महाराष्ट्र ने हिंदी को अनिवार्य भाषा बनाने का फैसला टाला, विवाद बरकरार
महाराष्ट्र सरकार ने प्राथमिक स्कूलों में हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में अनिवार्य बनाने के अपने पुराने फैसले में संशोधन किया है। नए आदेश में ‘अनिवार्य’ शब्द को हटा दिया गया है, लेकिन यह स्पष्ट किया गया है कि हिंदी अब भी कक्षा पहली से पाँचवीं तक अधिकांश स्कूलों में तीसरी भाषा के तौर पर पढ़ाई जाएगी। अगर छात्र किसी अन्य भाषा को चुनना चाहें तो कम से कम 20 छात्रों का समूह होना आवश्यक होगा। यह संशोधित आदेश राज्य में ‘हिंदी थोपने’ की बहस को फिर से हवा दे रहा है, जिसे लेकर क्षेत्रीय भाषा समर्थकों और शिक्षा विशेषज्ञों ने तीखी प्रतिक्रिया दी है।
विरोध के बाद सरकार पीछे हटी, लेकिन नई शर्तों पर भी सवाल
अप्रैल में महाराष्ट्र स्कूल शिक्षा विभाग ने सभी मराठी और अंग्रेज़ी माध्यम स्कूलों में हिंदी को तीसरी अनिवार्य भाषा घोषित कर दिया था। इस फैसले के खिलाफ महा विकास आघाड़ी और यहां तक कि बीजेपी समर्थक माने जाने वाले राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना ने भी विरोध किया। कुछ ही दिनों बाद, स्कूल शिक्षा मंत्री दादा भुसे ने कहा कि सरकार इस फैसले पर पुनर्विचार कर रही है। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने भी कहा कि केवल मराठी ही स्कूलों में अनिवार्य भाषा रहेगी।
हालांकि, मंगलवार को जारी नए आदेश में यह उल्लेख किया गया है कि हिंदी ‘आम तौर पर पढ़ाई जाने वाली’ तीसरी भाषा होगी। यह शब्दावली दिखाती है कि हिंदी को प्रत्यक्ष रूप से अनिवार्य नहीं बनाया गया, लेकिन वह डिफ़ॉल्ट विकल्प ज़रूर है जब तक कि छात्र कोई अन्य भाषा चुन न लें। और यदि वे ऐसा करते हैं तो कम से कम 20 छात्रों की मांग होनी चाहिए। यदि स्कूल उस भाषा के शिक्षक की व्यवस्था नहीं कर पाता, तो उस विषय की कक्षाएं ऑनलाइन संचालित की जाएंगी। आलोचकों का कहना है कि यह व्यवस्था छात्रों को अन्य भाषाएं चुनने से हतोत्साहित करती है।
शिक्षाविदों ने जताई व्यवहारिक कठिनाइयों की आशंका
महाराष्ट्र राज्य माध्यमिक व उच्च माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष वसंत कलपांडे ने 20 छात्रों की अनिवार्यता को अव्यवहारिक बताया है। उन्होंने यह भी कहा कि भाषा शिक्षकों की जगह ऑनलाइन कक्षाएं देना छात्रों को विकल्प चुनने से रोकने का प्रयास है। उन्होंने पीटीआई को बताया, “मराठी और हिंदी की लिपियाँ भले मिलती-जुलती हों, लेकिन छोटे बच्चों के लिए दोनों भाषाएँ एक साथ सीखना बोझिल हो सकता है।”
यह बदलाव केंद्र सरकार की नई शिक्षा नीति 2020 के तहत किया गया है, जो तीन-भाषा फॉर्मूला को बढ़ावा देती है। लेकिन हिंदी-भाषी नहीं होने वाले राज्य, विशेष रूप से तमिलनाडु, इस नीति का विरोध करते आए हैं। तमिलनाडु अब भी दो-भाषा नीति पर कायम है और उसका तर्क है कि यह मॉडल राज्य की शिक्षा व्यवस्था के लिए प्रभावी रहा है और हिंदी थोपने के प्रयासों का विरोध जरूरी है।
हालाँकि केंद्र सरकार का दावा है कि नई शिक्षा नीति के तहत हिंदी अनिवार्य नहीं है, लेकिन महाराष्ट्र का यह ताज़ा आदेश उन आशंकाओं को और गहरा करता है कि नीतियों के ज़रिए हिंदी को परोक्ष रूप से थोपा जा रहा है, खासकर उन राज्यों पर जहाँ हिंदी मूल भाषा नहीं है।