Uttarakhand forest fire: आखिर क्यों धधक रहे प्रदेश के जंगल

Forest fire

उत्तराखंड, अपनी प्राकृतिक सुंदरता, समृद्ध संस्कृति और मधुर गीतों के लिए जाना जाता है। राज्य का लगभग 50% हिस्सा जंगलों से ढका हुआ है, जो इसे और भी खूबसूरत बनाता है। लेकिन हर साल, इन हरे-भरे जंगलों को आग का सामना करना पड़ता है।

200 से ज्यादा बार जल चुके जंगल

Forest Survey of India (FSI) के आंकड़ों के अनुसार, 21 अप्रैल से अब तक उत्तराखंड में 200 से ज्यादा बार जंगल में आग लगने की घटनाएं सामने आ चुकी हैं। यह संख्या देश में दूसरी सबसे ज्यादा है, पहले नंबर पर उड़ीसा है। नैनीताल के आसपास के जंगलों में लगी आग इतनी भयानक थी कि उसे बुझाने के लिए सेना के Mi-17 हेलीकॉप्टर का इस्तेमाल करना पड़ा।

वन संपदा में आग लगाने वालों के प्रति कोई ठोस कदम उठाकर कोई कानून बनाना चाहिए-प्रताप सिंह नेगी

अल्मोड़ा से सामाजिक कार्यकर्ता प्रताप सिंह नेगी का कहना है कि उतराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों के जंगलों में इन दिनों भीषण आग लगाने से पूरे उत्तराखंड पर्वतीय क्षेत्रों में धुआं धुआं से वायु प्रदुषण से लोग परेशान हैं।इस भीषण आग से पर्वतीय क्षेत्रों के ग्रामीणों को आंखों में जलन व सास लेने में दिक्कत आ रही है। अभी इस आग के कारण पूरे कुमाऊं व गढ़वाल के पर्वतीय क्षेत्रों में रह रहे लोग वायु प्रदुषण के चपेट में आ रहे हैं।जंगल के जंगल इस भीषण आग से जल कर राख हो रहें हैं।
प्रताप सिंह नेगी ने बताया इस साल सर्दियों में बारिश न होने के कारण जंगल वैसे भी सुखे पड़े हैं। जहां तहां चीड के जंगलों पिरुल पड़ा है।इस पिरुल में आग लगने के बाद चीड़ के पेड़ व अन्य पेड़ जल जा रहे हैं। नेगी ने कहा उतराखड के पर्वतीय क्षेत्रों में आग लगने से वायु प्रदुषण से लोगों को सांस लेने व आंखों में जलन की शिकायत तो हो ही रही है। दूसरी तरफ उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों की बन संपदा भी नष्ट हो रही है। उत्तराखंड की बन संपदा में जो पेड़ पौधे औषधि के काम आते थे व भी इस भीषण आग से सब जल रहें हैं।जो जंगली फल खट्टे मीठे स्वादिष्ट के साथ साथ अनेकों बिमारियों की रोकथाम के लिए काम आते थे व जंगली फल भी इस आग ने जला कर राख कर दिये। इधर बेकसूर जंगली पशु पक्षी भी इस आग में मर जाते हैं।

उत्तराखंड सरकार को उत्तराखंड की वन संपदा में आग लगाने वालों के प्रति कोई ठोस कदम उठाकर कोई कानून बनाना चाहिए।

उत्तराखंड सरकार जब तक आग लगाने वालों के खिलाफ कोई सख्त कानून नहीं बनायेगी तब तक ये आग हर साल लगते रहेगी।आग लगाने वालों को कड़ी से कड़ी सजा व जुर्माना होना चाहिए ताकि आने भविष्य में लोग सजा व जुर्माना के कारण अनगिनत आग लगाने में कंट्रोल हो सकतें हैं

पिछले साल भी 600 बार जल चुके थे जंगल

डेटा बताता है कि पिछले साल नवंबर से अब तक उत्तराखंड में 600 से ज्यादा बार जंगल में आग लगने की घटनाएं दर्ज की गई हैं, जिनमें करीब 736 एकड़ जंगल जलकर खाक हो गया।

आग लगने के कारण

गर्मी के मौसम में जंगलों में आग लगना कोई नई बात नहीं है, लेकिन उत्तराखंड में यह आग अक्सर विकराल रूप ले लेती है।

  • चीड़ के पेड़ों की वजह: उत्तराखंड के जंगलों में ज्यादातर चीड़ के पेड़ पाए जाते हैं। गर्मियों में जब ये पेड़ सूखते हैं, तो इनकी पत्तियां झड़ती हैं, जिन्हें स्थानीय लोग “पीरुल” कहते हैं। इन पत्तियों में एक तरह का बायो-फ्यूल होता है जिसे “लीसा” कहा जाता है। यह लीसा पेड़ों के तने से भी निकलता है। तेज हवा से पत्तों में लगी आग धीरे-धीरे पेड़ों को भी अपने घेरे में ले लेती है।
  • मानवीय लापरवाही: वन विभाग का कहना है कि नैनीताल के जंगलों में लगी आगें मानव निर्मित हैं। गढ़वाल के वन अधिकारी अनिरुद्ध स्वपनिल का कहना है कि ये आगें शरारती तत्वों द्वारा लगाई जा रही हैं।

फॉरेस्ट डिपार्टमेंट का कहना

फॉरेस्ट डिपार्टमेंट का कहना है कि नैनीताल में लगी आगें मानव निर्मित हैं। गढ़वाल के वन अधिकारी अनिरुद्ध स्वपनिल का कहना है कि ये आग शरारती तत्वों द्वारा लगाई जा रही हैं।

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