल पहले (3 हजार) पूर्व के, आदिमानवों द्वारा प्रयुक्त किये जाने वाले नुकीले पत्थरों, ब्रिटिश काल के हथियार, जीवाश्म (लगभग 15 करोड़ वर्ष पूर्व), उल्कापिंड, सिंधु सभ्यता की ईंटें,मृदभांड, पाषाण वीर स्तंभ आदि कीमती वस्तुओं का संकलन आश्चर्यचकित करता है। इसके साथ कई ऐतिहासिक वस्तुओं का संकलन किया है जो अपने आप में बहुत उत्कृष्ट है।वर्तमान समाज से संबंधित सामग्री का संकलन गर्व करता है। उन्होंने पांडुलिपि, पुरातन ग्रंथ, धातुओं के पुराने बर्तन, वाद्ययंत्र, वस्त्राभूषण, सिक्के आदि का संकलन किया है जो कुमाउनी समाज के लिए महत्वपूर्ण है। काष्ठकला, धातुकला, शिल्पकला, लोककलाओं से जुड़ी सैकड़ों सामग्री विद्यमान है। इस संग्रहालय में दो दीर्घाओं का प्रवेश शुल्क 200 रखा गया है। प्रारंभ में ऐसा लगा कि ऐसा क्या है जो 200 रुपये शुल्क है, लेकिन जब संग्रहालय के भीतर प्रवेश कर प्रागैतिहासिक काल से लेकर वर्तमान तक के पुरावशेषों, विलुप्त हो चुकी विरासतों को देखा तो यह शुल्क कम लगेगा। भीतर प्रवेश करने पर लगभग 3 घण्टे में इन संकलित सामग्री को देख पाएंगे,क्योंकि इस संग्रहालय में दुर्लभ सामग्रियों की संख्या अधिक है। प्रवेश शुल्क और निजी प्रयासों से एक उच्चस्तरीय संग्रहालय स्थापित किया गया है। व्यक्तिगत प्रयासों से इस संग्रहालय को धरोहर रूप में सहेजना एक लंबी साधना का परिणाम है। मन प्रफुल्लित हो जाता है और बार बार वहां जाने की इच्छा जगती है।डॉ सुरेश मठपाल जी ने बताया कि निजी प्रयासों से यह संग्रहालय अपने अस्तित्व में आया है। बाबू जी (यशोधर मठपाल जी) ने इस संग्रहालय में प्रागैतिहासिक युग से लेकर अब तक कि मानवीय संस्कृति का लेखा-जोखा संरक्षित किया है। लोगों के पदचिन्ह इस संग्रहालय में पड़ते रहें तो वे बहुत कुछ जान-समझ सकते हैं। हम इस स्थल को संसाधनों से बेहतर बनाने की दिशा में लगे हुए हैं। संग्रहालय पारंपरिक प्रणालियों को लेकर भी काम करेगा। वर्तमान में संग्रहालय का प्रबंधन/निर्देशन डॉ यशोधर मठपाल जी के पुत्र डॉ सुरेश मठपाल जी कर रहे हैं। उन धरोहरों को सुरक्षित रखने के लिए कई प्रयास किये हैं। संग्रहालय विश्व के सबसे बेहतर संग्रहालय में से एक है। जहां शोधकों, विद्यार्थियों और कलाप्रेमियों का आगमन होता है। इस संग्रहालय के भीतर प्रागैतिहासिक काल के अलावा आद्य इतिहास, ऐतिहासिक काल खंडों के साथ अतीत की वस्तुओं का संग्रह भी है। आश्चर्यचकित कर देने वाला ऐसा दुर्लभ संकलन एक साधक ही कर सकता है। इस स्थान पर साधक की साधना से अंतर्मन प्रेरित हुआ। डॉ सुरेश जी से संग्रहालय को लेकर बहुत वार्ता हुई और उन्होंने मुझसे संग्रहालय से जुड़े रहने को कहा।
……..डॉ ललित योगी