तेल संकट से निपटने के लिए भारत ने बनाई सुरक्षात्मक तेल गुफाएं
जैसे-जैसे ईरान, इज़राइल और अमेरिका के बीच तनाव बढ़ता जा रहा है, वैश्विक तेल आपूर्ति को लेकर अनिश्चितता भी गहराती जा रही है। खासकर होरमुज़ जलडमरूमध्य पर संकट की आशंका से भारत जैसे तेल आयातक देशों के लिए स्थिति गंभीर हो सकती है। लेकिन भारत इस चुनौती से निपटने के लिए पहले से ही एक बहुस्तरीय रणनीति पर काम कर रहा है, जिसमें ज़मीन के नीचे बने विशाल तेल भंडार केंद्र यानी ‘स्ट्रैटेजिक पेट्रोलियम रिज़र्व’ (SPR) एक अहम कड़ी हैं। इन गुफाओं में जमा कच्चा तेल भारत को संकट की स्थिति में तात्कालिक राहत देने की क्षमता रखता है।
कच्चे तेल के आयात पर निर्भरता और भू-राजनीतिक जोखिम
भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा कच्चा तेल आयातक और उपभोक्ता है, जो अपनी जरूरतों का लगभग 80% तेल अन्य देशों से आयात करता है। इस तेल का बड़ा हिस्सा होरमुज़ जलडमरूमध्य से होकर गुजरता है, जो महज 33 किलोमीटर चौड़ा एक बेहद संवेदनशील समुद्री मार्ग है। इस क्षेत्र में युद्ध या संघर्ष की स्थिति में वैश्विक आपूर्ति पर संकट आ सकता है और तेल कीमतों में भारी उछाल देखने को मिल सकता है।
हालांकि भारत ने इससे निपटने के लिए तेल आपूर्ति के स्रोतों में विविधता लाई है। पेट्रोलियम मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने बताया कि अब भारत अमेरिका, नाइजीरिया, ब्राज़ील और अंगोला जैसे देशों से भी तेल आयात कर रहा है। इसके अलावा, रूस से भी तेल खरीद जारी है, जिससे पश्चिम एशिया पर निर्भरता थोड़ी कम हुई है।
ज़मीन के नीचे बने रणनीतिक तेल भंडार केंद्र
भारत की सबसे बड़ी ताकत उसके ज़मीनी गुफाओं में बने कच्चे तेल के भंडार हैं। इनका प्रबंधन ‘इंडियन स्ट्रैटेजिक पेट्रोलियम रिज़र्व लिमिटेड’ (ISPRL) करती है। विशाखापत्तनम (आंध्र प्रदेश), मंगलुरु (कर्नाटक) और पडूर (तमिलनाडु) में स्थित ये गुफाएं लगभग 90 मीटर गहराई में हैं और 1 किलोमीटर तक फैली हुई हैं। इनकी कुल भंडारण क्षमता 5.33 मिलियन मीट्रिक टन (MMT) है, जो भारत की लगभग 10 दिनों की तेल खपत के बराबर है।
इसके अलावा ओडिशा के चांदीखोल और कर्नाटक के पडूर में दो नई गुफाओं का निर्माण भी चल रहा है, जिनकी कुल क्षमता 6.5 MMT होगी। इसके निर्माण के बाद भारत के पास कुल 22 दिनों की आपूर्ति के बराबर तेल स्टॉक होगा। कोरोना काल के दौरान जब तेल के दाम बहुत कम थे, तब भारत ने इन गुफाओं को भरकर करीब 5,000 करोड़ रुपये की बचत की थी।
तेल भंडारण के लिए गुफाएं क्यों हैं सबसे सुरक्षित?
गुफाएं हवाई हमलों, प्राकृतिक आपदाओं और तोड़फोड़ से सुरक्षित होती हैं। इनसे वाष्पीकरण और पर्यावरणीय क्षति का खतरा भी बहुत कम होता है। गुफाओं में लीक डिटेक्शन सिस्टम और आपातकालीन प्रोटोकॉल होते हैं। विशाखापत्तनम की LPG गुफा दुनिया की सबसे गहरी भूमिगत ईंधन भंडारण इकाइयों में से एक है।
यह मॉडल स्वीडन से प्रेरित है और जापान, दक्षिण कोरिया जैसे देशों ने इसे अपनाया है। भारत में इसकी शुरुआत 1998 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के समय हुई थी, जो 1990 के खाड़ी युद्ध से मिले अनुभवों पर आधारित थी।
इसके अलावा, भारत की तेल मार्केटिंग कंपनियों के पास अलग से कमर्शियल स्टॉक भी होता है। जब इन दोनों भंडारों को मिलाया जाए, तो भारत लगभग 74 दिनों तक तेल आपूर्ति बनाए रख सकता है।
भारत लगातार नए स्थलों का मूल्यांकन कर रहा है और तेल आपूर्ति करने वाले देशों के साथ दीर्घकालिक समझौते कर रहा है, जिससे वैश्विक संकट की स्थिति में भी उसकी ऊर्जा सुरक्षा बनी रहे।