सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक विवाह को मान्यता देने से किया इनकार

सुप्रीम कोर्ट

समलैंगिक जोड़े को भी सामान्य लोगों की तरह उनको उनका अधिकार मिलना चाहिए- चीफ जस्टिस




सुप्रीम कोर्ट समलैंगिक विवाह पर ऐतिहासिक फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने 17 मई को अपने बहुप्रतीक्षित फैसले में समलैंगिक विवाह को मान्यता देने से इनकार कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि स्पेशल मैरिज एक्ट में बदलाव करने का अधिकार केवल संसद के पास है। यह कानूनी लड़ाई लम्बे समय तक देश की सबसे बड़ी अदालत में चली।

समलैंगिक विवाह को मान्यता नहीं


दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक विवाह को मान्यता देने से इनकार कर दिया है। समलैंगिक विवाह पर पांच जजों सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस एस रवींद्र भट्ट और जस्टिस पीएस नरसिम्हा, जस्टिस हिमा कोहली की बेंच ने बंटा हुआ फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि समलैंगिक साथ रह सकते हैं, लेकिन विवाह को मान्यता नहीं दी जा सकती। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि स्पेशल मैरिज एक्ट में बदलाव करने का अधिकार केवल संसद के पास है, इसलिए केंद्र सरकार को एलजीबीटीक्यू समुदाय के साथ भेदभाव रोकने के लिए जरूरी कदम उठाने का निर्देश दिया।

एक्ट में बदलाव करने का अधिकार संसद के पास


पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 3-2 के साथ बहुमत आया। चीफ जस्टिस ने कहा कि ये कहना कि विवाह की संस्था स्थिर और अपरिवर्तनीय है, सही नहीं है। विवाह की व्यवस्था में कानून के द्वारा बदलाव किया गया है। चीफ जस्टिस ने कहा कि स्पेशल मैरिज एक्ट में बदलाव करने का अधिकार केवल संसद के पास है। कोर्ट को संसद के अधिकार क्षेत्र में दखल देने में सावधानी बरतनी चाहिए।
संविधान बेंच के सदस्य जस्टिस संजय किशन कौल ने चीफ जस्टिस के फैसले पर अपनी सहमति जताई। जस्टिस एस रविंद्र भट्ट ने चीफ जस्टिस के फैसले से असहमति जताते हुए कहा कि समलैंगिक जोड़े को बच्चा गोद लेने का अधिकार नहीं दिया जा सकता। जस्टिस हीमा कोहली ने जस्टिस एस रविंद्र भट्ट के फैसले से सहमति जताई।

चीफ जस्टिस ने क्या कहा

दरअसल, पहले इस मामले पर फैसला सुनाते हुए चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि समलैंगिक जोड़े को भी सामान्य लोगों की तरह उनको उनका अधिकार मिलना चाहिए। चीफ जस्टिस ने कहा कि यह तर्क सही नहीं है कि समलैंगिक कपल्स बेहतर पैरेंट नहीं हो सकते। ऐसी कोई स्टडी नहीं है कि सामान्य कपल बेहतर पैरेंट होते हैं। चीफ जस्टिस ने कहा कि समलैंगिक कपल्स को विवाह करने का अधिकार है। समलैंगिक कपल को भी बच्चा गोद लेने का अधिकार है। चीफ जस्टिस ने कहा कि समलैंगिकता सिर्फ शहरों तक सीमित नहीं है, बल्कि गांव में कृषि कार्य में काम करने वाली एक महिला भी समलैंगिक हो सकती है।

सुप्रीम कोर्ट ने 10 दिनों तक लगातार की थी सुनवाई

बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर दस दिनों तक सुनवाई करने के बाद 11 मई को फैसला सुरक्षित रख लिया था। सुनवाई के दौरान राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने कहा था कि जेंडर की अवधारणा ‘परिवर्तनशील’ हो सकती है, लेकिन मां और मातृत्व नहीं। कोर्ट ने कहा था कि एक बच्चे का कल्याण सर्वोपरि होता है। देश का कानून विभिन्न कारणों से गोद लेने की अनुमति प्रदान करता है। यहां तक कि एक अकेला व्यक्ति भी बच्चा गोद ले सकता है। ऐसे पुरुष या महिला, एकल यौन संबंध में हो सकते हैं। कोर्ट ने कहा कि अगर आप संतानोत्पत्ति में सक्षम हैं तब भी आप बच्चा गोद ले सकते हैं। जैविक संतानोत्पत्ति की कोई अनिवार्यता नहीं है।

सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा था कि शादी और तलाक के मामले में कानून बनाने का अधिकार संसद को ही है। ऐसे में हमें यह देखना होगा कि कोर्ट कहां तक जा सकता है।

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