100 वर्ष पुरानी पांडुलिपि,डेढ़ सौ वर्ष पुरानी लाठी, मुद्रा, तिलक वस्तुओं की लगी प्रदर्शनी
“साहित्य में नदी संस्कृति” संगोष्ठी का उद्घाटन पूर्व मुख्यमंत्री उत्तराखंड. त्रिवेंद्र रावत जी ने किया। कुम्भनगरी हरिद्वार में अखिलभारतीय साहित्य परिषद् के द्वारा साहित्य में नदी संस्कृति विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का श्री गणेश पूर्व मुख्यमंत्री माननीय त्रिवेंद सिंह रावत ने मां सरस्वती के सम्मुख दीप प्रज्वलन के साथ किया। दिनांक 24 सितम्बर 2023 को श्री पवनपुत्र बदल के निर्देशन प्रातः 10.00 बजे से पाँच चर्चा सत्र सफल संपन्न हुए।इस संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में मुख्य अतिथि के रूप में त्रिवेन्द्र सिंह रावत (पूर्व मुख्यमन्त्री, उत्तराखण्ड) तथा मुख्य वक्ता के रूप में श्रीयुत श्रीधर पराड़कर (राष्ट्रीय संगठन मन्त्री, अखिल भारतीय साहित्य परिषद्) एवं स्वागत भाषण डॉ. सुनील पाठक (उत्तराखण्ड प्रदेश अध्यक्ष- अखिल भारतीय साहित्य परिषद्) द्वारा किया गया।
प्रथम 5 सत्रों में कुल लगभग 24 शोधपत्रों का वाचन किया गया
माननीय रावत ने नदियों के सरक्षण हेतु पर्यावरण, वृक्ष संरक्षण, मुख्य रूप से पीपल, बरगद जैसे वृक्षों के महत्त्व को स्पष्ट करते हुए, परिषद के द्वारा संकल्पित संगोष्ठी की कुशल संचालन की शुभकामनाएं और बधाई दी। श्री श्रीधर पराड़कर ने नदियों के जल को स्थानीय भूमि के स्वाभाविक प्रसिद्धि से जोड़ने का सफल उद्बोधन प्रस्तुत किया। परिषद् के प्रांतीय अध्यक्ष श्री पाठक जी ने संगोष्ठी के बीजवपन स्वरूप संकल्प को स्पष्ट किया।
संगोष्ठी के प्रथम 5 सत्रों में कुल लगभग 24 शोधपत्रों का वाचन किया गया, जिससे नदी संस्कृति की विशेषताओं से श्रोता गण लाभान्वित हुए।
इस अवसर पर उपस्थित रहे
उद्घाटन सत्र के संचालक डा. जगदीश पंत कुमुद तथा अन्य सत्र संचालकों की भूमिका डा. अरविंद मौर्य , डा. अर्चना डिमरी, डा धर्मेंद्र पांडे ने निभाई तथा विभिन्न सत्रों की अध्यक्षता डा. भगवान त्रिपाठी, डा. नीलम राठी,श्री शिव मंगल ने की । अवगत हो कि संगोष्ठी में परिषद् के हरिद्वार जनपद अध्यक्ष सचिन प्रधान, महामंत्री डा. विजय त्यागी, सचिव अभिनंदन गुप्ता, प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. अशोक गिरी तथा समस्त भारतवर्ष के विभिन्न प्रान्तों से आशा वर्मा(उ.प्र.), ज्योत्सना सिंह(उ.प्र.), इंदुशेखर तत्पुरुष(राजस्थान), कृष्णलाल विश्नोई(राजस्थान), श्री सुभाष विश्नोई(राजस्थान), डॉ. मीनाक्षी मीनल(बिहार), डॉ. रवीन्द्र शाहाबादी(बिहार), डॉ. नन्द जी दुबे(बिहार), डॉ. नीता सक्सेना(भोपाल), डॉ. राजेश्वर राजू(जम्मू), श्रीरामगोपाल तिवारी(मध्यप्रदेश), डॉ. रतन मनेरिया(राजस्थान), शीतल कोकाटे(महाराष्ट्र), मंजू रेढु(हरियाणा), शिवनीत सिंह(हरियाणा), स्नेहलता शर्मा (राजस्थान), डॉ. भगवान त्रिपाठी(उड़ीसा), स्वाति (दिल्ली), डॉ. रामानुज पाठक(मध्यप्रदेश), चन्द्रिका प्रसाद मिश्रा(महाराष्ट्र), सपना जायसवाल(हिमाचल), रचना शर्मा(हिमाचल), शिव मंगल मंगल(उ.प्र.), रवीन्द्रनाथ तिवारी(उ.प्र.), नीलम (दिल्ली), ज्योति भूषण जोशी (गोवा), आदित्य कुमार गुप्ता (राजस्थान), डॉ. बलदेव मोरी (गुजरात), डॉ. दिलीप के. जोगल (गुजरात), डॉ. बलजीत श्रीवास्तव(उ.प्र.),डॉ. विपिन चन्द्र(राजस्थान) जैसे अखिलभारतीय ख्यातिप्राप्त विद्वानों के विचारों से श्रोतागण तथा समाज लाभान्वित होगा। साथ ही लब्धप्रतिष्ठित स्थानीय विद्वान् साहित्यकारों में रेखा खत्री(श्रीनगर), लोकेषणा मिश्रा (हल्द्वानी), डॉ. शान्तिचन्द (खटीमा), अनुपमा बलूनी(श्रीनगर), डॉ. ऋतुध्वज(हरिद्वार), डॉ. अर्चना डिमरी (देहरादून), डॉ. नीरज नैथानी (श्रीनगर), डॉ. पुष्पा खण्डूरी (देहरादून), डॉ. केतकी तारा(अल्मोड़ा), पुष्पलता जोशी (हल्द्वानी), आरती पुण्डीर(श्रीनगर), डॉ. सुमन पाण्डे(लोहाघाट), डॉ. वन्दना (लोहाघाट), डॉ. अनीता टम्टा (लोहाघाट), डॉ. रोमा (खटीमा), डॉ. सोनिका (खटीमा), डॉ. दिनेश राम(लोहाघाट) आदि विद्वानो की उपस्थित गरिमामय रही।
25 सितंबर की संध्या में हुआ संगोष्ठी का समापन
समापन सत्र दिनांक 24 सितंबर 2023 से गतिमान नदी संस्कृत विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का समापन 25 सितंबर 2023 के संध्या में हुआ। दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन तथा समापन सहित 11 सत्रों का आयोजन किया गया, जिसमें देश के 18 राज्यों से आए हुए लगभग 55 विद्वानों ने शोध पत्रों का वाचन किया तथा नदी संस्कृति की साहित्यिक विरासत का परिदर्शन कराया। संगोष्ठी में काव्यधारा का भी प्रवाह गतिमान एवं आनंददायक रहा। साथ ही प्रसिद्ध साहित्यकार समालोचक परंपरा के जनक द्विवेदी युगीन पंडित पद्म सिंह शर्मा के द्वारा लिखी लगभग 100 वर्ष पुरानी पांडुलिपि, शर्मा जी के द्वारा उपयोग की गई लगभग डेढ़ सौ वर्ष पुरानी लाठी, मुद्रा, तिलक लगाने हेतु चंदन की लकड़ी का टुकड़ा आदि वस्तुओं की प्रदर्शनी ने जिज्ञासु विद्वानों को आश्चर्यचकित कर दिया।
भौगोलिक संस्कृति के अनुसार शक्तियां परिवर्तन हो जाती
समापन सत्र के अध्यक्ष श्रीयुत श्रीधर पराड़कर जी ने कहा भौगोलिक संस्कृति के अनुसार शक्तियां परिवर्तन हो जाती हैं। संस्कृति और सभ्यता के अर्थों को भिन्न-भिन्न अर्थो में समझकर शोध करने की आवश्यकता है।
माननीय विधायक मदन कौशिक ने कहा कि जिस कार्य का प्रारंभ देव भूमि हरिद्वार कुंभ नगरी में हो वह निश्चित ही सफलता को प्राप्त होता है
नदियां संस्कृति की पोषक
साध्वी प्राची ने कहा कि मैं राष्ट्रीय संगोष्ठी हेतु अखिल भारतीय साहित्य परिषद न्यास को धन्यवाद ज्ञापन करते हुए नदियों को संस्कृत का पोषक बताया तथा देव भाषा संस्कृत में देशभक्ति से युक्त मधुर गीत से श्रोताओं को आह्लादित कर दिया।
डॉ. पवन पुत्र बादल जी ने समस्त संगोष्ठी की विश्लेषणात्मक प्रतिक्रिया को स्पष्ट किया।
डॉक्टर सुनील पाठक ने आगंतुकों एवं मुख्य अतिथियों का संगोष्ठी के सफल संपादन मेला में सबका धन्यवाद ज्ञापन किया।
संगोष्ठी में आयोजक मंडल के रूप में पूर्ण रूप से समर्पित सहयोग करने वाले कार्यकर्ताओं को मुख्य अतिथि साध्वी प्राची के माध्यम से सम्मानित किया गया।
संचालक नीरज नैथानी नए समापन सत्र का कुशल संचालन करते हुए नदी संस्कृति पर आधारित काव्या तथा अनेक उदाहरणों से समापन सत्र को रोचक बनाने का सफल प्रयास किया।
डॉ. विजय त्यागी
संगोष्ठी सूचना प्रभारी एवं जिला महामन्त्री (अखिल भारतीय साहित्य परिषद् हरिद्वार)