काफल खट्टे मीठे स्वादिष्ट व पोषक तत्वों से भरपूर, जानें काफल से जुड़ी ये प्रचलित कहावत

  
काफल खट्टे मीठे स्वादिष्ट व पोषक तत्वों से भरपूर, जानें काफल से जुड़ी ये प्रचलित कहावत


उत्तराखंड , हिमाचल व नेपाल के पर्वतीय क्षेत्रों के ठंडे पहाड़ों  के जंगलों में पैदा होने वाला काफल फल अप्रैल लास्ट व मई जून में काफल फलों के खट्टे मीठे स्वादिष्ट फल काफल का स्वाद नहीं लिया तो क्या लिया। 

काफल फलों के गुण, सेवन से फायदे

काफल फल में पोषक तत्व कैल्शियम , फास्फोरस आयरन , जिंग, विटामिन सी आदि पोषक तत्वों वाला फल है। काफल फल के सेवन करने से कई फायदे होते हैं । इनमें एंटी आक्सीडेंट भरपूर मात्रा में  होता है ,जो कई तरह की बिमारियों की रोकथाम करता है।  डायरिया , अल्सर , सूजन ,गले में  दर्द ,खरास बुखार ,काफल के बीज का तेल कान दर्द के लिए लाभदायक होता है । मई जून दो महीने गर्मियों के मौसम में  काफल स्वाद देने के साथ साथ थकान व पेट साफ भी होता है। 

काफल के बारे में ये कहावत है प्रचलित
                       

प्रताप सिंह नेगी अल्मोड़ा द्वारा काफल को लेकर एक प्रचलित कहावत बताई गई उन्होंने बताया कि ,काफल फल के बारे में प्राचीन समय की कहावत है । किसी गांव में एक गरीब परिवार की महिला थी वह काफल फल के पकने के समय काफल तोड़कर बजार में बेचा करती थी। एक दिन महिला काफल तोड़कर एक छपरी में रखकर अपने खेतों में चली गई और अपनी लड़की को बता कर गई । कि ये काफल की रखवाली करना, बेटी घर पर काफल की रखवाली करती रही। मां के खेतों से आने पर मां ने काफल की छपरी को देखा तो काफल धूप के अधिक होने की वजह से छपरी में कम दिखे। जिस कारण महिला ने बोला, बेटी मैंने आपको काफल के रखवाली के लिए बोला था । आपने काफल क्यों खाये ? उसने बोला मां मैंने काफल नहीं खाये बहुत बार अपनी मां को बोला मैंने काफल नहीं खाये।।

महिला को खेतों से धूप में होने के कारण थकान थी जिस कारण महिला ने क्रोध में आकर छपरी में काफल कम दिखने के कारण अपनी बेटी पटक पटक कर अधमरी बना दी । जिसके कुछ समय बाद बेटी ने प्राण त्याग दिए। तब मां को एहसास हुआ की मैंने अपनी बेटी को ये काफल के लिए मार दिया जिस कारण महिला को पश्चाताप हुआ व बेटी के दुःख में उसने अपने भी प्राण त्याग दिए।

ऐसा कहा जाता है कि बाद में दोनों मां बेटी ने कफुवा पक्षी के तौर पर जन्म लिया। जो आज भी अप्रैल मई जून के महीने में जंगलो में काफल पाकों वाली चिड़िया मधुर आवाज में बोलती है।
मां चिड़िया बोलती है काफल पाकों..
बेटी चिड़िया बोलती है मैन ना चाखो..

ये धुन जंगलों में चिड़िया के द्वारा सुनाई देती है। इस काफल फल के बारे में झोड़ा चांचरी व लोकगीत भी बनाये गए हैं।     
                                    
1. कफुवा तू बासलें कब जब आलो जेठक मैहणा कफुवा तू बसालै कब बांटे में काफल  कि डाली तू आले कब।                      जब आलो चैतक मैहणा कफुवा तू बासलें कब बांटे में काफल कि डाली कफुवा तू आले कब।  

2. जब आलो चैतक मैहणा काफला तू पाकले कब बांटे काफल कि डाली तू पाकलें कब।।   जब आलो जेठक मैहणा काफला तू पाकले कब बांटे में काफल कि डाली काफला तू पकालें कब।

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