मानसखंड ए सेक्रेड हिन्दू लैंड स्केप (रिकॉलिंग डिवाइन हेरिटेज एंड पिलीग्रिमिज स्पेसेस) विषय पर तीन दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला आयोजित
नेपाल अध्ययन केंद्र (अंतराष्ट्रीय सहयोग परिषद) द्वारा सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय, अल्मोड़ा के स्वामी विवेकानन्द महात्मा गांधी आध्यात्मिक पर्यटन परिपथ, अध्ययन केंद्र , मौलाना अबुल कलाम आजाद, इंस्टिट्यूट ऑफ एसियन स्टडीज और आई.सी.एच.आर.के सहयोग से विवेकानन्द पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के सभागार में तीन दिवसीय कार्यशाला का उद्घाटन हुआ।
तीन दिवसीय मानसखंड को लेकर आयोजित कार्यशाला की रूपरेखा हुई प्रस्तुत
उद्घाटन अवसर पर श्याम परांडे (जनरल सेक्रेट्री, अन्तराष्ट्रीय सहयोग परिषद, नई दिल्ली), विशिष्ट अतिथि प्रो० नरेंद्र सिंह भंडारी (पूर्व कुलपति, सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय, अल्मोड़ा), प्रो० सुष्मिता पांडे (वरिष्ठ सलाहाकर,वरि. सलाहाकार,ICHR), डॉ स्वरूप घोष (डायरेक्टर, MAKAIS), प्रो राजेश करात (दिल्ली विश्वविद्यालय), मुख्य अतिथि रूप में अजय टम्टा (माननीय मंत्री, हाइवेज एंड रोड ट्रांसपोर्ट, भारत सरकार), डॉ० लवी त्यागी आदि ने दीप प्रज्ज्वलित कर कार्यक्रम की शुरुआत की। आयोजकों द्वारा अतिथियों का स्वागत किया गया।
संचालक रूप में डॉ.चंद्र प्रकाश फुलोरिया ने तीन दिवसीय मानसखंड को लेकर आयोजित कार्यशाला की रूपरेखा प्रस्तुत की। उन्होंने बताया कि मानसखंड के विविध पक्षों पर विशेषज्ञों द्वारा बात रखी जायेगी।
मानसखंड पीठ की स्थापना करने का सुझाव दिया
विशिष्ट अतिथि प्रो० नरेंद्र सिंह भंडारी (पूर्व कुलपति, सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय, अल्मोड़ा) ने नेपाल अध्ययन केंद्र की सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय के साथ यात्रा पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि भारत एवं नेपाल की साझा संस्कृति पर अध्ययन करने के लिए दोनों संस्थानों ने मिलकर महत्वपूर्ण कार्य किये हैं। आज मानसखंड अपना स्वरूप ग्रहण कर चुका है। धर्म और संस्कृति,जल संसाधन संवर्धन, बेहतर कनेक्टिविटी, सांस्कृतिक एकता, क्षेत्र के विकास में मंदिरों का आर्थिक आदि को लेकर सुझावों पर कार्य करने की आवश्यकता है। उन्होंने मानसखंड पीठ की स्थापना करने का सुझाव दिया। प्रो० राजेश करात (दिल्ली विश्वविद्यालय) ने कहा कि मानसखंड में स्थित क्षेत्रों का विकास हो। आयोजक संस्थाएं मानसखंड के विकास को लेकर शोध अध्ययन करें।
मानसखंड मेंइन आध्यात्मिक विषय पर कार्यशाला आयोजित कर सराहनीय कार्य
प्रो० सुष्मिता पांडे (वरि. सलाहाकार,ICHR) ने कहा कि नेपाल अध्ययन केंद्र और सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय द्वारा मानसखंड मेंइन आध्यात्मिक विषय पर कार्यशाला आयोजित कर सराहनीय कार्य किया है। उन्होंने आध्यात्मिक और आध्यात्मिकता को परिभाषित करते हुए मानसखंड की आध्यात्मिक चेतना पर बात रखी। उन्होंने कहा कि पुरातत्व में आध्यात्मिक स्थितियों को लेकर कई अवशेष प्राप्त हुए हैं। उत्तराखंड और मानसखंड से जुड़ें और यहां की आध्यात्मिक चेतना को समझें। यहां वैदिक काल से अद्यतन तक आध्यात्मिक परंपरा संचालित है। साथ ही उन्होंने पुरातात्विक साक्ष्यों के उदहारण प्रस्तुत कर आध्यात्मिक विषय पर विस्तार से व्याख्यान दिया।
ऐसी धरती है जिसका आध्यात्म का सीधा सीधा संबंध
श्याम परांडे (जनरल सेक्रेट्री, अन्तराष्ट्रीय सहयोग परिषद, नई दिल्ली) ने मानसखंड को लेकर कहा कि यह ऐसी धरती है जिसका आध्यात्म का सीधा सीधा संबंध है। यह पूरा क्षेत्र आध्यात्म की शक्ति का केंद्र है। विवेकानन्द जी ने यहां आकर आध्यात्मिक ऊर्जा ली। मानसखंड क्षेत्र में आध्यत्मिक ऊर्जा है। सम्पूर्ण मानसखंड पर नेपाल अध्ययन केंद्र कार्य कर रहा है। अध्ययनों में इन क्षेत्र की विशेषताओं पर कार्य करने की आवश्यकता है। आधुनिकता को अपनाने के लिए अपनी धरोहरों, परंपरा का परित्याग उचित नहीं है।
डॉ ललित जोशी ने मानसखंड के ऐतिहासिक एवं भौगोलिक स्थिति की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि नंदपर्वत से लेकर काकगिरि पर्वत तक का क्षेत्र मानसखंड क्षेत्र माना जाता है जिसपर अनुसंधान किये जाने की जरूरत है।
डॉ सरूप घोष ने (निदेशक, मकैश) ने वेद वेदांत में आध्यात्मिक की स्थिति को साझा किया। उन्होंने कहा कि मानसखंड एक मानचित्र है जो भारत और नेपाल की संस्कृति को जोड़ता है। उन्होंने आध्यात्मिक यात्रा करने के लिए मानसखंड क्षेत्र को उपयुक्त कहा। विवेकानन्द जी इस मानसखंड के अल्मोड़ा से जुड़े। यह क्षेत्र आध्यात्मिक ऊर्जा से सम्पन्न है।
प्रो० सोनालिका कॉल (JNU) ने रिक्लेमिंग मिथ: सम थॉट्स ओंन द मेथाडोलॉजी ऑफ रीडिंग टेक्स्ट लाइक द मानसखंड विषय पर व्याख्यान दिया। उन्होंने कहा कि समाज के मूल्यों को बनाने के लिए मिथ का योगदान है।
मानसखंड की पवित्र भूमि में रहते
मुख्य अतिथि रूप में अजय टम्टा (माननीय मंत्री, हाइवेज एंड रोड ट्रांसपोर्ट, भारत सरकार) आदि ने उद्बोधन देते हुए कहा की हम मानसखंड की पवित्र भूमि में रहते हैं जहां भारत और नेपाल की संस्कृति को साझा हुए देखते हैं। इस भूमि में मानसखंड को लेकर कार्यशाला होना बहुत अच्छी बात है। उन्होंने कहा कि मानसखंड में आध्यात्मिक यात्राएं हो। भगवान शिव के स्थान मानसरोवर जाने के लिए चाइना से होते हुए भक्तों को कई परेशानी होती है लेकिन हमने यात्रा को सुलभ करने के लिए प्रयास किये। उन्होंने कहा कि मानसखंड को लेकर ऐसी कार्यशाला महत्वपूर्ण हैं। उन्होंने मानसखंड की आध्यात्मिक ऊर्जा और राज्य सरकार द्वारा मानसखंड मंदिर माला की चर्चा की। और कहा कि नेपाल अध्ययन केंद्र, नई दिल्ली और सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय के प्रयासों से भारत-नेपाल के बीच इस राष्ट्रीय कार्यशाला के लिए बधाई दी। उन्होंने कहा कि मानसखंड कार्यशाला में मंथन के उपरांत आये सुझाव को भेजें, उसे सरकार हेतु भेजा जाएगा।
इन तीन दिवसीय सेमिनार में डॉ लवी त्यागी (अंतराष्ट्रीय सहयोग परिषद (नेपाल अध्ययन केंद्र), नई दिल्ली) ने कार्यशाला की व्यवस्थाओं का प्रबंधन किया। उन्होंने बताया कि कार्यशाला में कई राज्यों के विद्वान मानसखंड को लेकर चर्चा करेंगे।
कार्यशाला का डॉ चंद्र प्रकाश फुलोरिया और डॉ ललित जोशी ने संयुक्त रूप से संचालन किया।
इस अवसर पर उपस्थित जन
कार्यशाला में डॉ० लवी त्यागी (अंतराष्ट्रीय सहयोग परिषद (नेपाल अध्ययन केंद्र), नई दिल्ली), डॉ. स्वेता सिंह, श्री रेवित, डॉ महेश कुमार, नवनीत यादव, दीप्ति शर्मा, सुश्री सम्भावी,प्रो कपिल कपूर (पदमभूषण), प्रो वीरेंद्र सिंह (आई.आई.टी., बॉम्बे), प्रदीप सिंह (डिप्टी सर्वे जर्नल ऑफ इंडिया), राजीव नयन (सदस्य, मकायस), डॉ दीपा दुरई स्वामी (चेन्नई), डॉ हेमा उनियाल (दिल्ली), प्रो वीनू पंत (केंद्रीय विश्वविद्यालय सिक्किम), डॉ सोनालिका कॉल (सेंट्रल फ़ॉर हिस्टोरिकल स्टडीज, जे एन यू), प्रो सुष्मिता पांडे (वरिष्ठ सलाहकार, ICHR), श्री कैलाश थपलियाल (,संयोजक, सीमांत फाउंडेशन), डॉ रितेश साह ( असिस्टेंट डायरेक्टर, यू जी सी अकादमिक स्टॉफ, कुमाऊँ विश्वविद्यालय नैनीताल), डॉ रितेश साह ( दिल्ली विश्वविद्यालय), रूप सिंह बिष्ट, महेंद्र ठकुराठी आदि सहित कई राज्यों के विद्वानों ने मानसखंड को लेकर आयोजित हुई कार्यशाला में भागीदारी की।