भै भुको मैं सिति रै गि..जानें भिटौली से जुड़ी ये प्रचलित कथा

भै भुको मैं सिति रै गि..जानें भिटौली से जुड़ी ये प्रचलित कथा

उतराखंड के कुमाऊं में भिटौली गढ़वाल में कलेऊ पारंपरिक लोकप्रिय पर्व है।चैत्र मास के फूलदेही से भिटौली की शुरुवात हो जाती है। जिसमें विवाहित बहन, बेटियों को मायके से भिटौली उपहार का बेसब्री से इंतजार होता है।

चैत्र मास में दी जाती है भिटौली

चैत्र मास में खेतों में सरसों फूल रही होती है पेड़ के डालियों में घुखति पक्षी गुनगुना कर ये विवाहित बहन, बेटियों को इस भिटौली की यादें दिलाती है। उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में प्राचीन काल में बहन बेटियों की शादी दूरदराज क्षेत्रों में हुआ करती थी।इन विवाहित बहन, बेटियों को यातायात के अभाव के कारण अपने मायके जाने का समय बहुत कम मिलता था।साल के चैत्र मास इनके परिवार से भिटौली के उपहार के साथ साथ मायके वालों से भेंट हो जाती थी।

गानों के माध्यम से दर्शाया गया भिटौली का विवरण

इधर स्वर्गीय गोपाल बापू गोस्वामी जी ने भिटौली पर गीत गाया था..

जानें ये पौराणिक कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार भिटौली की यह कथा प्रचलित है। एक बार एक भाई ने अपनी मां से पूछा मां बहन को भिटौली देने के लिए इस बार मैं जाता हूं। मां ने बेटे को भिटौली का समान देकर तैयार किया। भाई घने जंगलों के रास्ते कोसों दूर अपनी बहन को भिटौली देने चला गया। जब बहन के घर पर गया बहन खेतों में काम करके थक कर आई थी जिसके बाद वह सो गई। भाई ने उसके सिरहाने के सामने भिटौली समान रखा और बहन को जगाया तो बहन जगी नहीं सोई रह गई।भाई को किसी कारण वस घर वापस आना था तभी भाई भिटौली को उसके सिरहाने रखकर चला आया । जब शाम के टाइम पर बहन की नींद खुली तो उसने भिटौली का समान देखा तो भाई भाई कहकर चिल्लाने लगी बाहर देखा तो पक्षियों की चहचहाहट सुनाई पड़ रही थी। तब उसने दुःख से कहा भाई आया वापस चला गया उसने कहा भै भुको मैं सिति रै गि।। तब उसने दुःखी होकर प्राण त्याग दिए। बाद में वही बहन घुघुति पक्षी के रूप में आई जो आज भी चैत्र मास में विवाहित बहन, बेटियों को खेतों के ऊपर पेड़ डालियों से आवाज देकर भिटौली की यादें दिलाती है। – प्रताप नेगी

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