मणिपुर की निंदनीय घटना पर प्रो० सुशील उपाध्याय के भाव -किसने सुना हवाओं का रोना
जब उन्हें दबोचा, नोचा, घसीटा और परेड कराई,तब मैंने हवाओं का रुदन साफ-साफ सुनाघास, पत्तों की सरसराहट में कुछ न…
जब उन्हें दबोचा, नोचा, घसीटा और परेड कराई,तब मैंने हवाओं का रुदन साफ-साफ सुनाघास, पत्तों की सरसराहट में कुछ न…
मुझे अक्सर संदेह होता हैकि मैं आदमी हूं!क्योंकिरास्ते में गिर जाती है मेरी नाक,आंखें और दूसरे अंग भी,राह चलता…